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विधानसभा चुनाव: उत्तराखंड में इस बार पहाड़ जैसा चुनाव, पहाड़ जैसी ही मुश्किलें
Uma Kant Lakhera
नई दिल्ली: 16 साल के उत्तराखंड राज्य की चौथी विधानसभा के चुनावों के लिए इस बार चुनाव परिणाम बड़े अजीबोगरीब होंगे। लोगों ने सोचा भी न होगा कि जिन लोगों को वे वोट देना चाहते हैं और जिसके जीतने की उम्मीद अधिकतर लोगों को थी, मतदाताओं ने उनका बोरिया बिस्तर बांध दिया।
राज्य बनने के बाद कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बारी-बारी से 70 सीटों वाले इस पर्वतीय प्रदेश पर शासन किया। 2002 में नारायणदत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तो 2007 में जनरल भुवन चन्द्र खंडूरी के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में आई।
कांग्रेस में कलह से बंटाधार
साल 2012 में बीजेपी को मात्र एक सीट के बहुमत से पटखनी देकर कांग्रेस सत्ता में आई। लेकिन 5 बरस किसी तरह पूरा करते-करते कांग्रेस के विजय बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाने के बाद से सुलगे असंतोष से पहाड़ की पूरी कांग्रेस पार्टी में विभाजन हो गया।
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बीजेपी ने बदरंग किया चाल-चरित्र चेहरा
कांग्रेस के एक दर्जन बागी विधायकों ने अलग पार्टी बनाने के बजाय राज्य में प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी की गोद में बैठना मुनासिब समझा। क्योंकि उनकी राजनीति का सिद्धांतों, नैतिक मूल्यों और सार्वजनिक मान-मर्यादा की राजनीति से कोई ताल्लुक नहीं था। बीजेपी ने कांग्रेस बागियों-विधायकों को गोद में बिठाकर इन विधायकों की सीटों से उन्हीं की पुरानी सीटों से टिकट देकर पहाड़ की बीजेपी के चाल-चरित्र चेहरे को ही बदरंग कर डाला।
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बीजेपी की रणनीति हरीश रावत के इर्द-गिर्द
बहरहाल, 11 मार्च को जो नतीजे सामने आएंगे उनका सटीक पूर्वानुमान कई वजहों से विडबनाओं से भरा है। हरीश रावत को उत्तराखंड में जमीनी मुख्यमंत्री माना जाता है, लेकिन बीजेपी का पूरा चुनाव हरीश रावत विरोधी ध्रुवीकरण के इर्द-गिर्द सिमट गया। कुमाऊं के कई अंचलों में बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व, खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और दर्जन भर केंद्रीय मंत्रियों और आरएसएस की टीम ने रावत को पटखनी देने की तमाम चालें चलीं।
सत्ता के लिए दिखा बदलाव का रुझान
हरीश रावत ने बीजेपी नेतृत्व के हमलों के एवज में करीब दर्जन भर सीटों पर अपने पक्ष में सहानुभूति बटोरने की पूरी कशमकश की। अपने पक्ष में इस सहानुभूति की चादर को रावत कितना ओढ़ पाए होंगे इसका प्रमाण चुनावी नतीजों से सामने आएगा। लेकिन गढ़वाल मंडल के सात ज़िलों- पौड़ी, चमोली, टिहरी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, देहरादून, हरिद्वार के 41 सीटों और उधमसिंह नगर को मिलाकर कुमाऊं के 6 ज़िलों में अधिकतर जगहों पर एक समानता सरसरी तौर पर दिखाई पड़ रही है। लोगों में सत्ता के लिए बदलाव का रुझान है। दूसरी ओर, पीएम नरेंद्र मोदी का अंडर करेंट काम कर रहा है।
सहसपुर सीट पर बगावत से भी जूझना पड़ रहा
देहरादून ज़िले में सहसपुर सीट पर पूरे प्रदेश की नजरें गड़ी हुई हैं। यहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को बगावत से जूझना पड़ा है। यहां टिकट के प्रमुख दावेदार आर्येन्द्र शर्मा को निर्दलीय खड़ा करके कांग्रेस के मतों में पूरा विभाजन कर बीजेपी के सहदेव पुंडी की राह आसान कर दी है।
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चौबट्टाखाल सीट पर भी सबकी नजर
गढ़वाल मंडल के पौड़ी जनपद की दूसरी अहम सीट चौबट्टाखाल में सतपाल महाराज कांग्रेस की नगर से सटी डोईवाला सीट पर बीजेपी ने पिछला चुनाव हारे उम्मीदवार त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मैदान में उतारा है, लेकिन यहां कांग्रेस के मौजूदा विधायक हीरा सिंह बिष्ट उनको कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
मनमाने टिकट बंटवारे से बीजेपी को नुकसान संभव
उत्तराखंड का बीजेपी नेतृत्व लुंज-पुंज और दिशाहीनता से जूझता रहा। लेकिन राज्य के स्थानीय नेतृत्व में इतनी क्षमता नहीं दिखी कि वे हरीश रावत का अपने बूते मुकाबला करते दिखते। नतीजा यह हुआ कि बीजेपी के टिकट दिल्ली में बैठकर बांटे गए। स्थानीय कार्यकर्ताओं और टिकट के दावेदारों खासतौर पर वे जो 2012 के चुनाव हारे थे, उन्हें टिकट से वंचित कर वनवास देने में ज़रा भी देर नहीं लगाई गई। करीब एक दर्जन सीटों पर कांग्रेस से आए विधायकों और बाकी बची सीटों में दर्जन भर से अधिक टिकट मनमाने ढंग से व भेदभावपूर्ण तरीके से बांटे गए। इसका सीधा असर यह हुआ कि सत्ता पाने की लालसा में बीजेपी ने कई सीटों पर कांग्रेस ही नहीं, अपनी ही पार्टियों के बागियों की भी राह आसान बना दी।
रावत विरोधी में ही विभाजन
हरीश रावत विरोधी ध्रुवीकरण के खेल में आमतौर पर विरोधी पक्ष के वोटों का पूरी तरह विभाजन देखने को मिला है। उदाहरण के तौर पर किसी सीट पर 70 फीसदी मतदाता कांग्रेस की हरीश रावत सरकार को हटाकर बदलाव चाहते हैं लेकिन यह 30 फीसदी औसतन आधार वाली कांग्रेस के विरोध में जो 70 प्रतिशत वोट था वह अधिकतर सीटों पर चतुष्कोणीय और टक्कर में तब्दील होता दिखा। बगावत अकेले बीजेपी में ही नहीं थी कांग्रेस में चुनावों के वक्त और भी बगावत देखने को मिली।
जारी ...
रावत चल रहे थे अपनी चाल
कुल मिलाकर हरीश रावत ने कांग्रेस विरोधी वोटों में बिखराव करने और करीब दर्जनभर सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों, खास तौर पर कांग्रेसी बागियों का पत्ता साफ करने में पूरी ताकत झोंकी। इस वजह से हरीश रावत पर चुनाव प्रचार की प्रक्रिया में यह भी आरोप चर्चा में रहा कि वे गढ़वाल मंडल की कई सीटों पर कांग्रेस के अधिकतर उम्मीदवारों की जीत के लिए नहीं, बल्कि बीजेपी में टिकट न मिलने से नाराज़ लोगों को परोक्ष मदद करवा रहे हैं। इस शतरंजी चाल में रावत कितना सफल होंगे, इससे भी 11 मार्च को पर्दा उठना है।
सीएम रावत को तलाशनी पड़ी सुरक्षित सीट
41 सीटों वाले गढ़वाल मंडल के 7 ज़िलों में हरिद्वार ग्रामीण सीट पर मुख्यमंत्री हरीश रावत किस्मत आजमा रहे हैं। वे उधमसिंह नगर की किच्छा सीट से भी मैदान में हैं। रोचक पहलू यह है कि पर्वतीय राज्य के मुख्यमंत्री को सुरक्षित सीट तलाशनी पड़ी है, जहां पर्वतीय मूल के मतदाताओं की संख्या दूसरे समुदायों की अपेक्षा बहुत कम है।
हरिद्वार में बहुकोणीय मुकाबला
हरिद्वार जनपद की करीब 4 से 5 सीटों पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा), बीजेपी और कांग्रेस दोनों को कड़ी टक्कर दे रही है। हरिद्वार ग्रामीण में मुख्यमंत्री रावत खुद मुश्किल में फंसे हुए हैं। हरिद्वार शहर की सीट पर बीजेपी के दिग्गज विधायक मदन कौशिक का मुकाबला कांग्रेस के ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी से है। हरिद्वार ज़िले के मंगलौर, खानपुर, भगवानपुर व हरिद्वार ग्रामीण में बसपा ने बीजेपी-कांग्रेस दोनों को मुश्किल में डाला हुआ है।
अंतिम स्लाइड में पढ़ें कौन सी पार्टी जीत सकती है कितनी सीटें ...
देहरादून और मसूरी में कांग्रेस-बीजेपी में टक्कर
देहरादून की धर्मपुर सीट पर कांग्रेस सरकार के मंत्री अग्रवाल की टक्कर महानगर मेयर और बीजेपी उम्मीदवार विनोद चमोली से है। यूपी व उत्तराखंड से कई बार विधायक रह चुके दिग्गज बीजेपी नेता व विधान सभाध्यक्ष रह चुके हरबंस कपूर की टक्कर कांग्रेस के सूर्यकांत धस्माना से है। मसूरी सीट पर सीधा मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है। बीजेपी विधायक गणेश जोशी ने चौथी बार टिकट हासिल किया है, लेकिन कांग्रेस की गोदावरी थापली ने इस बार गणेश जोशी की जीत की हैट्रिक में मुश्किलें खड़ी कर रखी हैं।
धनोल्टी सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय
मसूरी से सटी धनोल्टी सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय होने के साथ ही रोचक भी है। यहां बीजेपी ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के समधी नारायण सिंह राणा को मैदान में उतारकर कांग्रेस के मनमोहन मल्ल व निर्दलीय प्रीतम सिंह पंवार के बीच त्रिकोणीय मुकाबला खड़ा करवा दिया। टिकट न मिलने से बीजेपी के नाराज कार्यकर्ता बगावत पर हैं। कांग्रेस यहां से यूकेडी छोड़कर मंत्री बनाए गए प्रीतम सिंह को समर्थन देना चाहती थी लेकिन मनमोहन मल्ल ने टिकट की दावेदारी छोड़ने से इनकार करके अपनी पार्टी ही नहीं बीजेपी के लिए भी मुश्किलें पैदा कर रखी हैं।
सीधे मुकाबले में फंसे सतपाल महाराज
राजपाल बिष्ट से सीधे मुकाबले में फंसे हुए हैं सतपाल महाराज। महाराज 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे। बीजेपी को यहां से अपने विधायक और प्रदेश पार्टी के अध्यक्ष रह चुके तीरथ सिंह रावत का टिकट काटना पड़ा। गढ़वाल की दूसरी अहम सीट कोटद्वार है। यहां बीजेपी ने कांग्रेस से आए हरक सिंह रावत को टिकट देकर पार्टी में बगावत को न्योता दिया। रावत का मुकाबला यहां कांग्रेस की प्रदेश सरकार में मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी से है। नेगी ने 2012 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री जनरल बीसी खंडूड़ी को कुछ ही वोटों के अंतर से परास्त किया था। गढ़वाल मंडल में शिक्षा के प्रमुख केंद्र की सीट पर भी इस बार काफी रोचक मुकाबला है। यहां कांग्रेस के तीन बार विधायक रह चुके गणेश गोदियाल का मुकाबला बीजेपी के धन सिंह रावत से है। लेकिन यहां बीजेपी से टिकट की दौड़ में शामिल रहे मुम्बई के उद्योगपति मोहन काला निर्दलीय के तौर पर कांग्रेस व बीजेपी दोनों के वोट बैंक में भारी सेंध लगा रहे हैं।
बीजेपी की फूट को भुनाने में जुटी कांग्रेस
रुद्रप्रयाग लोकल व ज़िले की केदारनाथ सीट पर भी मुकाबला कई उम्मीदवारों के बीच है। रुद्रप्रयाग में बीजेपी में बगावत इसलिए है कि यहां कांग्रेस से आए भागीरथ चौधरी बीजेपी का टिकट पा गए जबकि कांग्रेस ने 6 साल के लिए पार्टी से निकाली गई लक्ष्मी राणा को टिकट देकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भारी बगावत मोल ले रखी है।
केदारनाथ सीट भी रोचक
केदारनाथ सीट पर भी कांग्रेस से बगावत करने वाली विधायक शैला रानी रावत बीजेपी का टिकट पा गई तो बीजेपी में टिकट की दावेदार आशा नौटियाल ने निर्दलीय खड़े होकर मामला रोचक बना रखा है। उन्हें बीजेपी कार्यकर्ता खुला समर्थन दे रहे हैं। कुमाऊं में ऐन चुनाव के वक्त बीजेपी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता व राज्य सरकार में मंत्री यशपाल आर्य को पुत्र समेत टिकटें थमाकर बड़ा धमाका किया। यशपाल बाजपुर से तो पुत्र संजीव आर्य नैनीताल सुरक्षित सीट से मैदान में हैं। यहां बीजेपी की स्थानीय युनिटें बगावत पर रहीं।
अजय भट्ट त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे
कुमाऊं में बीजेपी को सबसे अधिक खतरा रानीखेत सीट पर बना हुआ है जहां पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अजय भट्ट त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे हुए हैं। उन्हें बीजेपी के ही बागी प्रमोद नैनवाल ने निर्दलीय खड़े होकर भट्ट के सितारों को मुश्किल में फंसा रखा है। यहां कांग्रेस ने मुख्यमंत्री रावत के रिश्तेदार करण मेहरा को टिकट दिया है। डीडीहाट में प्रदेश बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष मंत्री और पांच बार किस्मत आजमा रहे बिशन सिंह चुफाल की प्रतिष्ठा दांव पर है। यूकेडी के वरिष्ठ नेता काशी सिंह ऐरी भी यहां किस्मत आजमा रहे हैं।
द्वारहाट सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबला
इसी तरह नैनीताल जिले की हल्द्वानी सीट पर वरिष्ठ मंत्री व बुजुर्ग कांग्रेसी नेता इन्दिरा हृदयेश मैदान में हैं। उनका मुकाबला हल्द्वानी के मेयर जोगेन्द्र रौतेला से है। बीजेपी के ही पांच बार विधायक रहे बंशीधर भगत को पांचवीं बार टिकट मिला है। उनका मुकाबला कांग्रेस के प्रकाश जोशी से है। द्वारहाट सीट पर यूकेडी के अध्यक्ष पुष्पेश त्रिपाठी का मुकाबला कांग्रेस के वर्तमान विधायक मदन सिंह बिष्ट से है, लेकिन बीजेपी त्रिकोणीय मुकाबले का लाभ उठाना चाहती है। पिथौरागढ़ की सीट पर सीधा मुकाबला बीजेपी के प्रकाश पंत व कांग्रेस के मयूख महर के बीच है। प्रकाश पंत, बीजेपी के सतपाल महाराज व अजय भट्ट जैसे चेहरों के साथ शक्ति संतुलन के लिहाज़ से मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में भी शामिल माने जा रहे हैं।
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उत्तराखंड:
कुल सीटें- 70
संभावित सीटें पार्टी :
बीजेपी - 37
कांग्रेस- 24
निर्दलीय- 05
बसपा- 03
उत्तराखंड क्रांतिदल- 01
गढ़वाल मंडल में हैं सात जिले - नाम हैं - पौड़ी, चमोली, टिहरी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, देहरादून, हरिद्वार।
गढ़वाल मंडल के उक्त जिलों में कुल 41 विधानसभा सीटें आती हैं।
-इनमें 22 से 24 सीटें बीजेपी को।
-बसपा को 2 से 3 सीटें।
-कांग्रेस को 11 से 12 सीटें मिल सकती हैं।
कुमाऊं के 6 जिले/विधानसभा सीटें- 29
-बीजेपी- 13
-कांग्रेस- 14
-अन्य- 02
जिले- पिथौरागड़, अल्मोड़ा, नैनीताल, उधमसिंह नगर, चम्पावत, बागेश्वर