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नोटबंदी का किया सपोर्ट तब छाती पीट रहे थे लोग, अब नोबेल प्राइज मिल गया
कैसे भूल सकते हैं वो 8 नवंबर 2016 का दिन। जब पीएम नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का अप्रत्याशित और ऐतिहासिक एलान किया। ब्लैकमनी वालों की तो जैसे लंका लुट गई।
लखनऊ : कैसे भूल सकते हैं वो 8 नवंबर, 2016 का दिन। जब पीएम नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का अप्रत्याशित और ऐतिहासिक एलान किया। जिसके बाद क्या आम, क्या खास, क्या नेता, क्या व्यापारी सभी की आंखें फटी रह गईं। दिल सहम गया और कान सुन्न हो गए। सड़कों से लेकर पेट्रोल पंप और ऐसी ही अन्य जगहों पर लोग पुराने नोट खपाने की फिराक में जुट गए। किसी ने नोटबंदी के फैसला का आतिशबाजी कर पुरजोर समर्थन किया, तो कोई अपना सीना पीटने लगा। ब्लैकमनी वालों की तो जैसे लंका लुट गई। विपक्षी राजनीतिक दलों ने जहां नोटबंदी के दुष्प्रभावों को हथियार बनाकर विधानसभा चुनावों में अपना झंडा बुलंद करने की ठानी। वहीं मोदी सरकार और बीजेपी ने इसे अजेय शस्त्र मान चुनावी दंगल में जीत दर्ज की। कई अर्थशास्त्री इसके समर्थन में दिखे, तो रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और विमल जालान से लेकर कई अर्थशात्री ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। लेकिन, करोड़ों-अरबों लोगों में एक शख्स ऐसा भी था जो भारत में नहीं रहता था। फिर भी उसने नोटबंदी का खुलकर समर्थन किया। उस शख्स का नाम है रिचर्ड एच. थेलर।
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नाम सुना-सुना लग रहा है न। अगर नहीं, तो हम बता रहे है कि रिचर्ड एच. थेलर कौन हैं? 72 साल के अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड एच. थेलर को अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल प्राइज-2017 मिला है। थेलर इंडियन इकॉनमी को काफी नजदीक से फॉलो करते रहे हैं। रिचर्ड थेलर ने मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी का खुला समर्थन किया था। 8 नवंबर, 2016 को जब इंडिया में नोटबंदी का ऐलान हुआ, तो अमेरिकी अर्थशास्त्री थेलर ने एक ट्वीट किया था। जिसमें उन्होंने लिखा था कि यही वह नीति है जिसका मैंने लंबे समय से समर्थन किया है। कैशलेस की तरफ यह पहला कदम है और करप्शन कम करने के लिए अच्छी शुरुआत। हालांकि, उनके इसी ट्वीट का जवाब देते हुए एक ट्विटर यूजर ने उन्हें बताया कि सरकार ने 2000 रुपए के नोट भी जारी करने का फैसला किया है। तब थेलर ने इसकी आलोचना भी की थी। थेलर पीएम मोदी की जनधन योजना का भी समर्थन करते रहे हैं।
ये भी जान लीजिए
खास बात यह है कि ये ट्वीट थेलर के नाम से जिस ट्विटर हैंडल (@R_Thaler)से किए गए थे। वह ऑफिशियली वैरीफाइड नहीं हैं। लेकिन, नोबेल प्राइज के ऑफिशियल फीड में उस हैंडल (@R_Thaler)को टैग किया गया है।
नोबेल कमिटी की तरफ से की गई घोषणा में कहा गया कि थेलर को यह नोबेल प्राइज ‘बिहेवियरल इकोनॉमिक्स’ में उनके योगदान के लिए दिया गया। जिससे लोगों के फैसलों के आर्थिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण में संबंध स्थापित करने में मदद मिली। थेलर अभी शिकागो यूनिवर्सिटी के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर हैं। थेलर ने कई किताबें लिखी हैं। उनकी लिखी एक फेमस किताब 'नज' है। इसमें बताया है कि कैसे लोग खराब और बेतुके डिसीजन लेते हैं। थेलर ने ये किताब कैस आर स्नस्टीन के साथ मिलकर लिखी। किताब आदमी की सोच और खर्च करने के उसके तरीके के बीच के रिलेशन के बारे में बताती है।
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राजन भी थे रेस में, चूक गए
इस साल के अर्थशास्त्र नोबेल की रेस में भारत की ओर से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन और थेलर के अलावा अन्य 4 लोग भी थे। लेकिन, बाजी थेलर मार ले गए।
ये भी है एक रोचक तथ्य
एक बात और रोचक है। अगर हम महिलाओं की बात करें, तो अब तक अर्थशास्त्र का नोबेल प्राइज एक मात्र महिला अर्थशास्त्री अमेरिका की एलिनोर ओस्ट्रॉम को मिला है। आर्थिक प्रशासन के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें 2009 में एक अन्य अमेरिकी अर्थशास्त्री के साथ संयुक्त रूप से यह प्राइज मिला था। गौरतलब है कि 1901 में नोबेल प्राइज की शुरुआत हुई और 1968 से अर्थशास्त्र के क्षेत्र में भी यह प्राइज दिया जाता है। वहीं भारत के प्रोफेसर डॉ. अमर्त्य सेन को अर्थशास्त्र में उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए साल 1998 में नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया। सेन भारत की तरफ से अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबल प्राइज पाने वाले एक मात्र अर्थशास्त्री हैं। नोटबंदी पर डॉ. अमर्त्य सेन ने कहा था कि वह ब्लैकमनी से छुटकारा पाने की इच्छा के लिए कभी पीएम मोदी की आलोचना नहीं करेंगे। लेकिन, अगर वह इसे कामयाबी से करें, तो वे तारीफ भी करेंगे। उन्होंने कहा था कि इस कदम से कानून का पालन करने वाले आम नागरिकों की जिंदगी मुश्किल हो गई है।
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सच हुई मनमोहन की बात
मनमोहन सिंह दस साल तक देश के पीएम रहे, लेकिन उन्हें कभी भी अच्छे राजनीतिज्ञ के रूप में पहचान नहीं मिली या उसके लिए उन्हें याद भी नहीं किया जाता। 24 नवंबर को उन्होंनें राज्यसभा में अपनी स्पीच में नोटबंदी से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2 प्रतिशत की कमी का अंदेशा जताया था जबकि सत्ता पक्ष के लोग नोटबंदी को देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी उपलब्धि और मील का पत्थर बता रहे थे।
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उस दौरान सत्ता पक्ष के किसी सदस्य ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के भाषण को गंभीरता से नहीं लिया था। चूंकि कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियां नोटबंदी का विरोध कर रही थी इसलिए उनके भाषण को उसी परिपेक्ष्य में देखा गया था। अंतत: उनकी बात सच साबित हुई और 2017 की पहली तिमाही में जीडीपी 7.9 प्रतिशत से गिरकर 5.7 प्रतिशत पर आ गई। मनमोहन सिंह की बात रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की आई रिपोर्ट के बाद सही साबित हुई। आमतौर पर शांत रहने और कड़े शब्द से परहेज करने वाले मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को संगठित और कानूनी लूट बताया था।
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