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उत्तराखंड: कुछ आपदा ने लूटा, कुछ ऑल वेदर रोड ले जाएगा

raghvendra
Published on: 9 March 2018 4:44 PM IST
उत्तराखंड: कुछ आपदा ने लूटा, कुछ ऑल वेदर रोड ले जाएगा
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देहरादून: उत्तराखंड के ऊंचाईवालों इलाकों में कई मार्गों पर इस समय मशीनी गूंज सुनाई दे रही है। ये हथियार राज्य के पेड़ों को अंधाधुंध काट रहे हैं। इन वृक्षों की कीमत पर राज्य में अति महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ऑल वेदर रोड बनाई जाएगी।

पेड़ों के कटान के मामले में एक जनहित याचिका पर एनजीटी ने उत्तराखंड शासन को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। पूछा गया है कि ऑल वेदर रोड उत्तराखंड के लिए कितनी जरूरी है। अगर इसका निर्माण हो भी रहा है तो जो तरीका अपनाया जा रहा है, क्या वो सही है और क्या इसकी पड़ताल की जा रही है। याचिका में ऑल वेदर रोड के निर्माण के लिए हजारों पेड़ों की अंधाधुंध कटान से जैव विविधता को खतरे और पारिस्थितकीय संतुलन बिगडऩे की आशंका जताई गई है।

भूस्खलन व भूकंप की आशंका गहराई

उत्तरकाशी के वन प्रभागीय अधिकारी संदीप कुमार ने भी सीधे सुक्खी बैंड से झाला पुल के लिए सडक़ निर्माण होने और पेड़ों की गिनती और छपान की पुष्टि की है। ग्रामीणों को आशंका है कि भागीरथी के किनारे-किनारे गांवों की तलहटी में सडक़ काटने से भूस्खलन और भूकंप की समस्या बढ़ेगी। भागीरथी के किनारे शताब्दियों से पल रहे हजारों देवदार आदि प्रजाति के हरे पेड़ इस नई सडक़ को बनाने के लिए काट दिए जाएंगे। गंगोत्री जाने वाले यात्रियों के कारण जसपुर में जो छोटा सा कस्बा आबाद हुआ है। जहां यात्री जलपान करते हैं और स्थानीय लोगों की थोड़ी कमाई होती है वह भी नई सडक़ बनने से समाप्त हो जाएगा।

आंदोलन की तैयारी में लोग

हर्षिल क्षेत्र के लोग आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। लोगों की नाराजगी इस बात पर है कि सरकार सरकार गांवों की बुनियादी सुविधाओं की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है। ऑल वेदर रोड पर्यटकों के लिए बनायी जा रही है। पेड़ों के इतने बड़े पैमाने पर कटान के बाद उनकी जगह नए पेड़ों को पनपने में पीढिय़ां लग जाएंगी। सरकार की ये योजनाएं उनके नमामि गंगे प्रोजेक्ट पर भी सवाल खड़े करती हैं। एक तरफ नमामि गंगे है और दूसरी ओर गंगा के किनारों को हरा भरा करने की जगह उजाड़ा जा रहा है।

नियम है डंपिंग जोन बनाने का

सडक परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा 2004 में प्रकाशित नियमों के अनुसार मलबा सीधे नदी में डालने के बजाय डंपिंग जोन बनाए जाने चाहिए। डंपिंग जोन में मलबा डालकर वहां जंगल व खेती योग्य जमीन विकसित की जानी चाहिये। लेकिन उत्तराखंड में निर्माण कार्यों के दौरान इन नियमों की अनदेखी की जा रही है।

ग्रीन टेक्नालाजी संभव नहीं

ऑल वेदर रोड के नोडल अधिकारी और पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता हरिओम शर्मा का कहना है कि नेशनल हाईवे के बड़े प्रोजेक्ट में ग्रीन टेक्नलॉजी से सडक़ निर्माण संभव नहीं होता।

वे बताते हैं कि ग्रीन टेक्नॉलाजी में कम से कम विस्फोट की कोशिश होती है। सडक़ के डिजायन को ऐसा बनाते हैं कि उससे जंगल का नुकसान कम हो। साथ ही जो कट मटीरियल होता है उसे सडक़ निर्माण में ही इस्तेमाल कर लिया जाए। नोडल अधिकारी हरिओम शर्मा के मुताबिक छोटी सडक़ों या सडक़ों पर आए पैच को भरने के लिए तो ऐसा किया जा सकता है लेकिन ऑल वेदर रोड के निर्माण में ये मुमकिन नहीं है।

डंपिंग जोन में मलबा न गिराने की नोटिस

सडक़ निर्माण के दौरान मलबा डंपिंग ज़ोन में न गिराए जाने पर ऑल वेदर रोड के नोडल अधिकारी का कहना है कि जो भी ठेकेदार ऐसा नहीं कर रहा हम उसे नोटिस दे रहे हैं। वे दावा करते हैं कि चार धाम सडक़ परियोजना में जो बेकार मलबा है उसे डंपिंग जोन में ही डाला जाना सुनिश्चित किया जा रहा है। शर्मा के मुताबिक वन विभाग से जो जमीन हस्तांतरित हुई है डंपिंग जोन उसमें शामिल हैं। उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट मे उनके विभाग द्वारा जितने भी पेड़ काटे जा रहे हैं उसके हर्जाने के तौर पर वन विभाग को पौधरोपण के लिए भुगतान भी किया जा रहा है।

प्रोजेक्ट की अद्यतन स्थिति

900 किलोमीटर लंबी ऑल वेदर रोड में अभी तक आए लैंड ट्रांसफर के प्रस्तावों के तहत कुल 54217 किलोमीटर लंबाई में 64813 हेक्टेयर वन भूमि प्रोजेक्ट में जा रही है। प्रोजेक्ट के लिए 44,776 पेड़ काटे जाएंगे। 54217 में से 450 किलोमीटर वन भूमि अभी तक प्रोजेक्ट को ट्रांसफर हो चुकी है। जिसमें से 416 किलोमीटर लंबाई में वृक्षों का पातन पूरा हो चुका है। 38,751 पेड़ों को काटने की सैद्धांतिक स्वीकृति मिल चुकी है, जिनमें से 33,908 पेड़ अभी तक काटे जा चुके हैं।

आल वेदर रोड योजना के तहत चारधाम को वर्ष में 12 महीने आवागमन के लिए सुगम बनाना और चीन की सीमा तक अच्छी और पक्की सडक़ का निर्माण करना है। पड़ोसी राष्ट्र चीन को देखते हुए ये सडक़ सामरिक महत्व की भी है। इस योजना पर 12 हजार करोड़ रुपये की लागत आएगी और कुल नौ सौ किलोमीटर लंम्बी सडक़ बनेगी जो यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को आपस में जोड़ेगा।

गडकरी को दी गई रिपोर्ट

ऑल वेदर रोड के निर्माण के तरीके पर सवाल उठाते हुए उत्तरकाशी के पर्यावरण कार्यकर्ता सुरेश भाई ने केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को एक रिपोर्ट दी। सुरेश भाई और उनके साथियों ने ऐसे कई क्षेत्रों का दौरा किया जहां ऑल वेदर रोड के चलते लोग और जंगल प्रभावित हो रहे हैं। सुरेश भाई का कहना है कि गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ को जाने वाले मोटर मार्गों को ऑल वेदर रोड के नाम पर 10 से 24 मीटर तक चौड़ा करने की केन्द्र सरकार की योजना सामने आने के बाद जो दृश्य उभर रहा है, वो विचलित करने वाला है। ऋषिकेश से प्रांरभ होने वाले चार धाम मार्गों के दोनों तरफ पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। गंगोत्री में देवदार के हजारों हरे पेड़ों पर छपान किया गया है। सडक़ चौड़ीकरण के नाम पर देवदार के अतिरिक्त बाँझ, बुराँस, तुन, सीरस, उत्तीस, चीड़, पीपल आदि के पेड़ भी वन निगम काट रहा है। खतरा है कि उत्तरकाशी से गंगोत्री तक सडक़ चौड़ीकरण के चलते सैकड़ों परिवारों को विस्थापित होना पड़ेगा। केदारनाथ आपदा झेल चुके उत्तरकाशी के भटवाड़ी गांव समेत कई गांवों के लोगों में अब यही डर समाया हुआ है।

भटवाड़ी गांव के घरों में सडक़ चौड़ी करने के लिए किए गए विस्फोटों के चलते दरारें पड़ी हुई हैं। बारिश का मौसम यहां डरावना होता है। लोग अपने घरों में ही खुद को सुरक्षित नहीं पाते। भटवाड़ी बाजार में कुछ लोगों की दुकानें, होटल और ऐसी ही दूसरी संपत्ति भी ऑल वेदर रोड की जद में आएगी। ये वो गांव है जिन्हें लोहारी नागपाला जल विद्युत परियोजना के समय से अब तक न्याय नहीं मिला।

मलबा और लोल्डर घाटियों में लुढक़ाने से नुकसान ज्यादा

उत्तरकाशी के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नागेन्द्र जगूड़ी के मुताबिक समस्या सिर्फ पेड़ काटने भर की नहीं है बल्कि सडक़ निर्माण का मलबा और बोल्डर जिस तरह से सीधे नदियों और ढलान में डाला जा रहा है, उससे सडक़ के किनारे का जंगल नष्ट हो जाएगा। वे आशंका जताते हैं कि सडक़ निर्माण के लिए जितने पेड़ों का छपान कर बताया जाता है कि इतने ही पेड़ सडक़ निर्माण में कटेंगे या उससे कहीं अधिक पेड़ मलबा, पत्थर और बोल्डर गिरने से दब और टूट जाते हैं। नागेन्द्र जगूड़ी ने बताया कि मलबे से दबने के कारण ही जड़ीढ़ूंग और धरासू के आसपास का पूरा जंगल ही समाप्त हो गया है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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