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दीपावली 2018: त्योहार पर इसलिए फोड़े जाते हैं पटाखे
लखनऊ: धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया जैसे त्योहार लगातार मनाए जाते हैं, जिसके कारण दीपावली को पांच पर्वों का अनूठा त्योहार भी माना जाता है। दीपावली रोशनी का त्योहार माना जाता है, जोकि हर साल शरद ऋतु में मनाया जाता है। यही नहीं, इस त्योहार की गिनती देश के बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में भी होती है।
क्यों मनाई जाती है दीपावली?
इस त्योहार का इतिहास पुराना है। हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने में गर्मी की फसल के बाद के त्योहार के रूप में दीपावली को मनाया जाता है। संस्कृत ग्रंथों में इस पर्व का उल्लेख मिलता है। बता दें, कुछ लोग दीपावली मनाने के पीछे एक अलग धारणा रखते हैं। ये लोग इस पर्व को यम और नचिकेता की कथा के साथ जोड़ते हैं।
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नचिकेता की कथा सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है। वहीं, दीपावली भगवान राम की असुरराज रावण को मारकर अयोध्या वापस आने की ख़ुशी में मनाई जाती है। इस दिन अयोध्यावासियों ने पूरे नगर को दीयों से दुल्हन की तरह सजा दिया था।
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दीपावली मनाने के पीछे एक और कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि एक राजा को ज्योतिषी ने कहा था कि कार्तिक की अमावस्या की आधी रात को एक सांप उसके आभाग्य के रूप में आएगा। यह सुनकर राजा थोड़ा डर गया और उसने तुरंत पूरे राज्य को आदेश दिया कि सभी लोग अपने-अपने घरों को अच्छी तरह से साफ़ करके पूरा शहर रातभर रोशनी से जगमगाए रखें।
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उधर, रानी ने सर्प देवता का गुणगान करना शुरू कर दिया। रानी पूरी रात जगी रही और सर्प देवता का गुणगान करती रही। मगर अचानक से राजा के बिस्तर के पास रखा हुआ दीप बुझ गया। ऐसे में सांप ने राजा को डस लिया, जिससे राजा की मृत्यु हो गई। मगर सर्प देवता रानी की आवाज सुनकर काफी खुश हुआ और उसने रानी से कोई वर मांगने को कहा।
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इसपर रानी ने अपने पति का जीवनदान मांगा। ऐसी स्थिति में सर्प देवता यमराज के पास राजा के प्राण वापस लेने पहुंच गए। मगर जब यमराज ने राजा का जीवनमंत्र पढ़ा तो पाया कि उसमें शून्य लिखा है, यानि राजा का जीवन समाप्त हो चुका है लेकिन सर्प देवता ने चतुराई दिखाते हुए शून्य के आगे 7 लगा दिया, जिससे राजा की आयु 70 साल और बढ़ गई।
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जब यमराज ने जीवनमंत्र दोबारा देखा तो उसने सर्प देवता से तुरंत ही राजा के प्राण वापस ले जाने को कहा। इस तरह सर्प देवता राजा के प्राण वापस ले आए। कहा जाता है कि राजा के दोबारा जीवित होने के बाद से दीपावली मनाई जाने लगी।
दीवाली में इसलिए होती है मां लक्ष्मी संग भगवान गणेश की पूजा
दीपावली पर हम सभी मां लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं। दरअसल, मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी घर में वास करती हैं। ये भी कहा जाता है कि अगर दीपावली वाले दिन आप मां लक्ष्मी को खुश कर लेंगे तो आपको कभी धन की कमी नहीं होगी। वहीं, भगवान गणेश को बुद्धि और विवेक का प्रतीक माना जाता है।
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मगर आप सोच रहे होंगे कि जब दोनों दो अलग-अलग चीजों के प्रतीक हैं तो एकसाथ क्यों पूजे जाते हैं। दरअसल, हर एक हर त्योहार और उसे मनाने के तरीके के पीछे एक कहानी होती है। मां लक्ष्मी संग भगवान गणेश की पूजा करने के पीछे भी एक कहानी है। इस कहानी की माने तो एक बार एक वैरागी साधु को राजसुख भोगने की इच्छा जागृत हुई।
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ऐसी स्थिति में उसने मां लक्ष्मी की आराधना शुरू कर दी। साधु की आराधना से मां लक्ष्मी काफी प्रसन्न हो गईं, जिसके बाद मां ने उस साधु को वरदान दिया कि उसे जल्द से जल्द उच्च पद और सम्मान प्राप्त होगा। जैसे ही मां लक्ष्मी ने साधु को वरदान दिया, वैसे ही साधु को अपने ऊपर अभिमान हो गया। इसलिए वरदान प्राप्त करते ही वह राज दरबार जा पहुंचा।
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यहां साधु ने राजा को भरे दरबार में धक्का मार दिया, जिसके कारण राजा का मुकुट नीचे गिर गया। मुकुट के नीचे गिरते ही उसमें से एक काला सांप निकला। सांप के निकलने से दरबार में मौजूद सभी लोग साधु को एक चमत्कारी बाबा समझने लगे। इसके बाद राजा ने साधु को मंत्री पद दे दिया।
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फिर एक दिन साधु राजा का हाथ पकड़कर उसे बाहर ले आया, जिसकी वजह से सभी मंत्रीगण राजा के पीछे बाहर आ गए। जैसे ही सब लोग बाहर आए वैसे ही पूरा महल भूकंप के झटकों से गिर गया। साधु का मान-सम्मान इसके बाद और बढ़ गया। साधु का मान बढ़ने से उसका अंहकार भी लगातार बढ़ता जा रहा था।
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अपने अहंकार के चलते उसने एक दिन आदेश दिया कि महल से भगवान गणेश की मूर्ति हटा दी जाए। इस बात से भगवान गणेश साधु से गुस्सा हो गए। फिर क्या था। इसके बाद साधु के सारे काम एक के बाद एक बिगड़ते गए और फिर अंत में राजा ने उससे नाराज होकर उसे जेल में कैद कर दिया।
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जेल में कैद होने के बाद साधु वापस से मां लक्ष्मी की आराधना करने लगा। इसपर मां प्रकट हुईं और क्रोध में बोलीं कि उसने भगवान गणेश को रुष्ट कर दिया है। अब उसे भगवान गणेश को मनाने के लिए उनकी आराधना करनी पड़ेगी। इसके बाद साधु भगवान गणेश की आरधना करने लगा, जिसके बाद भगवान का गुस्सा शांत हो गया।
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इसके बाद भगवान राजा के सपने में प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि अब साधु को छोड़ देना चाहिए और उसे वापस से मंत्री बना लेना चाहिए। ऐसे में राजा ने तत्काल सुबह उठाते ही वैसा ही किया जो उसने अपने सपने में देखा था। इस तरह मां लक्ष्मी के साथ ही भगवान गणेश की पूजा की जाती है। ये भी मान्यता है कि कभी भी धन-दौलत बुद्धि के बिना नहीं आती है। इस वजह से ही मां लक्ष्मी संग भगवान गणेश की पूजा होती है।
दीपावली पर क्यों बजाए जाते हैं पटाखे?
पुराणों की बात करें तो किसी भी ग्रंथ में इस पर्व पर सिर्फ दीप जलाने की बात है। दीपावली पर पटाखे बजाने की रीति ज्यादा पुरानी नहीं है। पहले सिर्फ दीप जलाकर ही यह त्योहार मनाया जाता था। मगर जब मुगल शासक बाबर भारत आए, तब बारूद भी अपने देश आया क्योंकि जब बाबर की लड़ाई राणा सांघा से होनी थी, तब पहली बाबर पहली बार तोप और बारूद भारत लेकर आए थे।
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मगर जैसे ही धीरे-धीरे लड़ाइयों में इसका इस्तेमाल कम हो गया, वैसे ही यह बात सबके मन में आई कि अब बारूद का क्या होगा। फिर धीरे-धीरे लोग बारूद से रोजगार के अवसर ढूंढने लगे। ऐसी स्थिति पटाखों का जन्म हुआ। फिर पटाखे की इंडस्ट्री ने अपने पैर पसारना शुरू किए। तब लोगों को इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि एक दिन यह हमारे पर्यावरण को काफी तेजी से नुकसान पहुंचाने लगेगा। पटाखों में बारूद के इस्तेमाल से न सिर्फ लोगों को रोजगार मिलना शुरू हुआ, बल्कि इसे दीपावली के त्योहार से जोड़ दिया गया।
पटाखों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (23 अक्टूबर) को देश में पटाखों के निर्माण, बिक्री और अपने पास रखने के संबंध में प्रतिबंध लगाने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने पटाखों पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई है। कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ पटाखों की बिक्री को मंजूरी दी है। कोर्ट ने कहा कि पटाखों की ऑनलाइन बिक्री नहीं होगी।
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साथ ही, जिनके पास लाइसेंस है, सिर्फ वो ही पटाखों की बिक्री कर सकेंगे। कोर्ट ने ये भी कहा कि जो पटाखें कम शोर मचाते हैं सिर्फ उनकी ही बिक्री होगी। कोर्ट ने ये भी कहा कि दीपावली की रात 8 बजे से 10 बजे तक ही पटाखें फोड़े जा सकेंगे। कोर्ट ने कहा कि प्रशासन ऐसे इलाकों की पहचान करेंगे जहां सामूहिक रूप से पटाखे जलाए जा सकें और यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोगों को इस बारे में जानकारी हो।
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कोर्ट ने कहा कि पुलिस थाना प्रभारी इस आदेश के अनुपालन को सुनिश्चित करवाने के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे। कोर्ट ने लड़ी वाले पटाखों पर भी प्रतिबंध लगाया है।केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीबीसीबी) के वकील विजय पंजवानी ने इस फैसले को संतुलित बताया। वहीं, पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध का दबाव बना रहे वकीलों ने कहा कि स्पष्ट व्यावहारिक कारणों से अदालत के आदेश को लागू करना मुश्किल होगा।