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बिजली का करेंट रोजाना ले रहा 30 लोगों की जान

raghvendra
Published on: 9 Aug 2019 4:00 PM IST
बिजली का करेंट रोजाना ले रहा 30 लोगों की जान
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नई दिल्ली: भारत भर में बिजली के करेनट से मरने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि देश में करेंट से रोजाना औसतन तीस लोगों की मौत हो जाती है। इस आंकड़े में दूरदराज के इलाके में होने वाले हादसों के आंकड़े शामिल नहीं हैं क्योंकि दूर-दराज के इलाकों से बहुत सी जानकारियां प्रशासन तक नहीं पहुंच पाती सो करेंट से मरने वालों की संख्या काफी अधिक होने की आशंका है। करेंट से मौतों का कारण बिजली विभाग के अधिकारियों की लापरवाही और बिजली के अवैध कनेक्शन तो हैं ही, साथ ही विभिन्न एजेंसियों की ओर से इसका दोष एक-दूसरे पर मढऩे की प्रवृत्ति भी है। बारिश के मौसम में करेंट से मौतों की संख्या काफी बढ़ जाती है।

देश के ज्यादातर हिस्सो में भारी बारिश और उसके बाद आने वाली बाढ़ की स्थिति में बिजली के खंभे या तारों के टूट कर पानी में गिरने की वजह से कई लोग असमय ही मौत के शिकार हो जाते हैं। कई मामलों में लोग लापरवाही की वजह से भी जान से हाथ धो बैठते हैं। लोगों को हाई टेंशन तारों से दूर घर बनाने की सलाह दी जाती है लेकिन ज्यादातर लोग इस चेतावनी पर ध्यान नहीं देते। किसी बड़े हादसे के बाद कुछ दिनों तक तो सरकार व बिजली विभाग सक्रिय रहता है लेकिन उसके बाद फिर सब कुछ पहले की तरह हो जाता है।

बिजली के झटकों से होने वाली मौतों की तादाद बढऩे के बावजूद ये मसला राज्य व केंद्र सरकारों के साथ-साथ संबंधित एजेंसियों के लिए बड़ी चिंता का विषय नहीं बन पाया है। एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले वर्ष 2015 में देश के विभिन्न हिस्सों में बिजली के झटकों से 9,986 लोगों की मौत हुई थी। इनमें से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में मरने वालों की तादाद एक-एक हजार से ज्यादा थी। वर्ष 2011 में यह संख्या 8,945, 2012 में 8,750, 2013 में 10,218 और वर्ष 2014 में 9,606 थी। आंकड़े तेजी से बढऩे के बावजूद कोई एहितयाती उपाय नहीं किए जा रहे हैं जिस कारण ये समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है।

बिजली के झटकों से होने वाली मौतों व हादसों को रोकने के लिए अक्सर ओवरहेड तारों को अंडरग्राउंड करने का सुझाव दिया जाता है लेकिन यह प्रक्रिया काफी खर्चीली है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत जैसे देश में सुरक्षा के मामले में अक्सर लापरवाही बरती जाती है और मानकों के मुताबिक बिजली के तारों व उपकरणों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। बिजली के दो खंभों के बीच की दूरी सामान्य तौर पर 50 फीट और खंभों की ऊंचाई कम से कम 18 फीट होनी चाहिए। लेकिन ज्यादातर मामलों में इन दिशानिर्देशों की अनदेखी की जाती है। तारों के ओवरहेड होने की वजह से आंधी-तूफान के दौरान उनके टूट कर हादसों को जन्म देने का अंदेशा लगातार बना रहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बिजली के हाई-टेंशन तारों को अंडरग्राउंड कर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। डेनमार्क और जर्मनी पहले ही ऐसा कर चुके हैं लेकिन बिजली कंपनियां इससे बचने का प्रयास करती हैं। इसकी वजह इस प्रक्रिया का बेहद खर्चीला होना है। समझा जाता है कि ओवरहेड के मुकाबले जमीन के भीतर केबल बिछाना आठ गुना ज्यादा खर्चीला है।

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012-13 से 2018-19 तक बिजली लगने से मरने वालों की तादाद दोगुनी हो गई है। वर्ष 2012-13 में जहां यह संख्या 570 थी वहीं बीते साल यह बढ़ कर 1120 तक पहुंच गई। अब उत्तर प्रदेश सरकार ने बिजली के आधारभूत ढांचे में सुधार, पुराने ओवरहेड तारों को बदलने और कई इलाकों में लगे बांस के खंभों की जगह कंक्रीट के खंभे लगाने की योजना बनाई है। बिजली के तारों को अंडरग्राउंड करने की भी योजना है। कई शहरों में इस पर काम भी हुआ है।

आम लोगों में सुरक्षा के प्रति जागरूकता का घोर अभाव है। बेहतर उपकरण इस्तेमाल नहीं करने और ठीक से अर्थिंग नहीं होने की वजह से घर में इस्तेमाल होने वाली सौ मिलीएंपीयर वाली 220 वोल्ट की बिजली भी जानलेवा साबित हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में सरकारों के अलावा आम उपभोक्ताओं की भूमिका भी अहम है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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