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SC On EWS Reservation: गरीब सवर्णों के लिए जारी रहेगा 10% आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार की बड़ी जीत
SC On EWS Reservation: देश में आर्थिक आधार पर आरक्षण आगे भी जारी रहेगा। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ में से तीन जजों ने पक्ष में अपना फैसला सुनाया।
SC on EWS Reservation : देश में आर्थिक आधार पर आरक्षण ( EWS Reservation) आगे भी जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित (Chief Justice UU Lalit) की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ में से तीन जजों ने आरक्षण के पक्ष में अपना फैसला सुनाया है। वहीं, एक जज ने इस मसले पर असहमति जाहिर की गई। इसे केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की बड़ी जीत माना जा रहा है। क्योंकि, मोदी सरकार ने संविधान में संशोधन कर सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर आय वाले लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था।
गौरतलब है कि, सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय बेंच की तरफ से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Section) यानी EWS के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था पर सोमवार (07 नवंबर 2022) को फैसला सुनाया। पांच जजों में से तीन जजों ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का समर्थन किया।जस्टिस माहेश्वरी ने कहा, कि आर्थिक आरक्षण संविधान के मौलिक ढांचे के खिलाफ नहीं है।
मोदी सरकार की बड़ी जीत
सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग (EWS General Class) के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को बरकरार रखा है। जजों ने संविधान के 103वें संशोधन अधिनियम 2019 (Constitution 103rd Amendment Act 2019) को सही माना है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की बड़ी जीत माना जा रहा है। दरअसल, मोदी सरकार ने संविधान में संशोधन कर सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर आय वाले लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था। जिसके बाद आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई थी।
5 में 3 जजों ने सहमति जताई
EWS आरक्षण मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच में से 3 जजों जस्टिस दिनेश माहेश्वरी (Justice Dinesh Maheshwari), जस्टिस बेला त्रिवेदी (Justice Bela Trivedi) और जस्टिस जेबी परदीवाला (Justice JB Pardiwala) ने आर्थिक आधार पर कमजोर आय वाले लोगों को आरक्षण के समर्थन में अपना फैसला सुनाया। जबकि, मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट्ट ने EWS आरक्षण पर अपनी असहमति जताई।
क्या कहा जस्टिस माहेश्वरी ने?
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा, कि 'बड़ा सवाल ये था कि क्या EWS आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ है? क्या इससे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग को बाहर रखना मूल भावना के खिलाफ है। माहेश्वरी ने ये कहा, कि EWS कोटा संविधान का उल्लंघन नहीं करता। EWS कोटा आरक्षण सही है। ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है।'
जस्टिस जेबी परदीवाला की राय
इस मसले पर अपनी राय जाहिर करते हुए जस्टिस जेबी परदीवाला ने कहा, डॉ. भीमराव अंबेडकर का विचार था कि आरक्षण की व्यवस्था 10 साल रहे मगर, ये अभी तक जारी है। रिजर्वेशन को निहित स्वार्थ नहीं बनने देना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, संविधान के 103वें संशोधन की वैधता को बरकरार रखते हुए मैंने सोचा कि आरक्षण का पालन करना सामाजिक न्याय (Social justice) को सुरक्षित रखना है।
क्या कहा जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने?
पांच जजों की बेंच में जस्टिस बेला त्रिवेदी भी थीं। उन्होंने कहा, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को भी एक अलग वर्ग मानना सही होगा। इसे संविधान का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद आज हमें समाज के हितों के लिए आरक्षण की व्यवस्था पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, संसद में एंग्लो-इंडियन के लिए आरक्षण समाप्त हो गया है। इसी तरह समय सीमा होनी चाहिए। इसलिए 103वें संशोधन की वैधता बरकरार रखी जाती है।
चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस. रवींद्र भट की एक राय
EWS आरक्षण मामले पर चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस. रवींद्र भट ने असहमति जताते हुए कहा, 'अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के गरीब लोगों को इससे बाहर करना भेदभाव दिखाता है। उन्होंने कहा, हमारा संविधान बहिष्कार की अनुमति नहीं देता। ये संशोधन सामाजिक न्याय के ताने-बाने को कमजोर करता है। इस तरह ये बुनियादी ढांचे को कमजोर करता है।'
जानें क्या है EWS आरक्षण?
EWS आरक्षण जनवरी 2019 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संविधान में 103 वां संशोधन के बाद लेकर आई थी। जिसके तहत आर्थिक रूप से पिछड़े यानी गरीब सवर्णों को नौकरियों तथा शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है। बता दें कि, कानूनन आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। अभी देशभर में SC/ST/OBC को जो आरक्षण मिलता है, लेकिन सामान्य वर्ग का 10 फीसद कोटा इस 50 फीसदी सीमा के बाहर है।