Draupadi Murmu Victory: मुर्मू की जीत को ट्राइबल प्राइड बनायेगी भाजपा, कई राज्यों में हो सकता है बड़ा फायदा

Yogesh Mishra
Published on: 21 July 2022 3:12 PM GMT
Draupadi Murmu president of india
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Draupadi Murmu president of India (Image: Social Media)

Draupadi Murmu Victory: नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भारतीय जनता पार्टी दूर की कौड़ी खेलने की आदि हैं। तभी तो भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर देश भर में पसरे जनजाति बहुत 47 लोकसभा व 604 विधानसभा को साधने की दिशा में तेज गति से कदम बढ़ा दिया है। इसके लिए भाजपा 'ट्राइबल प्राइड' नामक आयोजन भी करने की तैयारी में हैं। इस कार्यक्रम के तहत देश भर के जनजाति बहुल ज़िलों में किसी एक दिन एक साथ दीपोत्सव मनाया जायेगा। इस कार्यक्रम की पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ होगा।

यही नहीं, इस साल 15 नवंबर को पड़ने वाले बिसरा मुंडा के जन्म दिन को भी बहुत विशेष तरह से मनाने की योजना बना ली गयी है। बिरसा मुंडा को जनजातियों के बीच धरती आबा कहा जाता है। कई जनजातीय गीतों में भी इनका धरती आबा के रूप में ज़िक्र मिलता है। धरती आबा का मतलब धरती का पिता होता है।

मुर्मू देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बन गयीं। अब मुर्मू के इस बड़ी जीत के सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं। उन्होंने काफी सोच समझकर द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति के चुनाव मैदान में उतारा था। देश में लोकसभा की 47 सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित हैं , जबकि विधानसभा की 604 सीटें।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड,तमिलनाडु, सिक्किम,पंजाब , नागालैंड,केरल, जम्मू कश्मीर, हिमाचल, दिल्ली, हरियाणा, गोवा, बिहार और अरुणाचल प्रदेश ही ऐसे राज्य हैं, जहां जनजातियों के लिए लोकसभा की कोई सीट आरक्षित नहीं है। यही स्थित केंद्र शासित प्रदेशों में अंडमान निकोबार, चंडीगढ़, पुदुच्चेरी, लद्दाख व दमन दिउ की है। पर अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में विधान सभा की 59-59 सीटें, बिहार, केरल ,उत्तराखंड, तमिलनाडु व उत्तर प्रदेश में विधानसभा की दो-दो सीटें, हिमाचल में तीन और सिक्किम में बारह सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।

मध्य प्रदेश में लोकसभा की सबसे अधिक 06 सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। जबकि विधानसभा की 47 सीटें आरक्षित हैं। इसके बाद झारखंड व उड़ीसा का नंबर आता है, जहां लोकसभा की 5-5 और विधानसभा की 22 व 41 सीटें आरक्षित हैं। जबकि छत्तीसगढ़, गुजरात ,महाराष्ट्र में लोकसभा की चार चार व विधानसभा की क्रमश: 34, 27 व 14 सीटें जनजातीय समुदाय के लिए सुरक्षित हैं। राजस्थान में लोकसभा की 03 और विधान सभा की 25 सीटें जनजातियों के लिए हैं।

असम, तेलंगाना, कर्नाटक,मेघालय और पश्चिम बंगाल में लोकसभा की दो दो सीटें आरक्षित हैं। जबकि इन राज्यों में विधानसभा की क्रमशः 16,09, 15, 55 व 16 सीटें आरक्षित हैं। आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा में लोकसभा की एक एक सीटें आरक्षित हैं। जबकि आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा-07, 19, 39, 20 सीटें आरक्षित हैं। केंद्र शासित प्रदेश दादरा नगर हवेली और लक्ष द्वीप में लोकसभा की एक एक सीट इस समुदाय के लिए आरक्षित हैं। मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद से समझा जा सकता है कि आदिवासी वोट बैंक की लड़ाई शुरू हो चुकी है । अब इसमें भाजपा को बड़ा सियासी फायदा होने की उम्मीद जताई जा रही है।

कई राज्यों में आदिवासी समुदाय अहम

देश में झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और मध्य प्रदेश आदि ऐसे राज्य हैं, जहां आदिवासी समुदाय का वोट अहम भूमिका निभाता रहा है। आदिवासी बहुल कई राज्यों में हाल के दिनों में कांग्रेस ने भाजपा की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन किया है।

कांग्रेस का यह प्रदर्शन भाजपा के लिए चिंता का बड़ा कारण रहा है। अब उसकी काट मिलती दिख रही है। यदि चार राज्यों छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की बात की जाए तो पिछले चुनाव में आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित 128 सीटों में से 86 पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। इस तरह कांग्रेस के मुकाबले भाजपा बुरी तरह पिछड़ गई थी।

गुजरात में बदला चुकाना चाहती है भाजपा

गुजरात को भाजपा का गढ़ माना जाता है ।इस राज्य में लगभग तीन दशक से सत्ता पर भाजपा ही काबिज है । मगर इस राज्य में भी आदिवासी सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा से बेहतर प्रदर्शन किया था। गुजरात विधानसभा में आदिवासियों के लिए 27 सीटें आरक्षित हैं । पिछले चुनाव में इनमें से 15 सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी जबकि भाजपा के खाते में सिर्फ 9 सीटें ही गई थीं। इस चुनावी नतीजे से समझा जा सकता है कि कांग्रेस ने भाजपा को पछाड़कर अपनी ताकत दिखाई थी। गुजरात में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं ।द्रौपदी मुर्मू की जीत का यहां की आदिवासी सीटों पर बड़ा असर दिख सकता है।

दो राज्यों में लगा था बड़ा झटका

इसी तरह यदि राजस्थान में देखा जाये तो 25 विधानसभा सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इनमें से 13 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि भाजपा को सिर्फ 8 सीटों पर ही जीत मिली थी। छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए भाजपा को पूरी तरह बैकफुट पर धकेल दिया था। छत्तीसगढ़ में एसटी के लिए आरक्षित 27 सीटों में से 25 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। भाजपा को सिर्फ 2 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।

सियासी जानकारों का मानना है कि राष्ट्रपति के चुनाव में आदिवासी महिला उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा के लिए बड़ी संजीवनी साबित हो सकती है। भाजपा अब आने वाले दिनों में द्रौपदी मुर्मू के तीर से बड़ा सियासी निशाना साधने की कोशिश में जुट गई है।

देश में जनजातीय आबादी तक़रीबन साढ़े दस करोड़ से ग्यारह करोड़ के बीच मानी जाती है। जनजातियों की सात सौ से अधिक उप जातियाँ हैं। सबसे अधिक संख्या भील जनजाति की है। इसके बाद नंबर आता है गौड़ का, तीसरे स्थान पर संथाल जनजाति आती है। द्रोपदी मुर्मू संथाल जनजाति से ही आती हैं। मुर्मू की विजय को भाजपा दीनदयाल उपाध्याय के अत्योदय से जोड कर प्रचारित करने से नहीं चूकेगी।

मुर्मू के विजय को भाजपा अपने अब तक के किसी भी सफल कार्यक्रम से कमतर सेलिब्रेट नहीं करेगी। यह पहला कार्यक्रम होगा जिसमें भाजपा व संघ दोनों खुले तौर पर सहभागिता करते हुए दिखें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए । क्यों कि मुर्मू को राष्ट्रपति पद तक पहुँचा कर भाजपा ने संघवी एक और साध पूरी की है।

Rakesh Mishra

Rakesh Mishra

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