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ORS History: ओआरएस लें तो डॉ महालनोबिस को जरूर याद कीजियेगा, जीवनरक्षक घोल के बारे में
ORS History: डॉ. दिलीप महालनोबिस ने 1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान शरणार्थियों को हीटस्ट्रोक, हैजा और अन्य ऐसी बीमारियों के बचाव के रूप में एक अनोखा मिश्रण तैयार किया।
Lucknow: इलेक्ट्रॉल या कोई भी अन्य ओआरएस (ORS) अब घर घर में जाने जाते हैं। लेकिन करीब 50 साल पहले इस जीवनरक्षक घोल (life saving solution) के बारे में कोई नहीं जानता था क्योंकि तब ओआरएस ईजाद ही नहीं हुआ था। वो तो कोलकाता के मशहूर बाल चिकित्सक डॉ. दिलीप महालनोबिस थे (Pediatrician Dr. Dilip Mahalanobis) जिनकी बदौलत आज घर घर में ओआरएस है। डॉ महालनोबिस का 88 साल की उम्र में कल निधन हो गया। वह काफी दिनों से कोलकाता के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती थे।
डॉ. दिलीप महालनोबिस ने 1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान भारी संख्या में आये शरणार्थियों को हीटस्ट्रोक, हैजा और अन्य ऐसी बीमारियों के बचाव के रूप में एक अनोखा मिश्रण तैयार किया। इसे उन्होंने ओरल रिहाईड्रेशन सॉल्यूशन (oral rehydration solution) यानी ओआरएस नाम दिया था। इसके पहले मरीज को फ्लूइड लॉस के लिए सिर्फ ड्रिप चढ़ाने का विकल्प रहता था।
सस्ती और कारगर ओरल रीहाइड्रेशन थेरपी
ऐसे में डॉ महालनोबिस ने बेहद सस्ती और कारगर ओरल रीहाइड्रेशन थेरपी (ओआरटी) को प्रचलित करने का श्रेय दिया जाता है। मुख्य रूप से बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में प्रशिक्षित डॉ. महालनोबिस ने 1966 में जनस्वास्थ्य में कदम रखने के साथ ओआरटी पर काम करना शुरू किया था। डॉ. महालनोबिस ने डॉक्टर डेविड आर नलिन और रिचर्ड ए कैश के साथ कोलकाता के जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी इंटरनैशनल सेंटर फॉर मेडिसिन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग में इसे लेकर रिसर्च की।
ओरल रिहाईड्रेशन थेरेपी किसी आपातकालीन स्थिति में दस्त से निर्जलीकरण की रोकथाम और उपचार के लिए इंट्रावेनस थेरेपी का एक विकल्प है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुमानों के अनुसार, ओआरटी ने 60 मिलियन से अधिक लोगों की जान बचाई है। डॉ महालनोबिस को 2002 में पोलिन पुरस्कार और 2006 में प्रिंस महिदोल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें 1994 में रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज के एक विदेशी सदस्य के रूप में चुना गया था। हालांकि, उनके योगदान के लिए केंद्र सरकार से शायद ही कोई मान्यता मिली हो। ऐसी दवा जिसने लाखों लोगों की जान बचाई उसका कोई सरकारी श्रेय नहीं मिला।
पानी में नमक और चीनी मिलाकर एक ओरल सॉल्यूशन तैयार किया
जिस समय 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम चल रहा था उस समय डॉ महालनाबिस उस समय पश्चिम बंगाल के बनगांव में भारत-बांग्लादेश सीमा क्षेत्र में एक शरणार्थी शिविर में एक डॉक्टर के रूप में कार्यरत थे। शिविर में लोगों को हैजा और दस्त से बचाने के लिए उन्होंने पानी में नमक और चीनी मिलाकर एक ओरल सॉल्यूशन तैयार किया। यह घोल इन दोनों घातक बीमारियों को रोकने में चमत्कार का काम करता था और बाद में यह घोल ओआरएस के नाम से मशहूर हो गया।
महलानाबिस ने 1958 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज और अस्पताल से एमबीबीएस में अपनी डिग्री पूरी की। बाद में, उन्होंने लंदन से बाल स्वास्थ्य में डिप्लोमा हासिल किया।