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रिपोर्ट : हमसे ज्यादा खुशहाल हैं चीनी और पाकिस्तानी, सबसे दुखी बुरुंडी

raghvendra
Published on: 16 March 2018 4:45 PM IST
रिपोर्ट : हमसे ज्यादा खुशहाल हैं चीनी और पाकिस्तानी, सबसे दुखी बुरुंडी
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नई दिल्ली। दुनिया के सबसे खुश और नाखुश देशों के बारे में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया का सबसे खुशहाल देश फिनलैंड है जो नॉर्वे को पछाडक़र टॉप पर पहुंचा है। दुनिया के सबसे खुशहाल टॉप 5 देश हैं- फिनलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क, आइसलैंड और स्विट्जरलैंड। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट को तैयार करने में इसमें वर्ष 2015 से 2017 के बीच देशों के प्रति व्यक्ति जीडीपी, भ्रष्टाचार में कमी, सामाजिक सहयोग, स्वस्थ, जीवन की संभावना, सामाजिक आजादी जैसी चीजें शामिल हैं।

‘वल्र्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट - 2018’ में भारत 156 देशों में खुशहाल देशों के मामले में 133वें नंबर पर है। पिछले साल के मुकाबले भारत 11 पायदान नीचे चला गया है। वहीं हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार भारत से अधिक खुशहाल देशों में शामिल हैं। दुनिया के सबसे नाखुश देशों में शामिल हैं- बुरुंडी, मध्य अफ्रीका, दक्षिणी सूडान, तंजानिया और यमन।

एशियाई देशों की रैंकिंग इस तरह है : पाकिस्तान - 75, चीन - 85, भूटान - 97, नेपाल - 101, बांग्लादेश - 115, श्रीलंका - 116 और भारत - 133।

और ये है सबसे दुखी

सबसे कम खुशहाल देशों की लिस्ट में बुरुंडी, सीरिया, तंजानिया, यमन और रवांडा शामिल हैं। रिपोर्ट में सबसे दुखी देश बुरुंडी है। ये पूर्वी अफ्रीका में ग्रेट लेक क्षेत्र में स्थित एक देश है। इसकी सीमाएं उत्तर में रवांडा, दक्षिण और पूर्व में तंजानिया और पश्चिम में कांगो से मिलती हैं।

पांच दशक पहले देश के गठन के दौरान से ही त्वा, तुत्सी और हुतु जनजातियों की मौजूदगी बनी हुई है। यहां जनजातियों के बीच 1993 से लेकर 2005 के बीच चले जातीय संघर्ष की वजह से करीबन 2 लाख लोगों की जान गई। 2005 के बाद से यहां राजनैतिक स्थिरता आई तो है लेकिन नाखुश जनता और सरकार के बीच यहां संघर्ष होता रहता है। गरीबी, बेरोजगारी और आंतरिक संघर्ष से यहां की जनता लगातार जूझ रही है।

बात फिनलैंड की

फिनलैंड को एक जमाने में ‘लैंड ऑफ सॉरो’ कहा जाता था लेकिन पिछले साठ साल में यहां की तस्वीर ही बदल गई है। ये दुनिया के सबसे विकसित देशों में है जहां हर नागरिक को आर्थिक सुरक्षा, भत्तों के साथ कई ऐसे अधिकार और सुविधाएं हासिल हैं कि उन्हें कभी ये नहीं सोचना पड़ता कि उनकी नौकरी चली गई तो क्या होगा। या अगर वो बूढ़े हो गए और उनके पास पैसा नहीं है तो क्या होगा या कोई दुर्घटना या तबीयत खराब हो जाए तो इलाज कैसे होगा। ये सारा जिम्मा सरकार उठाती है। वैसे, यहां लोगों की आमदनी काफी है।

ये सबसे स्थिर और सुरक्षित देश है। यहां की कुल आबादी 55 लाख है और वर्ष 2015 में यहां हत्या की दर एक लाख की आबादी पर केवल 1.28 फीसदी रही। वर्ष 2015 में यहां केवल 50 मर्डर हुए। संगठित क्राइम तो यहां न के बराबर है। यहां की पुलिस और इंटरनेट सुरक्षा को दुनिया में दूसरे नंबर पर माना जाता है। कानून का पालन सख्ती से होता है। यहां के नागरिक राजनीतिक, कानून और पुलिस व्यवस्था के भरोसा रखने वालों में नंबर एक की स्थिति पर है।

यहां प्रति वर्ग किलोमीटर में लगभग 18 आदमी रहते हैं जो यूरोपियन यूनियन में सबसे कम हैं। यहां ठंड ज्यादा रहती है। इसके बाद भी यहां मौसम सुहाना और मनमोहक रहता है। गर्मियों के समय रात बारह बजे के बाद कुछ अंधेरा होता है और इसके पहले दस बजे के आस-पास तो ऐसा लगता है कि जैसे अभी-अभी शाम हुई है जबकि ठंड के वक्त दिन में अधिकांश अंधेरा होता है। इस देश का प्रशासन दुनिया में सबसे बेहतर माना जाता है। यहां भ्रष्टाचार सबसे कम है। फिनलैंड के बैंक दुनिया के सबसे दमदार माने जाते हैं।

फिनलैंड में वर्ष 2015 के यहां कई देशों के शरणार्थी पहुंचे। इस देश में शरणार्थियों की संख्या तीन लाख के आसपास है। उनकी भी स्थिति आम नागरिकों जैसी उम्दा है। यहां प्रेस को भी पूरी आजादी हासिल है तथा मानव अधिकारों की रक्षा की जाती है। अनुसंधान और प्रशिक्षण पर भरी खर्च करने के कारण फिनलैंड विश्व का सबसे ज्यादा योग्य प्रतिभाएं को तैयार करने वाला देश बन चुका है। लिंग बराबरी में भी ये विश्व के शीर्ष पांच देशों में है। फिनलैंड सबसे ज्यादा महिला सांसदों के मामले दुनिया का तीसरा शीर्ष देश है।

यहां की शिक्षा व्यवस्था की मिसालें पूरी दुनिया में दी जाती हैं। ग्लोबल कंपटीटीव रिपोर्ट 2016-17 के अनुसार उच्च शिक्षा का स्तर दुनिया में तीसरे नंबर का है। ये दुनिया के सबसे साक्षर देशों में भी है। बिजनेस करने के मामले में ये यूरोप का तीसरे नंबर का बेहतरीन देश है। कई सदियों तक फिनलैंड राजशाही के तले रहा लेकिन 19वीं सदी में रूस ने उस पर कब्जा कर लिया। 1900 के शुरुआती बरसों में ही फिनलैंड के लोगों ने आजादी हासिल कर ली। लेकिन यहां स्वीडिश संस्कृति की पूरी छाप है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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