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Supreme Court: समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग, सुप्रीम कोर्ट कल इस मामले में करेगा सुनवाई
Supreme Court: Supreme Court: समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किए जाने की अर्जियों पर कल सुनवाई होगी।
Supreme Court: समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किए जाने की अर्जियों पर कल यानी कि शुक्रवार (6 जनवरी 2023) को सुनवाई होगी। याचिकाओं में मांग की गयी है कि समलैंगिक विवाह के अधिकार को मान्यता दी जाए और अधिकारियों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत उनकी शादी के पंजीकरण का निर्देश दिया जाए। बता दें कि इससे पहले 25 नवबंर को भी समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की एक याचिका पर सुनवाई की गई थी जिसमें सरकार को नोटिस जारी किया गया था और 4 हफ्तों के अंदर जवाब मांगा गया था। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले का परीक्षण करने के लिए तैयार हो गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भारत में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली कई याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था। जिसमें सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग द्वारा दायर जनहित याचिका शामिल थी, वे लगभग 10 वर्षों से एक युगल हैं और उन्होंने हाल ही में दिसंबर 2021 में एक प्रतिबद्धता समारोह रखा था, जहाँ उनके रिश्ते को उनके माता-पिता, परिवार और दोस्तों ने आशीर्वाद दिया था। अब, वे चाहते हैं कि उनकी शादी को विशेष विवाह अधिनियम के तहत मान्यता दी जाए।
जनहित याचिकाओं में पार्थ फ़िरोज़ मेहरोत्रा और उदय राज आनंद द्वारा दायर एक भी शामिल है, जो पिछले 17 वर्षों से एक-दूसरे के साथ रिश्ते में हैं। उनका दावा है कि वे वर्तमान में दो बच्चों की परवरिश एक साथ कर रहे हैं, लेकिन चूंकि वे कानूनी रूप से अपनी शादी को संपन्न नहीं कर सकते हैं, इसके परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहां दोनों याचिकाकर्ता अपने दोनों बच्चों के साथ माता-पिता और बच्चे का कानूनी संबंध नहीं रख सकते हैं। एक अन्य समान-सेक्स युगल - एक भारतीय नागरिक और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) का नागरिक, जिसने 2014 में यूएसए में विवाह किया और पंजीकृत किया और अब विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 के तहत अपनी शादी को पंजीकृत करना चाहता है।
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था ऐतिहासिक फैसला
6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया था। इसके चलते दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अपराध नहीं माना जा सकता। फैसला देते वक्त कोर्ट ने यह भी कहा था, "समलैंगिक लोगों के साथ समाज का बर्ताव भेदभाव भरा रहा है। कानून ने भी उनके साथ अन्याय किया है।