×

ऐसे थे हमारे कलाम साहब, जानिए उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें

sudhanshu
Published on: 27 July 2018 4:49 PM IST
ऐसे थे हमारे कलाम साहब, जानिए उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें
X

लखनऊ: डॉ एपीजे अब्‍दुल कलाम यानि डॉ अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम। जिनका जन्‍म 15 अक्टूबर 1931 को हुआ था और महाप्रयाण 27 जुलाई 2015 को आईआईएम शिलांग में छात्रों को संबोधित करते हुआ था।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जिक्र आते ही आंखें चमक उठती हैं। वे मात्र उत्कृष्ट वैज्ञानिक ही नहीं, एक नायाब इनसान भी थे। जो सभी मत-पंथों को समान रूप से सम्मान देते थे। वे भारतीय संस्कृति और परंपरा में ढले ऋषि, मानवतावादी, प्रकृति, संगीत प्रेमी एवं बेहतरीन लेखक भी थे।

भारतीय संस्कृति और परंपरा ऐसी है कि जो भी इसमें ढला, अमर हो गया। इसके समकालीन उदाहरणों में एक हैं पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम। यह अध्याय परी कथा जैसा ही है कि एक छोटे शहर के बालक ने, जिसने शुरुआती तालीम मदरसे में ली हो, पिता मस्जिद के इमाम हों और घर में पूरी तरह रोजा-नमाज का माहौल हो, शिक्षा की भट्ठी में खुद को ऐसा झोंका और भारतीयता की ऐसी चुनरी ओढ़ी कि वह दिनों-दिन उठता चला गया। उसे दुनिया छोड़े कई वर्ष हो चुके हैं, पर आज भी उसका जिक्र होता है तो लोगों की आंखें चमक उठती हैं और जबान से अनायास निकल ही जाता है- काश! वह कुछ दिन और जीवित रहता।

घटनाओं से कभी नहीं हुए विचलित

मजहब के नाम पर आज पूरे विश्व में तलवारें खिंची हुई हैं। अपने देश में भी कई जगह स्थिति बेहद चिंताजनक है, जहां हर समय मजहबी हिंसा होती रहती है। छोटी-छोटी बातों पर लोग एक-दूसरे से लड़ने-मरने पर उतारू हो जाते हैं। हद तो यह है कि ऐसे समय राजनेता भी अपना आपा खो देते हैं। मगर इस मामले में कलाम साहब बिल्कुल अलग थे। ऐसी घटनाओं ने उन्हें कभी विचलित नहीं किया। उन्होंने देश और भारतीयता को हमेशा सबसे आगे रखा और इसी सोच के साथ अंतिम सांसें ली थीं।

उनके मीडिया सलाहकार रहे एसएम खान कहते हैं कि उन्होंने एक दिन बातचीत के दौरान देश में सांप्रदायिक दंगों का जिक्र करते हुए डॉ. कलाम से इस बारे में राय जाननी चाही तो उन्होंने बेहद रूखेपन से जवाब दिया कि वे किसी एक कौम के साथ नहीं हैं। इस सामाजिक बुराई के खिलाफ सबको मिलकर लड़ना होगा।

खुद लिया था लॉ एंड आर्डर का जायजा

अपनी पुस्तक ‘टर्निंग प्वाइंट’ के ‘माई विजिट इन गुजरात’ अध्याय में उन्होंने लिखा है कि अगस्त 2002 में गुजरात दंगों के दौरान बतौर राष्ट्रपति जब उन्होंने राज्य की कानून-व्यवस्था का जायजा लेने का कार्यक्रम बनाया तो हलचल मच गई। मंत्री समूह और अफसरों ने उन्हें वहां जाने से रोकने की कोशिश की। यहां तक कहा गया कि गुजरात में उन्हें विरोध झेलना पड़ सकता है। इसके बावजूद अब्दुल कलाम गुजरात गए और सभी समुदायों के लोगों से मुलाकात की। नरेंद्र मोदी सरकार ने उनकी अगवानी की और कलाम साहब की तमाम जरूरी हिदायतों पर अमल किया। उनकी उस यात्रा के बाद नरेंद्र मोदी उनके मुरीद हो गए। डॉ. कलाम के अंतिम दिनों तक दोनों के बीच घनिष्ठता कायम रही।

कलाम साहब गुजरात दंगों को लेकर जितने विचलित दिखे थे, 24 सितंबर, 2002 को गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले को लेकर भी उतने ही फिक्रमंद नजर आते थे। इस आतंकी हमले में एक कमांडो सहित 31 लोग मारे गए थे, जबकि 80 लोग घायल हुए थे। डॉ. कलाम ने अपनी पुस्तक ‘ट्रांसेंडेंस माई स्पीरिचुअल एक्सपीरियंस विद प्रमुख स्वामीजी’ में इस घटना का विस्तार से उल्लेख करते हुए लिखा कि मंदिर पर हमला देश की एकता और अक्षुण्णता पर हमला था। उन्होंने इसे दुनिया का दूसरा बड़ा आतंकी हमला करार दिया था। इस हादसे को लेकर अक्षरधाम मंदिर के प्रमुख स्वामीजी से उनकी कई बार बात हुई थी। कलाम स्वामीजी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे, जबकि स्वामीजी उन्हें ‘ऋषि’ मानते थे। राष्ट्रपति चुने जाने से पहले से ही वे अक्षरधाम मंदिर के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे थे। स्वामीजी के चरणों में बैठकर उनसे आध्यात्मिक चर्चा करना कलाम साहब को बहुत अच्छा लगता था। इससे संबंधित कई तस्वीरें आज भी देखी जा सकती हैं। यह उनके पिता अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन से मिली भारतीयता और ईमानदारी की सीख का ही परिणाम था कि तमाम आलोचनाओं के बावजूद वे इस्लाम को लेकर कई भ्रांतियों को तोड़ने में सफल रहे।

फजर की नमाज नहीं भूलते थे कलाम साहब

कलाम पांच-वक्ती नमाजी नहीं थे, लेकिन फजर यानी भोर की नमाज अवश्य पढ़ा करते थे। वे कहते थे कि समस्याओं का समाधान उन्हें फजर नमाज में ही मिलता है। ‘टर्निंग प्वाइंट’ में ही उन्होंने एक और घटना का जिक्र किया है। एक बार वे सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के रवैये से खिन्न होकर राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बारे में सोच रहे थे। वे लिखते हैं कि फजर की नमाज के दौरान ही उन्होंने यह सोचकर इस्तीफा देने का इरादा बदल दिया कि उनकी वजह से देश में बेवजह सियासी बवंडर खड़ा हो जाएगा और विकास कार्यों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा। यह जानकर हैरानी होगी कि नमाज जैसा सुकून उन्हें वीणा वादन में भी मिला करता था। वे जिस कमरे में कुरान, हदीस की पुस्तकें रखा करते थे, उसी कमरे में बेहद सलीके से वीणा भी रखी जाती थी।

अपने कविता संग्रह ‘द ल्यूमिनस स्पार्क्स’ की एक कविता ‘गे्रटिट्यूड’ के संदर्भ में वे लिखते हैं कि 1990 में गणतंत्र दिवस पर जब उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित करने का समाचार मिला तो वे फौरन अपने निजी कमरे में चले गए और वीणा बजाना प्रारंभ कर दिया। वे आगे लिखते हैं, ‘‘जब भी वीणा बजाता हूं, रामेश्वरम की मस्जिद गली में पहुंच जाता हूं, जहां मां मुझे गले लगातीं, पिता प्यार से मेरे बालों में उंगलियां फेरते, रामेश्वरम मंदिर के मुख्य पुजारी लक्ष्मण शास्त्री तथा फादर सोलोमन मुझे आशीर्वाद देते दिखाई देते हैं।’’

विजन 2020 में है महत्‍वपूर्ण भूमिका

डॉ. कलाम ने देश में मिसाइल तकनीक को आगे बढ़ाने, राष्ट्रपति रहते हुए देश और देश के भावी भविष्य को विजन 2020 देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के साथ ही बौद्ध, जैन, सिख धर्म के कई विषयों को लेकर शोध भी किए हैं। वे गौतम बुद्ध, भगवान महावीर, गुरुनानक देव, खलीफा उमर और सूफी संत रूमी को प्रेरणास्रोत मानते थे। स्वामी नारायण पंथ और दर्शन का विस्तार कैसे हुआ, यह कलाम के शोध का विषय रहा है। अरुण तिवारी के साथ लिखी गई उनकी पुस्तक में इसका विस्तार से उल्लेख है। वे हिन्दू ऋषि, मुनियों और सूिफयों की परंपरा में विश्वास रखते थे।

इस्लाम के समान ही वे दूसरे मत-पंथों को भी समान रूप से महत्व देते थे। इसका पता आचार्य महाप्रज्ञ के साथ लिखी उनकी पुस्तक ‘द फेमिली एंड द नेशन’ को पढ़कर लगाया जा सकता है। श्रीमद्भगवद् गीता को भारत का दर्शनशास्त्र कहा जाता है। इसका भी वे कुरान की तरह ही नियमित पाठ किया करते थे। उनकी नजर में गीता का कितना महत्व था, इसे उनकी पुस्तक ‘गाइंडिग सोल और यू आर बॉर्न टू ब्लोसम’ को पढ़कर समझा जा सकता है। पुस्तक के पहले पन्ने पर ही कुरान की अल तारिक आयत के साथ गीता के अध्याय सात की दूसरी पंक्ति है- मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रो मणिगणा इव। कलाम का पूरा जीवन साधु-संतों जैसा रहा। उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और शाकाहारी रहे।

कलाम को जितना पढ़ें, उतनी बढेगी जिज्ञासा

कलाम को किसी खांचे में बांधना उचित नहीं। क्या थे कलाम? दार्शनिक, सुधारवादी, दूरदर्शी, वैज्ञानिक, राष्ट्रपति, प्रकृति प्रेमी, मानवतावादी, सभी पंथों को समान रूप से सम्मान देने वाले या कुछ और। इस प्रश्न के साथ कलाम के व्यक्तित्व को जितना खंगालने की कोशिश करेंगे, आपकी जिज्ञासा बढ़ती जाएगी। उनके करीबियों ने उन पर सौ से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, पर सब में उनकी शख्सियत अलग ढंग से पेश की गई है। डीआरडीओ में कलाम के वित्त सलाहकार रहे आर. रामनाथन अपनी पुस्तक ‘क्या हैं कलाम’ में एक जगह लिखते हैं कि सरस उद्देश्यनिष्ठ, राष्ट्रीयता, समर्पण, समरस, उदार, सुगम, दृढ़ ज्ञानी शख्स को किसी एक खांचे या नजरिए से देखना उनकी शख्सियत के साथ नाइंसाफी होगी। जुलाई 2001 के वेल्लोर के एक कार्यक्रम का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि एक छात्र सुडरक्कोड़ी ने कलाम से पूछा-‘‘आप खुद को क्या मानते हैं? वैज्ञानिक, तमिल, अच्छा मनुष्य या भारतीय?’’ उनका जवाब था- ‘‘एक अच्छे मनुष्य में बाकी सारे गुण मिल जाएंगे।’’

दुनिया भले उन्हें मिसाइल मैन नाम से जाने, पर उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपरा को ही आगे बढ़ाया। उनके कविता संग्रह ‘द ल्यूमिनस स्पार्क्स’ में ‘हार्मोनी’, ‘द नेशन प्रेयर’, ‘परसूट ऑफ हैप्पीनेस’, ‘गे्रटिट्यूट’, ‘विस्पर्र्स ऑफ जैसमिन’, ‘चिल्ड्रन ऑफ गॉड’, ‘द लाइफ ट्री’ कविताओं से यही भाव झलकता है। उनकी पुस्तकों में ‘चिपको आंदोलन’ के सुंदरलाल बहुगुणा से लेकर राष्ट्रपति भवन में बागवानी करने वाले सुदेश कुमार तक का जिक्र है। कलाम को गीत-संगीत से भी बड़ा प्रेम था। राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने कई बार राष्ट्रपति भवन में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कराए। उन्हें चित्रकारी भी पसंद थी। उनके कविता संग्रह के पृष्ठ 26 पर एक सुंदर चित्रकारी है, जिसमें गोल टोपी पहने उनके पिता, रामेश्वरम मंदिर के मुख्य पुजारी लक्ष्मण शास्त्री, फादर सोलोमन और उनके बीच रामेश्वरम मंदिर की प्रतिकृति है। इसके अलावा भी इसमें कई नायाब चित्र हैं, जिन्हें कॉलेज ऑफ आर्ट के वरिष्ठ चित्रकार परेश हाजरा, शांति निकेतन के चंद्रनाथ आचार्य तथा जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई के जी.जे. जादव ने बनाया है।

साभार

sudhanshu

sudhanshu

Next Story