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शर्त लगा लो भैया, 'सूफी संत कबीर' के बारे में इतना नहीं जानते होगे
मगहर : आंबेडकर के बाद अब नेताओं के ह्रदय में बसे हैं सूफी संत कबीर। चुनावी दहलीज पर देश खड़ा है और निर्वाण के 500 साल बीत जाने के बाद जहां आज भी कबीर दिलों में बसे हैं। वहीं नेता जी लोग भी उनमें वोट तलाश रहे हैं। लेकिन हमें उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि जो हम बताने वाले हैं वो हमारे कईयों नेताओं को पता ही नहीं होगा।
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15वीं सदी के भारत में हुए थे कबीर। 'कबीर' का नाम अरबी शब्द अल-कबीर से लिया गया है। इसका हिंदी अर्थ है 'महान'। बेशक वो महान तो हैं ही।
कबीर को मानने वाले 'कबीरपंथी' कहलाते है। इनकी संख्या 9.6 मिलियन है।
कबीर के जन्म को लेकर जो सबसे प्रचलित कथा है। उसके मुताबिक कबीर का जन्म काशी में हुआ। उनकी माता एक ब्राह्मण विधवा थी। जिसने जन्म तो दिया लेकिन उन्हें त्याग दिया। इसके बाद नीरू और नीमा नाम के मुस्लिम बुनकर परिवार ने उनको पाला।
संत स्वामी रामानंद कबीर के गुरु थे। स्वामी के निधन के समय कबीर सिर्फ 13 साल के थे।
कबीर ने जब यज्ञोपवीत और खतना को बेमतलब करार दिया तो उनका काफी विरोध हुआ क्योंकि हिंदू व मुस्लिम के लिए ये उनकी आस्था पर प्रहार था।
कबीर साधु नहीं थे, क्योंकि उन्होंने सांसारिक जीवन नहीं त्यागा बल्कि मध्यम मार्ग का चुनाव किया।
कबीर की भाषा में राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्द बहुलता से हैं।
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कबीर ने 'बीजक' की रचना की जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों ही धर्मों के पाखंडों की आलोचना की है।
कबीर वेद और कुरान दोनों को ही छोड़कर जीने के लिए सहज मार्ग अपनाने की बात कहते हैं।
कबीर ने राम को पूजा लेकिन ये राम वो नहीं थे जिनका वर्णन रामायण में है। कबीर के राम निराकार हैं।