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Demonetisation: नोटबंदी के फैसले ने देश को कर दिया था दंग, विपक्ष के कई सवालों का अभी तक नहीं मिला जवाब

Demonetisation: नोटबंदी का एलान करते समय पीएम मोदी ने दलील दी थी कि जितना कैश सरकुलेशन में होगा, व्यवस्था में उतना ही करप्शन होगा।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 8 Nov 2022 2:11 PM IST
Demonetisation six years
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नोटबंदी के फैसले ने देश को कर दिया था दंग (photo: social media )

Demonetisation: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह साल पहले आज के ही दिन अचानक एक बड़ी घोषणा करके पूरे देश को चकित कर दिया था। 2016 में 8 नवंबर को रात आठ बजे देश को संबोधित करते हुए उन्होंने नोटबंदी का ऐलान किया था। प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद 500 और 1000 रुपए के नोट एक झटके में चलन से बाहर हो गए थे। ये दोनों नोट उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ थे। यही कारण था कि प्रधानमंत्री मोदी की ओर से अचानक इस बाबत किए गए ऐलान से पूरे देश में हड़कंप मच गया था।

मोदी के इस फैसले के बाद देश में कैश की किल्लत पैदा हो गई थी और बैंकों के बाहर लंबी-लंबी लाइनों में लगकर लोगों को नोट बदलने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। नोटबंदी के फैसले के बाद से ही विपक्ष मोदी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाता रहा है। कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि नोटबंदी के समय मोदी सरकार की ओर से बड़े-बड़े दावे किए गए थे मगर सरकार आज तक यह साफ नहीं कर सकी कि उसे इस फैसले के जरिए क्या हासिल हुआ। सरकार की ओर से अभी तक इन सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं दिया गया है।

कैश का इस्तेमाल बढ़ा

नोटबंदी का एलान करते समय पीएम मोदी ने दलील दी थी कि जितना कैश सरकुलेशन में होगा, व्यवस्था में उतना ही करप्शन होगा। 500 और 1000 के नोटों को बंद करने के एलान के समय देश में इन दोनों नोटों की हिस्सेदारी क़रीब 86 फ़ीसदी थी। नोटबंदी का ऐसा असर दिखा कि कुछ महीनों तक तो कैश के इस्तेमाल में कमी दर्ज की गई मगर यह कमी अस्थायी ही रही। बाद में एक बार फिर कैश का सरकुलेशन काफी बढ़ गया है और यह नोटबंदी के वक्त के सरकुलेशन को भी पार कर गया।

नोटबंदी के छह साल पूरे होने के बाद मौजूदा समय में कैश का इस्तेमाल जमकर किया जा रहा है। पिछले महीने 21 अक्टूबर को देश में नकदी का इस्तेमाल 30.88 लाख करोड़ तक पहुंच गया था। यह आंकड़ा 4 नवंबर 2016 को मौजूद 17.97 लाख करोड़ से करीब 72 फ़ीसदी ज्यादा है। इसी कारण जानकारों का कहना है कि कैश का सरकुलेशन कम करने का सरकार का मकसद अभी तक पूरा नहीं हो सका है।

सरकार ने दी थी दलील

नोटबंदी के फैसले पर सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि इस फैसले से लोगों की अघोषित संपत्ति का खुलासा होगा और इससे जाली नोटों का चलन भी बंद होगा।

सरकार का यह भी कहना था कि इस फैसले से भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी पर निर्भरता घटेगी। सरकार का यह भी कहना था कि वह अर्थव्यवस्था से बाहर गैरकानूनी ढंग से रखे गए धन को निशाना बना रही है। सरकार के मुताबिक इस धन से भ्रष्टाचार और दूसरी गैरकानूनी गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है और टैक्स बचाने के लिए लोग इस पैसे की जानकारी छिपाए रखते थे।

दूसरी ओर विपक्ष के नेता समय-समय पर सरकार के फैसले पर सवाल खड़े करते रहे हैं। विपक्ष के नेताओं का कहना है कि नोटबंदी के फैसले को लागू करते समय सरकार की ओर से जो लक्ष्य बताए गए थे, उनमें कोई भी लक्ष्य पूरा करने में सरकार कामयाब नहीं हुई है। उल्टे फैसले के कारण देश की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। मोदी सरकार के इस फैसले के समय भी विशेषज्ञों ने इसकी तीखी आलोचना की थी।

आरबीआई की चौंकाने वाली रिपोर्ट

वैसे अगस्त 2018 में भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट ने लोगों को चौंका दिया था। आरबीआई की रिपोर्ट में बताया गया कि बैन किए गए नोटों का 99 फ़ीसदी हिस्सा बैंकों के पास लौट आया। इसके बाद नोटबंदी की आलोचना काफी तेज हो गई। इस रिपोर्ट से इस बात का भी संकेत मिला कि लोगों के पास जिस गैरकानूनी संपत्ति की बात कही जा रही थी, वह सच नहीं था और अगर वह बात सच थी तो लोगों ने अपनी गैरकानूनी संपत्ति को भी कानूनी बनाने का रास्ता खोज निकाला।

जाली नोटों पर नहीं लग सका अंकुश

नोटबंदी के साथ एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी जुड़ा हुआ है कि नोटबंदी का जाली नोटों पर क्या असर पड़ा? भारतीय रिजर्व बैंक का ही दावा है कि जाली नोटों पर नोटबंदी के बाद भी अंकुश नहीं लग पाया। जिस साल नोटबंदी का फैसला किया गया, उस साल पिछले साल की तुलना में 500 और 1000 के ज्यादा जाली नोट बरामद हुए। अभी भी देश के विभिन्न स्थानों पर जाली नोट धड़ल्ले से बरामद किए जा रहे हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से दावा किया गया था कि बाजार में जारी किए गए 500 और 2000 के नए नोट की नकल कर पाना काफी मुश्किल होगा मगर भारतीय स्टेट बैंक से जुड़े अर्थशास्त्रियों का दावा है कि नए नोटों की भी नकल संभव है।

पहले भी हो चुकी है नोटबंदी

2016 से पहले भी देश में दो बार नोटबंदी हो चुकी है। पहली बार अंग्रेज सरकार ने 1946 में नोटबंदी की थी और इसके बाद 1978 में भी नोटबंदी की गई थी। पहली बार 1946 में 500, 1000 और 10000 के नोटों को बंद करने का फैसला लिया गया था। जनवरी 1978 में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार ने कानून बनाकर 1000, 5000 और 10000 के नोट बंद कर दिए थे। हालांकि तत्कालीन आरबीआई गवर्नर आईजी पटेल ने इस नोटबंदी का विरोध किया था।

नोटबंदी का मामला सुप्रीम कोर्ट में

मोदी सरकार की ओर से कि 2016 में की गई नोटबंदी का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर की अगुवाई वाली 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने केंद्र और आरबीआई को नोटिस जारी करके इस फैसले के संबंध में जवाब मांगा है। इस मामले को लेकर 9 नवंबर को शीर्ष अदालत में फिर सुनवाई होनी है।

मामले की सुनवाई के दौरान पीठ का कहना था कि मुख्य सवाल यह है कि क्या सरकार के पास आरबीआई अधिनियम की धारा 26 के तहत 500 और 1000 के सभी नोटों को बंद करने का अधिकार है? क्या देश में नोटबंदी को लागू करने की प्रक्रिया उचित थी? पीठ ने यह भी कहा कि इस बाबत आने वाली पीढ़ियों के लिए एक कानून तय किया जा सकता है।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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