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फेक न्यूज : ये जंग नहीं आसान

raghvendra
Published on: 20 July 2018 4:56 PM IST
फेक न्यूज : ये जंग नहीं आसान
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नई दिल्ली: फेक न्यूज़ जो एक हंसी मजाक के तौर पर शुरू हुआ था आज बहुत बड़ी समस्या बन कर खड़ा हो गया है। वैसे तो फेक न्यूज हमारे बीच बरसों से होली के मौके पर सामने आती थी जब अखबार और पत्रिकाएं काल्पनिक और कोरी गप्प वाले आइटम प्रकाशित करते थे लेकिन आज व्हाट्सअप और फेसबुक के समय में फेक न्यूज लोगों की हत्या और भीड़ तंत्र का वाहक बन गया है। ये इतना बढ़ गया है कि फेसबुक कंपनी को इसे रोकने के रास्ते नहीं सूझ रहे।

ये जानना जरूरी है कि हास्य, पैरोडी, मीडिया और विश्लेषणों के बीच फर्क साफ होना चाहिये। मिसाल के तौर पर ट्विटर सेलेब्रिटीज के पैरोडी एकाउंट्स हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो पैरोडी अकाउंट के ट्वीट पढ़ कर समझते हैं कि वह वास्तविक अकाउंट से किया गया है। अगर ये समझा जाये कि आज के समय में फेक न्यूज हास्य पैदा करने वाली खबर होती है तो कतई ऐसा नहीं है।

दरअसल इसके पीछे दुर्भावनापूर्ण इरादे होते हैं या विज्ञापन द्वारा कमाई करने का स्वार्थपूर्ण उद्देश्य होता है, जिसके लिए करोड़ों इंटरनेट यूजर्स के भोलेपन के साथ खिलवाड़ किया जाता है और उन्हें कैसी भी विषयवस्तु थमा दी जाती है। फेक न्यूज फैलाने में सबसे बड़ा माध्यम बन चुके वाट्एसएप को अब अपना एक संदेश यूजर तक पहुंचाने के लिये भारत में अखबारों का सहारा लेना पड़ रहा है। उसने अखबारों में एक विज्ञापन जारी किया है और इसमें भी उसने फेक न्यूज से निपटने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। एक तरह से यह भी साबित होता है कि वाट्सएप को भी अपने ही प्लेटफॉर्म पर ज्यादा भरोसा नहीं रहा है। जो विज्ञापन जारी किया गया है उसे एक मैसेज की तरह एक क्लिक में भेजकर करोड़ों लोगों तक संदेश पहुंचाया जा सकता था।

झूठी खबरों के प्रसार के पीछे दिमागी वजह भी

एक शोध के मुताबिक फेक न्यूज के प्रसार का कारण किसी खास विचारधारा से जुड़े रहना नहीं बल्कि सोचने समझने की शक्ति की कमी का होना है। ‘कॉग्निशन’ नामक मनोवैज्ञानिक पत्रिका में छपे शोध के अनुसार, विश्लेषण क्षमता वाले लोगों द्वारा फेक न्यूज पर विश्वास करने की संभावना कम होती है।

व्हाट्सअप की ओर से जारी किये गये दिशा-निर्देश

  • फारवर्ड किये संदेशों से सावधान रहें।
  • ऐसी जानकारी की जांच करें जिस पर यकीन करना कठिन हो।
  • संदेशों में मौजूद फोटो को ध्यान से देखें।
  • अन्य स्त्रोतों का उपयोग करें।
  • आप जो देखना चाहते हैं उसे नियंत्रित कर सकते हैं।
  • ऐसी जानकारी या तथ्यों पर सवाल उठाएं जो आपको परेशान करती हो।
  • ऐसे संदेशों से बचें जो थोड़े अलग दिखते हों।
  • लिंक भी जांच करें।
  • सोच- समझकर संदेशों को साझा करें।
  • झूठी खबरें अक्सर फैलती हैं।

ट्विटर ने किए 7 करोड़ फर्जी खाते बंद

फेक न्यूज और फर्जी अकाउंट से निपटने के क्रम में ट्विटर ने मई और जून में सात करोड़ से अधिक फर्जी खाते बंद कर दिए। इसके बाद ट्विटर ने एक ही दिन में करीब 10 लाख खाते बंद कर दिए। ट्विटर से फिलहाल 33 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। फर्जी खाते बंद किए जाने के बाद इसके मासिक एक्टिव यूजर की संख्या में तेज गिरावट की आशंका है। वाशिंगटन पोस्ट की एक रपट में कहा गया है कि अक्टूबर के बाद से खाते बंद करने की प्रक्रिया में दोगुनी वृद्धि हुई है। ट्विटर ने अमेरिकी कांग्रेस में कहा था कि किस तरह रूस में फर्जी खातों के जरिए 2016 के राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की गई थी। बहरहाल, ट्विटर की ‘सफाई अुभयान’ का नतीजा ये हुआ है कि पीएम मोदी से लेकर शाहरुख खान ता के लाखों फालोवर्स एक झटके में गायब हो गये हैं। वजह ये है कि ये सब फर्जी फालोवर थे।

दृसरी ओर फेसबुक ने स्पष्ट किया है कि वह अपने प्लेटफॉर्म से फेक न्यूज को नहीं हटाएगा क्योंकि ये कम्यूनिटी गाइडलाइन्स का उल्लंघन नहीं करती हैं।

फेसबुक ने हालांकि ये भी कहा है कि उसे कोई खबर अगर झूठी लगेगी तो वह उसे न्यूज फीड में जगह नहीं देगा। फेसबुक इन दिनों ब्रिटेन मेन फेक न्यूज के खिलाफ अभियान चला रहा है। जिसमें उसने साफ कहा है कि ‘झूठी खबर हमारी मित्र नहीं है।’ लेकिन कंपनी का ये भी कहना है कि ‘प्रकाशक के पास अक्सर काफी अलग-अलग मत होते हैं और झूठे पोस्ट को हटाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत के विपरीत है।’

पोस्टकार्ड न्यूज को फेसबुक ने हटाया

  • फेसबुक ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए फेक न्यूज फैलाने के आरोप में वेबसाइट ‘पोस्टकार्ड न्यूज’ के पेज को सोशल मीडिया साइट से हटा दिया गया है।
  • पोस्टकार्ड न्यूज के फाउंडर महेश विक्रम हेगड़े को कर्नाटक पुलिस ने 30 मार्च को गिरफ्तार किया था। कर्नाटक के एक जैन मुनि पर हमले की फेक न्यूज फैलाने का उन पर आरोप था। इससे पहले भी अक्सर यह पोर्टल सांप्रदायिक दंगे फैलाने वाली, उत्तेजक और गलत खबरें पब्लिश करती रही है। 2017 में अल्ट न्यूज ने इस वेबसाइट पर पोस्ट की गई फेक न्यूज के बारे में एक लंबी लिस्ट दी थी।
  • मार्च 2018 में कर्नाटक चुनाव के दौरान पोस्टकार्ड न्यूज ने एक रिपोर्ट छापी थी, जिसमें एक जैन मुनि पर मुस्लिम शख्स के हमला करने की बात थी। जबकि हकीकत में जैन मुनि के साथ सडक़ दुर्घटना हुई थी। जिस वजह से उन्हें चोटें आईं थीं।
  • जनवरी 2018 में पोर्टल ने एक खबर पब्लिश की थी कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में एक हिंदू दलित एक्टिविस्ट की जिहादियों ने निर्मम तरीके से हत्या कर दी। हालांकि ये भी फेक न्यूज ही निकली।
  • जून 2018 में पोस्टकार्ड न्यूज ने एक लेख पब्लिश किया जिसमें दावा किया गया था कि प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि पीएम मोदी की तारीफ की वजह से सोनिया गांधी ने उनका अपमान किया। ये भी फेक न्यूज ही निकल।
  • इस न्यूज पोर्टल ने एक खबर पब्लिश की थी, जिसमें ये दावा किया गया था कि कर्नाटक में सोशल साइंस की किताबों में इस्लाम को बढ़ावा देने, ईसाई धर्म को फैलाने और बच्चों को चर्च और मस्जिदों में जाने के लिए प्रेरित करने वाले चैप्टर हैं। ये भी फेक न्यूज ही थी।
  • पोस्टकार्ड न्यूज के फाउंडर महेश हेगड़े को जब गिरफ्तार किया गया था तो ऐसा लगा था कि इस वेबसाइट पर फेक न्यूज पब्लिश नहीं होगी लेकिन ये लगातार जारी रहा। हेगड़े की गिरफ्तारी के समय केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े, कई बीजेपी सांसद, विधायक और नेता ने इस गिरफ्तारी पर आपत्ति जाहिर की थी।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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