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Periyar Jayanti: जानिए पेरियार के बारे में जिनकी दक्षिण भारत में की जाती है पूजा

Periyar Jayanti: इरोड वेंकटप्पा रामासामी नायकर जो पेरियार के रूप में ज्यादा जाने जाते हैं, आज उनकी जयंती है। उन्हें दक्षिण भारत में बड़ा समाज सुधारक माना जाता है। उन्होंने हमेशा हिंदू धर्म की बहुत सी बातों, जातिप्रथा, ऊंच-नीच और मूर्ति पूजा का विरोध किया।

Neel Mani Lal
Published on: 17 Sept 2022 4:03 PM IST
Periyar Jayanti News
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Periyar Jayanti News (image social media)

Periyar Jayanti: इरोड वेंकटप्पा रामासामी नायकर जो पेरियार के रूप में ज्यादा जाने जाते हैं, आज उनकी जयंती है। उन्हें दक्षिण भारत में बहुत बड़ा समाज सुधारक माना जाता है। उन्होंने हमेशा हिंदू धर्म की बहुत सी बातों, जातिप्रथा, ऊंच-नीच और मूर्ति पूजा का विरोध किया। उनका असली नाम इरोड वेंकट नायकर रामासामी था। लेकिन सम्मान के तौर पर उन्हें पेरियार यानी तमिल भाषा में सम्मानित व्यक्ति संबोधित किया जाता है। उनका जन्म 17 सितम्बर, 1879 को हुआ तथा निधन 24 दिसम्बर, 1973 को। पेरियार, एक समाज सुधारक, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थे।

जिन्होंने तमिलनाडु के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में बहुत क्रांतिकारी काम किया। तमिलनाडु सरकार 17 सितंबर को 'सामाजिक न्याय दिवस' के रूप में मनाती है। अपने जीवनकाल के दौरान, पेरियार ने कई क्रांतियों का मार्ग प्रशस्त किया। महात्मा गांधी सहित उस समय के कई प्रभावशाली लोगों से खुले तौर पर सवाल किए। उन्हें 'द्रविड़ आंदोलन के पिता' और प्रसिद्ध 'आत्म-सम्मान आंदोलन' के प्रणेता के रूप में जाना जाता है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के माध्यम से राजनीति में अपने प्रवेश से लेकर देश में महिलाओं के लिए समान अधिकारों के लिए लड़ने तक, पेरियार एक ऐसा नाम है जो भारतीय इतिहास में अंकित रहेगा।

पेरियार ने 1919 में कांग्रेस के माध्यम से राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा। लेकिन कुछ वर्षों के भीतर ही इस्तीफा दे दिया । क्योंकि उन्हें लगा कि यह पार्टी ब्राह्मणों के हितों की सेवा कर रही है। पेरियार एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने तमिलनाडु में ब्राह्मणवादी प्रभुत्व और असमानताओं के खिलाफ जोरदार विद्रोह किया था । सो वह खुद को उस पार्टी से नहीं जोड़ सके । जिसने इसके विपरीत प्रचार किया था। एक प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी से दूर जाने के बाद भी वह अपने व्यक्तिगत राजनीतिक आंदोलनों से पीछे नहीं हटे। वे वाइकोम में अहिंसक आंदोलन में एक उल्लेखनीय भागीदार बने, जस्टिस पार्टी का नेतृत्व किया, जिसे अब द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के माध्यम से जाना जाता है। उन्होंने एक स्वतंत्र द्रविड़ नाडु (द्रविड़ों की भूमि) की वकालत की।

महिलाओं के अधिकारों और जाति के उन्मूलन के लिए अथक संघर्ष किया। उन्होंने अपने नाम से जाति की उपाधि "नाइकर" हटाने पर कहा था कि एक जाति का नाम उस सम्मान को निर्धारित नहीं करना चाहिए , जो उन्हें एक इंसान के रूप में मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर किसी के पास स्वाभिमान या वैज्ञानिक ज्ञान नहीं है। तो उपाधि प्राप्त करने या धन संग्रह करने का कोई फायदा नहीं है। एक छोटे बच्चे के रूप में भी, पेरियार ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदू धर्म में कई अंतर्विरोधों पर सवाल उठाया था। एक पारंपरिक व्यापारी परिवार के बीच बड़े होने के बावजूद, पेरियार की पूंजीवादी संस्कृति और आस्तिकता के खिलाफ मजबूत राय थी।

पेरियार के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना काशी की थी जिसने उन्हें पूरी तरह से नास्तिक बना दिया। दरअसल, उन्हें काशी में मंदिरों में बंटने वाले मुफ्त भोजन से सिर्फ इसलिये इनकार कर दिया गया था कि वह ब्राह्मण नहीं थे।कहा जाता है कि भूखे पेरियार को भोजनालयों से भी निकाल दिया गया था। इसके चलते वे गली में फेंके गए बचे-खुचे खाने को ग्रहण करने के लिए मजबूर हुए। उन्हें जिस भेदभाव का सामना करना पड़ा, वह हिंदू धर्म के प्रति उनके सम्मान के लिए एक बड़ा झटका था। काशी की घटना के बाद से पेरियार ने उन लोगों में अलख जगाने का प्रयास किया जिन्हें मानवाधिकारों से वंचित किया गया था। पेरियार ने सुनिश्चित किया कि वह ब्राह्मणवादी सीमा को तोड़ें और जरूरतमंदों तक पहुंचें।



Prashant Dixit

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