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EWS Quota: जानिए क्या है 10 फीसदी ईडब्लूएस कोटा, कौन हैं इसके पात्र
EWS Quota Kya Hai: एससी, एसटी और ओबीसी के आलावा जिनके परिवार की सकल वार्षिक आय 8 लाख रुपये से कम है, उन्हें आरक्षण के लाभ के लिए ईडब्ल्यूएस कोटे में जगह दी जाएगी।
EWS Quota: सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक आधार पर आरक्षण (reservation on economic basis) के बारे में एक महत्वपूर्ण फैसला सुना कर इसकी वैधानिकता को बरकरार रखा है। ईडब्ल्यूएस कोटा (EWS Quota) 1 फरवरी, 2019 से लागू है। लेकिन इसे संवैधानिकता और समानता के आधार पर अदालत में चुनौती दी गई थी। जानते हैं आरक्षण (Reservation) के इस स्वरूप के बारे में।
14 जनवरी 2019 (14 January 2019) को भारतीय संविधान के 124वें संशोधन विधेयक को पारित किया गया था। इसके पारित होने से केंद्र सरकार और निजी संस्थानों द्वारा संचालित (अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित संस्थान छोड़ कर) शिक्षण संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों' या ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए 10 फीसदी कोटा का मार्ग प्रशस्त हुआ। साथ ही केंद्र सरकार के रोजगार में भी यही दस फीसदी आरक्षण रखा गया। यह कोटा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणियों के कोटे के अतिरिक्त नया प्रावधान था।
कौन हैं पात्र
2019 के नोटिफिकेशन के तहत, एक व्यक्ति जो एससी, एसटी और ओबीसी (SC, ST and OBC) के लिए आरक्षण के तहत नहीं आता है, और जिनके परिवार की सकल वार्षिक आय 8 लाख रुपये से कम है, उन्हें आरक्षण के लाभ के लिए ईडब्ल्यूएस कोटे में जगह दी जाएगी।
आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण में 8 लाख रुपए से कम वार्षिक आय के अलावा और भी प्रावधान हैं, जैसे कि इस कैटेगरी में आने वाले के लिए किसी सामान्य वर्ग के परिवार के पास 5 एकड़ या उससे अधिक कृषि भूमि नहीं होनी चाहिए। साथ ही परिवार के पास 1000 वर्ग फुट या उससे अधिक क्षेत्रफल का आवासीय प्लाट या घर नहीं होना चाहिए।
कोर्ट में चुनौती
आर्थिक आधार पर लागू किये गए कोटे की वैधानिकता और संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 27 सितंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
दरअसल, कई लोग गैर-एससी, गैर-एसटी और गैर-ओबीसी समूह को लुभाने के लिए इस कोटे को भारतीय जनता पार्टी की चुनावी रणनीति मानते हैं। तर्क ये भी है कि जब कोई भी कोटा लागू किया जाता है, तो संविधान के उन मूलभूत सिद्धांतों को पूरा करना चाहिए जो अवसर की समानता और कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण की गारंटी देते हैं। इन कमजोर वर्गों को 'आर्थिक मापदण्ड' के आधार पर पूरी तरह से पहचाना नहीं जा सकता है, जिसमें 'मौद्रिक आय में कटौती' भी शामिल है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह संशोधन समानता के अधिकार को नुकसान पहुंचाता है जो कि संविधान की आत्मा है। सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी के लिए दाखिले और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केंद्र का फैसला कई मायनों में संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन है और आरक्षण के संबंध में 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन भी होता है।