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विज्ञान का काला दिन: परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में हुई बड़ी दुर्घटना, भाभा की मौत साजिश
डॉ. होमी जहांगीर भाभा ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक तो थे ही साथ ही 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी थे तब वह भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे। भारत को मजबूती प्रदान करने में इनका बहुत बड़ा हाथ था।
नई दिल्ली: देश के होनहार मशहूर परमाणु ऊर्जा वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी कामयाबी हासिल की थी। डॉ. होमी जहांगीर भाभा ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक तो थे ही साथ ही 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी थे तब वह भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे। भारत को मजबूती प्रदान करने में इनका बहुत बड़ा हाथ था। परमाणु कार्यक्रम में भारत की मजबूती को बढ़ाना उनके कई महत्वकांक्षी सपनों और योजनाओं में से एक था। भाभा चाहते थे कि आजादी के 30 सालों के अंदर भारत परमाणु शक्ति बने जिससे देश जल्द से जल्द महाशक्तिशाली के पद से हो। पर उनके इस सपने को सच में कई रोड़ आए।
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काला दिन
डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने पूरे देश के इतिहास को रच दिया। इस इतिहास में 24 जनवरी 1966 का दिन भारतीय इतिहास और विज्ञान का भी एक काला दिन था। दरअसल मुंबई से न्यू यॉर्क जा रहा एयर इंडिया का बोइंग 707 विमान 24 जनवरी 1966 को मॉन्ट ब्लां के निकट दुर्घटना का शिकार हो गया था। इस दौरान विमान में सवार सभी 117 लोगों की मौत हो गई थी। इन यात्रियों में डॉ. भाभा भी थे।
फोटो-सोशल मीडिया
भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम के जनक डॉ होमी जहांगीर भाभा का जन्म मुंबई के एक समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था। फक्र की बात है कि डॉ. होमी जहांगीर भाभा भारत की ऐसी महान शख्सियत थी जिन्हें पूरी दुनिया में उनके काम और स्वभाव के लिए अलग पहचान आज भी काबिज है। भाभा उन वैज्ञानिकों में शुमार थे जिनके नाम भर से दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी डरता था।
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मौत के पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी का हाथ
फोटो-सोशल मीडिया
ऐसा कहा जाता है कि डॉ होमी जहांगीर भाभा की मौत के पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी का हाथ है। बताया जाता है कि फ्रांस के माउंट ब्लैंक के आसमान में 24 नवंबर 1966 को एक विमान क्रैश हो गया था, जिसमें यात्रा कर रहे सभी यात्री मारे गए थे इन यात्रियों में डॉ. होमी जहांगीर भाभा भी शामिल थे। वह इस विमान में सवार होकर वियना एक कांफ्रेस में जा रहे थे।
बता दें, डॉ. होमी भाभा ने 1944 में कुछ वैज्ञानिकों की सहायता से न्यूक्लियर एनर्जी पर रिसर्च का कार्यक्रम शुरू किया था। डॉ. भाभा ने उस समय न्यूक्लियर साइंस पर रिसर्च करना शुरू किया था जब दुनिया को इसकी चैन रिएक्शन के बारे में ज्यादा जानकारी भी नहीं थी।
और तो और उस दौरान न्यूक्लियर एनर्जी से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानना ही नहीं चाहता था। ऐसे में भाभा को ‘आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम’ भी कहा जाता है।
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