TRENDING TAGS :
परिनिर्वाण दिवस: प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति ने दी अंबेडकर को श्रद्धांजलि, जानिए उनके योगदान
भारतीय संविधान निर्माता व स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर की आज यानि शुक्रवार को 63वीं पुण्यतिथि है। बाबा साहेब अंबेडकर ने छह दिसंबर 1956 को अंतिम सांस ली थी। आज के दिन 'परिनिर्वाण दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
नई दिल्ली:भारतीय संविधान निर्माता व स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर की आज यानि शुक्रवार को 63वीं पुण्यतिथि है। बाबा साहेब अंबेडकर ने छह दिसंबर 1956 को अंतिम सांस ली थी। आज के दिन 'परिनिर्वाण दिवस' के रूप में मनाया जाता है। संसद में आज संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर की पुण्यतिथि के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू व पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने श्रद्धांजलि अर्पित की।
यह पढ़ें....Hyderabad encounter | वाह रे तेलंगना पुलिस! सुधर जाओ अब बलात्कारियों, नहीं तो..
दलित समाज की वकालत
अंबेडकर दलित वर्ग को समानता दिलाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे। वे दलित समाज के लिए एक अलग राजनीतिक पहचान की वकालत करते रहे। देश में डॉ. अंबेडकर की याद में कई कार्यक्रम किए जाते हैं। बसपा से लेकर कांग्रेस, बीजेपी सहित तमाम राजनीतिक दल उनकी पुण्यतिथि को परिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाते है। डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक छुआ-छूत और जातिवाद के लिए काफी आंदोलन किए। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, दलितों और समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए दिया था
मराठी पृष्ठभूमि
उनका परिवार मराठी था और मूल रूप से महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के आंबडवे गांव से था।उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। बाबा साहब का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और निचली जाति मानते थे। अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक विद्वेष का सामना करना पड़ा। प्रतिभाशाली होने के बाद भी स्कूल में उनको अस्पृश्यता के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी।
यह पढ़ें....Hyderabad encounter | पुलिस एनकाउंटर में ढेर हैदराबाद रेप-मर्डर केस के चारों आरोपी
बौद्ध धर्म अपनाया
14 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर ने नागपुर में एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया। इस समारोह में उन्होंने श्रीलंका के महान बौद्ध भिक्षु महत्थवीर चंद्रमणी से पारंपरिक तरीके से त्रिरत्न और पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया। अंबेडकर डायबिटीज के मरीज थे। 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनका निधन हो गया था।
डॉ अंबेडकर ने अपने काम से साबित कर दिया था कि योग्यता जाति की मोहताज नहीं होती है। उन्होंने दलित समुदाय के लिए एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की।जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों का ही कोई दखल ना हो। 1932 में ब्रिटिश सरकार ने अंबेडकर की पृथक निर्वाचिका के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, लेकिन इसके विरोध में महात्मा गांधी ने आमरण अनशन शुरू किया तो बाद में अंबेडकर ने अपनी मांग वापस ले ली। बदले में दलित समुदाय को सीटों में आरक्षण और मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार देने के बात मनवाई थी।