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दश्हरा हादसा: अपनों को खोने वालों से वादाखिलाफी

raghvendra
Published on: 9 July 2023 7:20 PM IST
दश्हरा हादसा: अपनों को खोने वालों से वादाखिलाफी
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अमृतसर: साल बदला, कैलेंडर की तारीखें बदली और दशहरा आ गया। फर्क इतना ही है कि इस साल 19 अक्टूबर नहीं, 8 अक्टूबर को दशहरा है। लेकिन साल भर बाद भी रेल हादसे के लोगो को न तो न्याय मिला है और ना ही इलाज। पिछले साल दशहरे वाले दिन, 19 अक्टूबर 2018 को जोड़ा फाटक पर हुए रेल हादसे में 70 से अधिक लोग मारे गए थे। उस दौरान मृतकों के परिवारों के एक-एक सदस्य को पंजाब सरकार ने नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन यह वादा आज तक पूरा नहीं हुआ। मृतकों के परिवार सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाकर थक चुके हैं।

हादसा पीडि़तों का आरोप है कि गत 11 महीनों में नौकरी के लिए इनसे 4-5 बार फॉर्म तो भरवाए गए मगर मिला कुछ नहीं। इन परिवारों ने हादसे में अपने उन परिवार के उन सदस्यों को गंवाया जिनके बूते परिवार का खर्च चलता था। आज ये परिवार एक दम से सडक़ पर आ गए हैं। इन परिवारों का कहना है कि हादसे के बाद राज्य सरकार ने प्रत्येक पीडि़त को 5-5 लाख रुपए का मुआवजा दिया। केंद्र सरकार ने भी 2-2 लाख का मुआवजा दिया है। हालांकि कई परिवारों को केंद्र की मुआवजा राशि अभी तक नहीं मिल पाई है। पीडि़तों का कहना है कि महीनों की दौड़-धूप के बाद इन्हें जो मुआवजा राशि मिली, उसका बड़ा हिस्सा उधार चुकाने में चला गया। मुआवजा राशि दिलाने के नाम पर भी कई लोगों ने इन्हें ठगा। इन्हें अब सिर्फ सरकारी नौकरी ही सहारा दिख रही है, लेकिन पंजाब सरकार नौकरी देने की बात ही नहीं कर रही।

जांच के नाम पर हुई लीपापोती

हादसे में जान गंवा चुके अपने बेटे नीरज की तस्वीर लिए रटा और कृष्णा की मां बिमला रानी ने रोते हुए कहा कि उन्हें न्याय नहीं मिला। जांच के नाम पर पंजाब सरकार ने केवल लीपापोती कर अपने चहेते नेताओं को बचाया है क्योंकि सिद्धू भी उसका था और उसकी घर वाली भी। सारे आरोपी बरी हो गए। किसी को कोई सजा नहीं हुई। सजा तो हम भुगत रहे हैं। सिद्धू व कैप्टन सरकार ने इलाज का वादा भी किया था मगर कुछ नहीं मिला। कई लोगों का इजाज अधूरा है तो कुछ ने अपना सबकुछ बेचक इलाज कराया।

पीडि़तों से सिद्धू ने बनाई दूरी

हादसा पीडि़त सिद्धू के दरवाजे पर जाकर बार-बार न्याय की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन उनकी कोठी का दरवाजा बंद है। घंटों नारेबाजी के बाद सुरक्षाकर्मी बाहर निकलते हैं और कहते हैं साहब नहीं है। जब आएंगे तब आ जाना। यह क्रम पिछले कई दिनों से चल रहा है। लेकिन सिद्धू लोगों के आंसू पोछने तक को तैयार नहीं है। इस समय तमाम नेता और तथाकथित स्वयंसेवी संगठन भी खामोश हैं जो उस समय पीडि़तों को गोद लेने और उनकी तमाम जरूरतों को पूरा करने का आश्वासन दे रहे थे।

तीन बार हुआ सर्वे, मिला कुछ भी नहीं

आंसू पोछती हुई लवली कहती हैं कि हादसे में उनके 19 साल के बेटे तरुण की मौत हो गई थी। अब तो समझ नहीं आ रहा कि जीएं तो किसके लिए। सरकार के नुमाइंदे तीन बार सर्वे करके जा चुके हैं, लेकिन न तो आज तक कोई नौकरी देने आया है और न ही हाल पूछने। दीपक कुमार ने कहा कि रेल हादसे में उसके पिता और चाचा दोनों की मौत हो गई थी। उस समय सरकार ने करने को बहुत कुछ कहा पर किया कुछ नहीं।

हताश लोगों ने किया सिद्धू की कोठी पर प्रदर्शन

सरकारी और राजनीतिक वादाखिलाफी का शिकार हुए लोगों ने पूर्व स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिद्धू के आवास का घेराव किया व उन्हें सबसे बड़ा झूठा करार दिया। हादसा पीडि़त दीपक कुमार, मोनिका, बिमला आदि ने कहा कि हादसे के बाद नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी ने लोगों को गोद लेने, नगर निगम सहित अन्य विभागों में आश्रित परिवारों के एक सदस्य को नौकरी देने और इलाज का खर्च देने का वादा किया था, लेकिन मामला शांत होने के बाद एक बार भी पूछने तक नहीं आए। बता दें कि इस दुर्घटना में मेला के आयोजक मि_ू मदान सहित नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी डा.नवजोत कौर को भी जिम्मेदार ठराया गया था क्योंकि वो दशहरा मेले में मुख्य अतिथि थी और उन्होंने ही रावण का पुतला जलाया था।

उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग भी मारे गए थे

पिछले साल हुए रेल हादसे में मारे गए 70 से अधिक लोगों में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश के लोग भी शामिल थे। इसमें गाजीपुर जिले के करीमुद्दीनपुर थाना क्षेत्र के गांव बगेंद का युवक भी शामिल था जो दिल्ली से अपने भाई के पास मेला देखने आया था। बिहार की रजनी भी थी जो अपने पति और बच्चों के साथ रेल ट्रैक पर खड़ी होकर रावण के जलते हुए पुतले को देख रही थी। उसके पति व दो बच्चे भी ट्रेन से कटने वालों में शामिल थे। इसमें जोड़ा फाटक का वह युवक भी था जो रामलीला में रावण बनता था।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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