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Maharashtra: शिंदे के साथ फडणवीस को दिखानी होगी सियासी बाजीगरी, भाजपा क्यों नहीं करना चाहती नाराज

Maharashtra: मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र की कमान संभाल ली है जबकि अभी तक मुख्यमंत्री रहे एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली है।

Anshuman Tiwari
Published on: 6 Dec 2024 9:06 AM IST
Maharashtra: शिंदे के साथ फडणवीस को दिखानी होगी सियासी बाजीगरी, भाजपा क्यों नहीं करना चाहती नाराज
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Maharashtra: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद नई सरकार का गठन हो गया है। मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र की कमान संभाल ली है जबकि अभी तक मुख्यमंत्री रहे एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली है। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान शिंदे सहज नहीं दिखे। उनकी बॉडी लैंग्वेज से ही यह बात साफ हो गई कि उन्होंने मन मारकर डिप्टी सीएम पद पर समझौता किया है। हालांकि यह भी सच्चाई है कि भाजपा नेतृत्व शिंदे को नाराज नहीं करना चाहता और इसके भी पीछे बड़े सियासी कारण हैं।

मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस के सामने शिंदे को डिप्टी सीएम के रूप में साथ बनाए रखने और उन्हें संतुष्ट करने की बड़ी चुनौती होगी। हालांकि मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही फडणवीस ने कहा कि मंत्रिमंडल के बारे में फैसला हम तीनों मिल बैठकर करेंगे। आईसीसी जानकारों का मानना है कि शिंदे सेना की ओर से बीच-बीच में फडणवीस पर दबाव बनाने की कोशिश की जाएगी जिससे निपटना फडणवीस के लिए चुनौती पूर्ण काम होगा।

शिंदे को साधे रखना फडणवीस के लिए चुनौती

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद शिंदे की निगाह मुख्यमंत्री पद पर थी। शिंदे और उनकी पार्टी की ओर से लगातार यह दावा किया जा रहा था कि उनके नेतृत्व में ही लड़ाई लड़कर महायुति ने इतनी बड़ी जीत हासिल की है मगर 132 सीटें जीतने के बाद भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस बार 2022 की तरह मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार नहीं था। इसी कारण शिंदे को पहले ही इस बात का सिग्नल दे दिया गया था कि इस बार मुख्यमंत्री बीजेपी का ही होगा।


कई दिनों तक सस्पेंस कायम रखने के बाद आखिरकार शिंदे डिप्टी सीएम पद पर शपथ लेने के लिए जरूर तैयार हो गए मगर उनके साथ सामंजस्य से बैठा कर सरकार को चलाने में फडणवीस को सियासी बाजीगरी दिखानी होगी। दरअसल अजित पवार के साथ तो फडणवीस की अच्छी ट्यूनिंग दिख रही है मगर भीतर ही भीतर नाराज चल रहे शिंदे को साथ बनाए रखना फडणवीस के लिए आसान नहीं साबित होगा। वैसे जानकारों का कहना है कि फडणवीस सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं और हाईकमान की मदद से वे शिंदे को काबू में रखने में कामयाब होंगे।

शिंदे को नाराज नहीं करना चाहती बीजेपी

वैसे यह भी सच्चाई है कि भाजपा ने मुख्यमंत्री पद भले ही हासिल कर लिया हो मगर वह शिंदे को नाराज नहीं करना चाहती। विधानसभा चुनाव की तरह भाजपा शिंदे को आगे भी अपने साथ बनाए रखना चाहती है और इसके पीछे कई महत्वपूर्ण राजनीतिक कारण माने जा रहे हैं।

भाजपा ने इस बार 132 सीटों पर जीत हासिल की है और एक निर्दलीय ने पहले ही भाजपा सरकार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। महाराष्ट्र में बहुमत का आंकड़ा 145 सीटों का है और ऐसे में भाजपा बहुमत के आंकड़े से बहुत ज्यादा पीछे नहीं है। अजित पवार के समर्थन से पार्टी आसानी से बहुमत साबित करने में कामयाब हो सकती है मगर इसके बावजूद पार्टी शिंदे को अपने साथ बनाए रखना चाहती है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर वह कौन से कारण है जिनकी वजह से पार्टी शिंदे को नाराज नहीं करना चाहती।

मराठा समुदाय के नाराज होने का जोखिम

दरअसल महाराष्ट्र में शिंदे की छवि एक मजबूत मराठा नेता के रूप में है। इसलिए देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने के बाद भाजपा इस बात को लेकर भी सतर्क है कि मराठाओं के बीच किसी भी प्रकार का नकारात्मक संदेश न जाए। महाराष्ट्र की आबादी करीब 13 करोड़ बताई जाती है और उनमें से 28 फ़ीसदी मराठा समुदाय के लोग हैं। राज्य की लगभग चार दर्जन विधानसभा सीटों पर मराठा बिरादरी का प्रभुत्व माना जाता रहा है। ऐसे में भाजपा मराठा समुदाय को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती।


शिंदे के साथ केंद्र सरकार का समीकरण भी जुड़ा हुआ है। पिछले लोकसभा चुनाव में शिंदे की पार्टी के साथ नेताओं ने चुनाव जीता था। शिंदे का साथ छूटने पर केंद्र की मोदी सरकार भी कमजोर हो जाएगी और एनडीए से एक मजबूत साथी की विदाई भी हो जाएगी। ऐसे में पार्टी आगे भी शिंदे को अपने साथ बनाए रखना चाहती है।

बीएमसी चुनाव पर भी भाजपा की निगाहें

महाराष्ट्र में जल्द ही स्थानीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं। बीएमसी को देश की सबसे बड़ी म्युनिसिपल बॉडी माना जाता है और इसका सालाना बजट करीब 60 हजार करोड़ रुपए का है। बीएमसी में मौजूदा समय में शिवसेना के उद्धव गुट का प्रभुत्व है। जानकारों का कहना है कि बीएमसी के चुनाव में उद्धव गुट को चुनौती देने के लिए शिंदे सेना का साथ होना जरूरी है। ऐसे में भाजपा शिंदे को अपने साथ बनाए रखकर बीएमसी से उद्धव गुट का पांव उखाड़ना चाहती है।

उद्धव गुट को और झटका देने की तैयारी

भाजपा एकनाथ शिंदे को इसलिए भी नाराज नहीं करना चाहती क्योंकि इससे उद्धव गुट को मजबूती मिलेगी। 2019 में उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा से अपनी राहें अलग कर ली थीं। भाजपा तभी से उद्धव ठाकरे को सबक सिखाने की कोशिश में जुटी हुई है। भाजपा का यह सपना शिवसेना में हुई बगावत के समय पूरा हो चुका है। मौजूदा विधानसभा चुनाव में भी उद्धव गुट को बड़ा झटका लगा है और पार्टी सिर्फ 16 सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है। बीजेपी आगे भी उद्धव गुट को मजबूत नहीं होने देना चाहती।


भाजपा नहीं देना चाहती नकारात्मक संदेश

शिंदे की नाराजगी से लोगों के बीच नकारात्मक संदेश जाएगा। विपक्ष के कई नेता भाजपा पर यूज एंड थ्रो का आरोप लगाते रहे हैं और शिंदे की नाराजगी विपक्ष के इस आरोप को सही साबित करने वाली होगी। ऐसे में पार्टी शिंदे को साथ बनाए रखकर निकाय चुनाव के दौरान उद्धव गुट को एक और करारी चोट देना चाहती है। इन्हीं सब कारणों से भाजपा शिंदे के नाज नखरे भी बर्दाश्त कर रही है। सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व आगे भी शिंदे को साधे रखकर महाराष्ट्र में अपना समीकरण दुरुस्त बनाए रखना चाहता है। फडणवीस को इस काम में सियासी बाजीगरी दिखानी होगी और उनकी मदद करने के लिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह तैयार बैठा है।



Sonali kesarwani

Sonali kesarwani

Content Writer

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