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Desi ghee: देसी घी आखिर है क्या? असलियत भी जान लीजिये

Desi ghee: दूध से मिलने वाले फैट से कहीं ज्यादा फैट वनस्पति से मिलता है और काफी सस्ता भी होता है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 21 Sept 2024 12:04 PM IST (Updated on: 21 Sept 2024 12:06 PM IST)
देसी घी
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देसी घी  (photo: social media )

Desi ghee: तिरुपति देवस्थानम के विश्वप्रसिद्ध महाप्रसाद लड्डुओं को बनाने में लगे देसी घी में मिलावट यकीनन बेहद शर्मनाक और गम्भीर मसला है। वैसे, सिर्फ मन्दिर के ही लड्डू क्यों, खाने पीने की किसी भी चीज भी कैसी भी मिलावट बहुत गम्भीर अपराध है।

खैर, बात यहां देसी घी की है। तो इसकी मुख्य वजह भारत में दूध और वनस्पति वसा यानी वेजिटेबल फैट के बीच कीमत का बड़ा फर्क है। कीमत में भारी अंतर के कारण बेईमान निर्माताओं द्वारा घी में दूसरे फैट मिलाए जाने की संभावना स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है।

दूध फैट यानी दूध में व्याप्त फैट जो मलाई के रूप में नजर आता है। गाय के दूध में फैट की मात्रा भैंस के दूध की अपेक्षा थोड़ी कम होती है। वनस्पति फैट वह है जो अमूमन तिलहन, मूंगफली, सूरजमुखी आदि से निकले तेल में होता है। सो, दूध से मिलने वाले फैट से कहीं ज्यादा फैट वनस्पति से मिलता है और काफी सस्ता भी होता है। यही वजह है वनस्पति घी और दूध से बने घी के दाम में अंतर है।

क्या है कीमत?

रिफाइंड पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल अब 120 से 125 रुपये प्रति किलोग्राम पर थोक में बिक रहे हैं जबकि इससे महंगे देसी रेपसीड, सरसों और मूंगफली के तेल के थोक मूल्य 135 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम है। फैट तेल और भी सस्ता है - सिर्फ 80 से 85 रुपये प्रति किलोग्राम।


दूध फैट है महंगा

दूध फैट की उपलब्धता अपेक्षाकृत कम है और ये काफी महंगा भी है। आंकड़ों के मुताबिक सहकारी डेयरियाँ औसतन 600 लाख किलोग्राम प्रतिदिन दूध खरीदती हैं। इसमें से, वे लगभग 450 लाख किलो तरल दूध के रूप में और संभवतः 50 लाख किलो दही, लस्सी और अन्य उत्पादों के रूप में बेचते हैं।

इससे लगभग 100 लाख किलो दूध के अन्य प्रोडक्ट के निर्माण के लिए बचता है, जैसे स्किम्ड मिल्क पाउडर और मिल्क फैट। निजी डेयरियाँ भी बराबर मात्रा में दूध पाउडर और मिल्क फैट की प्रोसेसिंग करती हैं।

भैंस और गाय के दूध के लिए औसत 5 फीसदी फैट की मात्रा को ध्यान में रखते हुए जोड़ें तो 200 लाख किलो दूध से सहकारी और निजी डेयरियों द्वारा सालाना 3.65 लाख टन घी उत्पादन होगा। इस आंकड़े की तुलना वनस्पति तेलों की 250-260 लाख लीटर उपलब्धता से करें, जिसमें 150 से 160 लाख लीटर आयात और 100-105 लाख लीटर घरेलू स्रोतों से उत्पादन शामिल है।

जाहिर सी बात है कि इस कैलकुलेशन में देसी घी अपेक्षाकृत दुर्लभ और प्रीमियम फैट हो जाता है।


बड़ी डेयरियों का हाल

अमूल, नंदिनी (कर्नाटक), आविन (तमिलनाडु) जैसी बड़े सहकारी संगठनों को थोक में घी बेचने से कहीं ज्यादा फायदा आइसक्रीम में मिल्क फैट के इस्तेमाल और फुटकर देसी घी पैकेट में होता है। अमूल हर महीने कंज़्यूमर पैक में 9,000 -10,000 टन घी बेचता है, नंदिनी लगभग 3,000 टन और आविन लगभग 1,500 टन बेचता है। पतंजलि आयुर्वेद की बिक्री, जो पाँच साल पहले प्रति माह 2,500 टन थी, अब घटकर पाँचवाँ हिस्सा रह गई है।

कंज्यूमर पैक में बेचे जाने वाले घी (12 फीसदी जीएसटी सहित) की अधिकतम खुदरा कीमत 600 रुपये से 750 रुपये प्रति लीटर तक है, जिसमें एक लीटर में सिर्फ़ 910 ग्राम घी होता है।

ऐसे में अगर कोई सालाना 5,000 टन खरीदना चाहे तो वो बड़ी बात है। तिरुमला देवस्थानम में घी खरीद के लिए नीलामी प्रक्रिया में सबसे कम बोली लगाने वाले को सप्लाई ठेका मिलता है, सो ये बहुत मुमकिन है कि सस्ता माल शायद सबसे अच्छे नतीजे न दे। आज 475 रुपये प्रति किलोग्राम से कम कीमत पर आपूर्ति किया जाने वाला कोई भी घी मिलावट का पता लगाने के लिए मानक गैस क्रोमैटोग्राफी परीक्षण में फेल होने की संभावना है।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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