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सबसे मजेदार होली यहांः बेहद खास तरीके से मनाते हैं लोग, दुनियाभर में है प्रसिद्ध

अष्टमी के दिन नंदगांव व बरसाने का एक-एक व्यक्ति गांव जाकर होली खेलने का निमंत्रण देता है। और नवमी में सभी राधारानी मंदिर के दर्शन करने के बाद लट्ठमार होली खेलने के लिए रंगीली गली चौक में जमा होते हैं।

Newstrack
Published on: 27 March 2021 11:30 AM GMT
सबसे मजेदार होली यहांः बेहद खास तरीके से मनाते हैं लोग, दुनियाभर में है प्रसिद्ध
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सबसे मजेदार होली यहां

नई दिल्ली: 29 मार्च को पूरा देश होली के रंगों में डूबा रहेगा। बच्चे-बड़े सभी होली के रंग में रंग जाएंगे। हर जगह होली को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। लेकिन रंग को हर किसी में अहम माना जाता है। क्या आप जानते है कि मथुरा, अयोध्या, काशी और प्रयाग में होली को कितने भव्य और एक अलग तरीके से मनाया जाता है। अगर नहीं, तो हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं।

मथुरा की खास होली

मथुरा-वृंदावन की होली विदेशों में भी काफी प्रसिद्ध है। यहां की होली के जश्न को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते है। और इसकी वजह है लट्ठमार होली। जो हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को खेली जाती है। माना जाता है कि इसी दिन श्री कृष्ण राधा रानी के गांव होली खेलने गए। अष्टमी के दिन नंदगांव व बरसाने का एक-एक व्यक्ति गांव जाकर होली खेलने का निमंत्रण देता है। और नवमी में सभी राधारानी मंदिर के दर्शन करने के बाद लट्ठमार होली खेलने के लिए रंगीली गली चौक में जमा होते हैं।

लट्ठमार होली है खास

लट्ठमार होली में महिलाएं नंदगांव के पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं और वह ढाल लेकर अपना बचाव करते हैं। होली खेलने वाले पुरुषों को होरियारे और महिलाओं को हुरियारिनें कहा जाता है। साथ ही नंदगांव के पुरुष बरसाने में स्थित राधा के मंदिर पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, और महिलाएं उन्हें लट्ठ से खदेड़ने का प्रयास करती हैं।

जिसमें पुरुष महिलाओं पर केवल गुलाल छिड़ककर उन्हें चकमा देकर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं। और पकड़े जाने पर उनकी जमकर पिटाई होती है। फिर महिलाओं के कपड़ें पहनाकर श्रृंगार करके उन्हें सामूहिक रूप से नचाया जाता है।

अयोध्या की होली

अयोध्या के मंदिरों में रंग गुलाल से प्रभु राम के विग्रहों को रंग कर होली की शुरूआत की जाती है, जिसमें महिलाएं हिस्सा नहीं लेतीं। अयोध्‍या की होली परम्परागत शैली में होती है जहां पर मंदिरों में संतों द्वारा रचित होली गीत गाए जातें हैं और अबीर गुलाल से होली खेली जाती है। यहां पर उत्सव भव्य आयोजित न होकर परंपरागत तरीके से मना लिया जाता है। वहीं अयोध्‍या में होली का पर्व बसंत पंचमी से होलिकोत्‍सव तक चलता है।

रंगभरी एकादशी को निकलता है जुलूस

हनुमानगढ़ी में वर्षो से रंगभरी एकादशी का उत्‍सव मनाया जा रहा है। यहां पर मंदिरों के संत महंत हनुमानजी को अयोध्या का रक्षक मान कर, उनसे होली खेलते हैं। और संतों व नागा साधुओं का जुलूस अबीर गुलाल उड़ाते हुए सरयू घाट पहुंचकर पांच कोस की परिक्रमा करता है।

काशी में सदियों की परंपरा

भगवान शिव की धरती काशी में हर साल रंगभरनी एकादशी के मौके पर भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं और फिर पार्वतीजी का गौना होता है फिर पालकी में सवार होकर माता पार्वती और शिवजी का डोला विश्व नाथ मंदिर पहुंचता है।

विवाहित महिलाएं माता पार्वती को गुलाल लगाकर शिवजी जैसा वर मांगती हैं। होली की शुरुआत काशी में रंगभरनी एकादशी से मानी जाती है। रंगभरनी एकादशी की यह परंपरा 357 वर्षों से काशी में निभाई जा रही है।

प्रयागराज की पारंपरिक होली

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में होली को खास अंदाज में मनाए जाने की परंपरा है। एक ओर भारद्वाज मुनि के होली मनाने का शास्त्रों में उल्लेख मिलता है तो वहीं दूसरी ओर आधुनिक प्रयागराज में साहित्यिक होली की समृद्ध परंपरा भी विकसित हुई है। यहां पर कई वर्षों से महामूर्ख सम्मेलन और हथौड़ा बारात निकालने की भी परंपरा चली आ रही है।

तीन दिनों तक होली का खुमार

प्रयागराज में तीन दिनों तक लोगों पर होली का खुमार छाया रहता है। यहां पहले दिन आम लोगों की होली खेली जाती है, वहीं दूसरे दिन चौक इलाके की कपड़ा फाड़ होली होती है। घरों के ऊपर से रंगों की बौछार की जाती है और लोग सड़कों पर झूमते नजर आते हैं। वहीं तीसरे दिन ठठेरी बाजार की होली होती है, जो चौक की गलियों में खेली जाती है।

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