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Bihar Politics: बिहार चुनाव में क्या रंग दिखाएगा राहुल का OBC दांव, कांग्रेस की चाल पर राजद की निगाहें
Bihar Politics: गुजरात में हुए दो दिवसीय कांग्रेस अधिवेशन के दौरान पार्टी ने चुनावी रणनीति पर गहराई से मंथन किया है। इस अधिवेशन के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पार्टी की रणनीति में फेरबदल का बड़ा संकेत दिया है।
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Bihar Politics: गुजरात में हुए दो दिवसीय कांग्रेस अधिवेशन के दौरान पार्टी ने चुनावी रणनीति पर गहराई से मंथन किया है। इस अधिवेशन के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पार्टी की रणनीति में फेरबदल का बड़ा संकेत दिया है। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक से ही कांग्रेस ने ओबीसी समुदाय को नजरअंदाज किया है जिसकी पार्टी को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। अब इस रणनीतिक भूल को सुधारने का वक्त आ गया है।
ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस का मुख्य फोकस ओबीसी समुदाय में पार्टी की पैठ बढ़ाने का होगा। राहुल गांधी के सियासी दांव की पहली अग्निपरीक्षा बिहार की सियासी भूमि पर होगी जहां इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। माना जा रहा है कि इस नीति पर अमल करने के दौरान कांग्रेस को अपने सहयोगी दल राजद के साथ बैर भी मोल लेना पड़ सकता है। कांग्रेस की रणनीति पर राजद की सतर्क निगाहें हैं।
ओबीसी समीकरण साधने पर राहुल का जोर
अहमदाबाद में संपन्न हुए कांग्रेस के दो दिवसीय अधिवेशन से यह संदेश निकला है कि कांग्रेस अब ओबीसी मंत्र के सहारे आगे बढ़ेगी और इसके जरिए भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए को पटखनी देने की कोशिश करेगी। अहमदाबाद में राहुल गांधी का कहना था कि कांग्रेस को एक बार फिर मजबूत बनाने के लिए हमारे पास मजबूत एक्शन प्लान तैयार है। राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस को भाजपा और मोदी सरकार का मुकाबला करने के लिए ओबीसी समुदाय तक पार्टी की पहुंच को और मजबूत बनाना होगा। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में ओबीसी समुदाय की हिस्सेदारी 50 फ़ीसदी से अधिक है।
यदि इसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग के साथ जोड़ दिया जाए तो यह संख्या 90 फ़ीसदी तक पहुंच जाती है। ऐसे में पार्टी को एक मजबूत जनाधार हासिल होगा और भाजपा के खिलाफ पार्टी पूरी मजबूती के साथ खड़ी हो जाएगी। अब बिहार की सियासी प्रयोगशाला में राहुल गांधी के इस सियासी दांव का पहला परीक्षण होगा।
बिहार में कांग्रेस का जातीय आंकड़ा
बिहार में 2020 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। पार्टी के इन 19 विधायकों में चार भूमिहार, चार मुस्लिम, तीन ब्राह्मण, पांच दलित और यादव,बनिया व राजपूत जाति के एक-एक विधायक हैं। बिहार में ओबीसी समुदाय की आबादी करीब 63 फ़ीसदी है मगर कांग्रेस विधायकों में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 10 फ़ीसदी ही है।
बिहार में 2015 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। उस समय कांग्रेस के टिकट पर 26 विधायक चुने गए थे। इनमें से छह दलित, पांच मुसलमान, चार ब्राह्मण, चार भूमिहार, दो यादव और कुर्मी व कायस्थ एक-एक विधायक थे।
अधिवेशन से पहले ही जिलों में बड़ी कवायद
गुजरात में हुए कांग्रेस अधिवेशन से पहले ही कांग्रेस ने बिहार कांग्रेस के संगठन में बाद फेरबदल किया था। ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ के फॉर्मूले पर अमल करते हुए पार्टी नेतृत्व की ओर से दलित और ओबीसी समुदाय को विभिन्न जिलों के संगठन में अधिक जगह दी गई है। पार्टी ने राज्य के 21 जिलों में नए अध्यक्षों की नियुक्ति की है। कई जगहों पर जिलाध्यक्ष के साथ कार्यकारी जिलाध्यक्ष भी बनाए गए हैं।
प्रदेश के छह-छह जिलों में मुस्लिम और दलित समाज से आने वाले नेताओं को जिम्मेदारी मिली है। भूमिहार जिलाध्यक्षों की संख्या कम जरूर की गई है मगर अभी भी 6 जिलों में भूमिहार बिरादरी के ही जिलाध्यक्ष हैं। वैसे ओबीसी समुदाय का विशेष तौर पर ख्याल रखा गया है और 14 जिलों में ओबीसी जिलाध्यक्षों की तैनाती की गई है।
बिहार में क्या रंग दिखाएगा राहुल का दांव
जिलों में बदलाव से पहले बिहार में प्रदेश प्रभारी के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष को भी बदला गया था। भूमिहार बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर दलित समाज से आने वाले राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई है। उल्लेखनीय बात यह भी है कि अखिलेश प्रसाद सिंह को राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव का करीबी माना जाता रहा है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस साल बिहार का तीन दौरा कर चुके हैं। कांग्रेस नेतृत्व की ओर से की जा रही कवायद से साफ है कि पार्टी राज्य में जातीय समीकरण साधने की कोशिश में जुटी हुई है।
ओबीसी वोट बैंक पर पार्टी ने निगाहें गड़ा रखी हैं और इस वर्ग के जरिए पार्टी की सियासी जमीन को मजबूत बनाने की कोशिश की जा रही है। बिहार में कांग्रेस का लालू की पार्टी राजद के साथ गठबंधन है और राजद नेतृत्व कांग्रेस की ओर से की जा रही कवायद पर गहरी नजर गड़ाए हुए हैं। कांग्रेस की ओर से सीटों को लेकर दबाव बढ़ाए जाने की आशंका से भी राजद नेतृत्व सतर्क हो गया है।