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प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ आरोपों में स्वतंत्र जांच की मांग
पिछले सप्ताह अदालत की एक कनिष्ठ कर्मी ने 22 जजों को लिखित शिकायत भेजकर आरोप लगाया था कि प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने अक्टूबर 2018 में उसका यौन उत्पीड़न किया था।
नयी दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों में स्वतंत्र जांच की मांग करते हुए प्रशांत भूषण और अरुणा रॉय समेत कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि अगर इस चुनौती से शीर्ष अदालत विश्वसनीयता के साथ नहीं निपटती तो न्यायपालिका में जनता का विश्वास कम हो जाएगा।
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पिछले सप्ताह अदालत की एक कनिष्ठ कर्मी ने 22 जजों को लिखित शिकायत भेजकर आरोप लगाया था कि प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने अक्टूबर 2018 में उसका यौन उत्पीड़न किया था।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की नयी पीठ ने मामले की सुनवाई की। इससे पहले एक विशेष पीठ ने प्रधान न्यायाधीश की अदालत में 20 अप्रैल को सुनवाई की थी जिसमें खुद गोगोई शामिल थे।
कुछ कार्यकर्ताओं और लेखकों ने बयान जारी कर मांग की है कि न्यायमूर्ति गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों में निष्पक्ष जांच कराई जाए।
बयान के अनुसार, ‘‘यह न्यायपालिका के लिए गहरे संकट की घड़ी है। अगर अदालत विश्वसनीय तरीके से इस चुनौती से नहीं निपटती तो न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बहुत क्षति पहुंचेगी।’’
संयुक्त वक्तव्य में कहा गया, ‘‘हम प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय की एक कर्मचारी द्वारा की गयी यौन उत्पीड़न और ज्यादती करने की शिकायत के बारे में जानकर अत्यंत चिंतित हैं। एक उच्चस्तरीय स्वतंत्र समिति द्वारा निष्पक्ष जांच कराने के लिए ये आरोप प्रथम दृष्टया काफी गंभीर हैं।’’
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बयान जारी करने वाले 33 प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ताओं और लेखकों में मेधा पाटकर, लेखिका अरुंधति रॉय, पत्रकार पी साईनाथ, स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव और भाकपा नेता एनी राजा आदि के नाम हैं।
बयान में कहा गया कि इस मुद्दे पर सुनवाई के लिए स्वतंत्र जांच समिति का गठन करने के बजाय भारत के प्रधान न्यायाधीश का खुद की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ गठित करने का कदम सभी नियमों और कानून के तय सिद्धांतों के खिलाफ है।
(भाषा)