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जलवायु परिवर्तन से खतरे में आठ राज्य, असम में खतरा सबसे ज्यादा
तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है और इसमें लगातार बढ़ोतरी होने का अनुमान है ऐसे में यदि जलवायु परिवर्तन को रोका नहीं गया तो इससे समुद्री जलस्तर में भी जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। जिसके खतरनाक नतीजे देखने को मिल सकते हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है और इसमें लगातार बढ़ोतरी होने का अनुमान है ऐसे में यदि जलवायु परिवर्तन को रोका नहीं गया तो इससे समुद्री जलस्तर में भी जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। जिसके खतरनाक नतीजे देखने को मिल सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के लिहाज से देश के सभी राज्य संवेदनशील हैं लेकिन झारखंड सबसे अधिक प्रभावित होने वाला राज्य है तो महाराष्ट्र में सबसे कम असर रहता है। हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले शीर्ष 8 राज्यों में झारखंड, मिजोरम, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल हैं। असम में लगभग 90 प्रतिशत, बिहार में 80 प्रतिशत और झारखंड में 60 प्रतिशत जिले जलवायु परिवर्तन के लिहाज से अधिक असुरक्षित हैं। ये अध्ययन आगामी खतरों को लेकर गंभीर रुख अपनाने की तात्कालिकता पर जोर देते हैं।
वर्षा की तीव्रता में वृद्धि
देशों में बड़े-बड़े महानगरों में अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण वर्षा की तीव्रता में वृद्धि हो रही है और अचानक से आने वाली बाढ़ की घटनाएं तथा वर्षा में असमानता जैसी प्रवृतियां भी दिख रही हैं। वातावरण में पाये जाने वाले एयरोसोल्स जटिल एरोसोल-क्लाउड अंतर संपर्क प्रक्रियाओं के कारण बारिश की प्रवृत्तियों में बदलाव ला रहे हैं। ये सब चीजें मानव जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) में जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं सलाहकार डॉ. अखिलेश गुप्ता का कहना है कि जलवायु परिवर्तन 5 बड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्राथमिकताओं- जल, स्वास्थ्य, पर्यावरण, कृषि और ऊर्जा को प्रभावित करता है और इससे निपटने के लिए ग्लेशियरों के अध्ययन, जलवायु मॉडल, शहरी जलवायु, एयरोसोल अध्ययन, अति प्रतिकूल घटनाओं और हिमालयी पारिस्थितिकी के शोध पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
समुद्री जलस्तर में भी बढ़ोतरी
डा. गुप्ता का कहना है कि तापमान बढ़ रहा है और इसमें लगातार बढ़ोतरी होगी और यदि जलवायु परिवर्तन को रोका नहीं गया तो इससे समुद्री जलस्तर में भी बढ़ोतरी होगी। जो बड़े खतरे की ओर इशारा करता है। उन्होंने आईआईएससी के एक वैज्ञानिक शोध का हवाला देते हुए कहा कि सभी अल नीनो की घटनाएं सूखे का कारण नहीं है और सूखे की सभी घटनाएं अल नीनो के कारण नहीं होती हैं। उन्होंने कहा ये दो प्रकार के मानसूनी सूखे न केवल उनकी सामुद्रिक स्थिति बल्कि उनकी मौसमी घटनाओं के नजरिए से भी अलग-अलग है।
प्रशांत क्षेत्रों के बजाए उत्तर अटलांटिक क्षेत्रों में अल नीनो सूखे के दौरान सतह के तापमान में भी काफी कमी आ जाती है। अल नीनो सूखे की प्रक्रिया के कारण वर्षा की कमी गर्मियों की शुरूआत में होने लगती है और मध्य अगस्त तक यह काफी बदतर हो जाती है तथा पूरे देश में बड़े पैमाने पर वर्षा की कमी होने लगता है और स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता है।
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बारिश की जबर्दस्त कमी देखने को मिलती है
गैर अल नीनो सूखे के दौरान जून माह में मध्यम स्तरीय सूखा देखा जाता है लेकिन मध्य जुलाई से मध्य अगस्त तक इसमें काफी सुधार दिखने लगता है और अगस्त के तीसरे हफ्ते तक एक बार फिर बारिश की जबर्दस्त कमी देखने को मिलती है और अगले तीन हफ्तों तक पूरे देश को बारिश की कमी का सामना करना पड़ता है।
इस तरह की समस्याओं से निपटने के प्रयास में, डीएसटी के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम ने 1500 शोध पेपर तैयार किए हैं, जिनमें से 1000 से अधिक अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावा 100 नई तकनीके विकसित की गई हैं, 350 कार्यशालाओं का आयोजन, 250 राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए गए हैं जहां 50,000 लोगों को प्रशिक्षित करने के अलावा छात्रों, शोधार्थियों और विद्वानों की क्षमता निर्माण पर ध्यान दिया गया। विभाग ने जन जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन भी किया, जिसमें 1.5 लाख से अधिक लोगों ने सहभागिता की है।
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