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Draupadi Murmu Lifetsyle: द्रौपदी मुर्मू ने श्याम चरण से किया था प्रेम विवाह,जानिए कैसे टुडू से बन गईं मुर्मू

Draupadi Murmu Lifetsyle: देश में बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि द्रौपदी मुर्मू ने श्याम चरण मुर्मू के साथ प्रेम विवाह किया था। उनका नाम द्रौपदी टुडू था मगर विवाह के बाद द्रौपदी मुर्मू बन गईं।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 21 July 2022 7:36 PM IST
draupadi murmu love marriage with shyam charan do you know story
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द्रौपदी मुर्मू (सोशल मीडिया)

Draupadi Murmu Love Marriage: देश में पहली बार आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद पर पहुंचने में कामयाब हुई हैं। संसद भवन में आज हुई मतगणना के बाद द्रौपदी मुर्मू को विजयी घोषित किया गया है। एनडीए की उम्मीदवार मुर्मू की जीत पहले ही तय मानी जा रही थी। उन्हें भाजपा के साथ ही एनडीए के घटक दलों और कई क्षेत्रीय दलों का समर्थन हासिल था। देश के 27 दलों के समर्थन के कारण मुर्मू की स्थिति पहले ही विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा से काफी मजबूत मानी जा रही थी।

मुर्मू का व्यक्तिगत जीवन काफी संघर्षों से भरा रहा है। 2010 से 2014 के बीच उन्होंने अपने पति और दो बेटों को खो दिया मगर फिर भी वे मुश्किलों के सामने डटकर खड़ी रहीं। उनकी जिंदगी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंगों से देश के अधिकांश लोग अभी भी अनजान हैं। ऐसा ही एक प्रसंग उनके विवाह से जुड़ा हुआ है। देश में बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि द्रौपदी मुर्मू ने श्याम चरण मुर्मू के साथ प्रेम विवाह किया था। पहले उनका नाम द्रौपदी टुडू था मगर श्याम चरण से विवाह के बाद वे द्रौपदी टुडू से द्रौपदी मुर्मू बन गईं।

श्याम चरण मुर्मू से इस तरह हुई मुलाकात

मुर्मू ने 1969 से 1973 तक आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ाई की। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के रामादेवी विमेंस कॉलेज में दाखिला लिया। उपरवाड़ा गांव की रहने वाली मुर्मू के भुवनेश्वर के इस कॉलेज में दाखिला लेने पर आसपास के लोगों को हैरत भी हुई थी क्योंकि मुर्मू अपने गांव से भुवनेश्वर जाकर पढ़ाई के लिए दाखिला लेने वाली पहली लड़की थीं। पढ़ाई में अच्छी होने के कारण ही उन्होंने भुवनेश्वर जाकर कॉलेज की पढ़ाई करने का फैसला किया था।

भुवनेश्वर में पढ़ाई के दौरान ही मुर्मू की आगे की जिंदगी के लिए एक और रास्ता खुला। दरअसल उन्हीं दिनों श्याम चरण मुर्मू भी भुवनेश्वर के ही एक कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। भुवनेश्वर में पढ़ाई के दौरान ही द्रौपदी मुर्मू की श्याम चरण मुर्मू से मुलाकात हुई और दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होकर प्रेम करने लगे। श्याम चरण मुर्मू से इतना प्रभावित हुए कि बाद में वे 1980 में विवाह का प्रस्ताव लेकर द्रौपदी मुर्मू के घर पहुंच गए थे।


पिता को पहले नहीं पसंद आया था रिश्ता

शुरुआत में द्रौपदी के पिता बिरंची नारायण टुडू को यह रिश्ता पसंद नहीं आया था। वे इस रिश्ते को लेकर द्रौपदी से नाराज हो गए थे। दूसरी और श्याम चरण द्रौपदी से रिश्ते की मंजूरी के बिना न लौटने का फैसला लेकर पहुंचे थे। द्रौपदी के पिता बिरंची नारायण पर दबाव बनाने के लिए वे अकेले नहीं बल्कि कुछ लोगों को लेकर द्रौपदी के घर पहुंचे थे। श्याम चरण के साथ उनके सगे चाचा के अलावा गांव के रिश्ते के चाचा लक्ष्मण बासी और गांव के ही दो-तीन और लोग भी थे।

कई दिनों तक द्रौपदी के घर जमे रहे श्याम

उन्होंने अपने साथ आए लोगों के साथ तीन-चार दिनों तक द्रौपदी के गांव उपरवाड़ा में ही डेरा डाले रखा। वे यहां से खाली हाथ लौटने के लिए तैयार नहीं थे। द्रौपदी की भाभी शाक्यमुनि का कहना है कि हालांकि वे इस विवाह के बाद इस घर में आई हैं,लेकिन उनकी सास ने विवाह का पूरा प्रसंग बताया था।

द्रौपदी भी श्याम चरण से ही विवाह करने की इच्छुक थीं। श्याम चरण को द्रौपदी के घरवालों को मनाने में कुछ वक्त तो जरूर लगा मगर आखिरकार द्रौपदी के घर वाले भी इस विवाह के लिए राजी हो गए थे। आदिवासियों में लड़के वालों के ही रिश्ता लेकर लड़की के घर जाने की परंपरा रही है और इसी कारण श्याम चरण मुर्मू द्रौपदी के घर पहुंचे थे।


इस तरह बनीं द्रौपदी टुडू से 'द्रौपदी मुर्मू'

द्रौपदी मुर्मू के घर विवाह का प्रस्ताव लेकर जाने वाले श्याम चरण के रिश्ते के चाचा लक्ष्मण बांसी को आज भी 1980 का वह वाकया याद है। ओडिशा के मयूरभंज जिले के आदिवासी गांव पहाड़पुर में रहने वाले लक्ष्मण बासी पुराने दिनों की याद करते हुए बताते हैं कि हम लोग ही श्याम चरण का रिश्ता लेकर द्रौपदी के घर पहुंचे थे। अब काफी बुजुर्ग हो चुके लक्ष्मण वासी का कहना है कि दोनों ने प्रेम विवाह किया था। द्रौपदी के घर जाने से पहले श्याम चरण ने लक्ष्मण बासी को द्रौपदी से प्रेम होने की जानकारी दी थी। उन्होंने बताया कि द्रौपदी के घरवालों को मनाने में थोड़ी कठिनाई तो जरूर हुई मगर आखिरकार सब राजी हो गए और फिर पहाड़पुर गांव ही द्रौपदी का ससुराल बन गया। लक्ष्मण बासी का कहना है कि वे पहले द्रौपदी टुडू थीं मगर श्याम चरण से विवाह करने के बाद वे द्रौपदी टूडू से द्रौपदी मुर्मू बन गईं।

शादी में क्या तय हुआ था दहेज

द्रौपदी मुर्मू का ताल्लुक आदिवासियों के संथाल समुदाय से है और इस समाज से जुड़े लोगों में विवाह के समय लड़के के पक्ष की ओर से ही दहेज दिया जाता है। दहेज तय करने के लिए लड़के और लड़की के घरवाले एक साथ बैठते हैं और फिर दोनों पक्षों के बीच आपसी चर्चा के बाद यह तय किया जाता है कि दहेज क्या और कितना होगा। द्रौपदी और श्याम चरण के घर वालों के बीच आपसी चर्चा में एक गाय, एक बैल और 16 जोड़ी कपड़े दहेज में देने की बात तय हुई थी। द्रौपदी की चाची जमुना टुडू का कहना है कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत में यही दहेज तय हुआ था और श्याम चरण और उनके साथ गए लोगों ने इस पर तुरंत ही हामी भर दी थी। बातचीत में दोनों पक्षों के राजी होने के कुछ समय बाद ही श्याम चरण और द्रौपदी का विवाह हो गया था।


शादी का साल तो याद, मगर तारीख नहीं

मौजूदा समय में शादी की वर्षगांठ मनाने का खूब चलन है मगर यह भी एक मजेदार बात है कि द्रौपदी के घर वालों को शादी का साल 1980 तो याद है मगर शादी की तारीख नहीं। द्रौपदी की चाची का कहना है कि इतनी पुरानी बात हो गई अब तक तारीख कैसे याद रह सकती है। द्रौपदी के भाई का भी कहना है कि उस समय तारीख पर इतना ज्यादा ध्यान कहां दिया जाता था। बस लोगों को साल ही याद रहता था। दिलचस्प बात यह है कि द्रौपदी के मायके उपरवाड़ा और उनके ससुराल पहाड़पुर के पुराने लोगों को भी द्रौपदी मुर्मू के विवाह की तारीख याद नहीं है। 1 अक्टूबर 2014 को श्याम चरण का निधन हुआ था और इसी दिन द्रौपदी और श्याम चरण का साथ छूट गया।

द्रौपदी के गांव में जश्न का माहौल

द्रौपदी को एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से ही उनके ससुराल पहाड़पुर और आसपास के सभी आदिवासी गांव में जश्न का माहौल दिखा है। गांव में उनकी जीत की कामना को लेकर धार्मिक अनुष्ठान भी किए गए। पहाड़पुर में संथाल आदिवासी समुदाय की ओर से अपने इष्ट शालग्राम की पूजा भी की गई। द्रौपदी मुर्मू की राष्ट्रपति चुनाव में जीत पहले ही तय मानी जा रही थी और इसलिए पहले से ही गांव में जश्न मनने लगा था। द्रौपदी मुर्मू ने अपने जीवन में काफी संघर्ष के बाद बड़ा मुकाम हासिल किया है और गांव के पुराने लोग आज भी उनके संघर्षों को याद करते हैं।



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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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