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हरियाणा में भाजपा के लिए मुसीबत बना किसान आंदोलन, खट्टर को महंगी पड़ी नाराजगी

महापंचायत से पहले ही काफी संख्या में किसान कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गए और जमकर तोड़फोड़ की। पानी की बौछारों और आंसू गैस के गोलों का भी किसान प्रदर्शनकारियों पर कोई असर नहीं हुआ।

Roshni Khan
Published on: 11 Jan 2021 12:07 PM IST
हरियाणा में भाजपा के लिए मुसीबत बना किसान आंदोलन, खट्टर को महंगी पड़ी नाराजगी
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हरियाणा में भाजपा के लिए मुसीबत बना किसान आंदोलन, खट्टर को महंगी पड़ी नाराजगी (PC: social media)

चंडीगढ़: केंद्र सरकार की ओर से पारित तीन कृषि कानून के प्रति किसानों की नाराजगी हरियाणा में भाजपा के लिए मुसीबत बनती जा रही है। रविवार को किसानों की नाराजगी के चलते हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर करनाल जिले के कैमला गांव में किसान महापंचायत नहीं कर सके। इस मामले में 71 लोगों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज की गई है। इन लोगों पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा है।

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महापंचायत से पहले ही काफी संख्या में किसान कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गए और जमकर तोड़फोड़ की। पानी की बौछारों और आंसू गैस के गोलों का भी किसान प्रदर्शनकारियों पर कोई असर नहीं हुआ। मंच को क्षतिग्रस्त किए जाने से आखिरकार खट्टर का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। हालांकि बाद में मीडिया से बातचीत में खट्टर ने इसके लिए कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना करते हुए कहा कि इन दोनों दलों का ही तोड़फोड़ में हाथ था। दूसरी ओर जानकारों का कहना है कि किसानों की नाराजगी अब हरियाणा में भाजपा के लिए महंगी साबित होती दिख रही है।

इस कारण महापंचायत को करना पड़ा रद्द

मुख्यमंत्री खट्टर करनाल जिले के कैमला गांव में होने वाली इस किसान महापंचायत में केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के फायदे बताने वाले थे। किसान आंदोलन के प्रति केंद्र सरकार के रवैये से नाराज चल रहे किसानों ने महापंचायत की शुरुआत से पहले ही उग्र तेवर दिखाते हुए ऐसी तोड़फोड़ की कि खट्टर को पंचायत रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

किसान दिल्ली की सीमाओं पर काफी दिनों से चल रहे आंदोलन के प्रति केंद्र सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये से काफी नाराज हैं। महापंचायत रद्द होने के बाद भाजपा नेता रमण मल्लिक ने कहा कि बीकेयू के नेता गुरनाम सिंह चरूनी के कहने पर किसानों ने हुड़दंग किया जिसकी वजह से कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा।

पुलिसकर्मियों पर भारी पड़े किसान

भारतीय किसान यूनियन (चरूनी) के तत्वावधान में किसानों की ओर से पहले ही घोषणा की गई थी कि वे किसी भी सूरत में किसान महापंचायत नहीं होने देंगे। किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं।

किसानों ने काले झंडे लेकर भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और कैमला गांव की ओर मार्च भी निकाला। सरकार के प्रति किसानों में इतना गुस्सा दिखा कि पुलिसकर्मियों के रोकने के बावजूद प्रदर्शनकारी किसान नहीं माने और उन्होंने मंच पर कब्जा कर लिया। इससे समझा जा सकता है कि भाजपा सरकार के प्रति किसानों की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है।

खट्टर ने साधा कांग्रेस और लेफ्ट पर निशाना

बाद में मीडिया से बातचीत में खट्टर ने इस पूरे घटनाक्रम के लिए कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन की आड़ लेकर कांग्रेस और वाम दल अपनी खोई जमीन हासिल करने की कोशिश में लगे हुए हैं। उन्होंने बीकेयू के नेता गुरनाम सिंह चरूनी पर भी निशाना साधा।

उन्होंने कहा कि प्रशासन ने विरोध करने वाले किसानों से बातचीत भी की थी और इस पर वे सांकेतिक विरोध करने पर सहमत हो गए थे। इसके बावजूद कुछ लोगों ने तोड़फोड़ करके प्रशासन को महापंचायत के कार्यक्रम को रद्द करने पर मजबूर किया।

कांग्रेस को याद दिलाई आपातकाल की बात

हरियाणा का मुख्यमंत्री ने कहा कि किसी को भी बोलने से रोकना या किसी कार्यक्रम में बाधा डालना उचित कदम नहीं है। कांग्रेस ने 1975 में लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश रची थी और उस समय लोगों ने कांग्रेस के इस घृणित कार्य के लिए उसे सजा देते हुए सत्ता से बाहर कर दिया था। अब एक बार फिर कुछ लोग जोर-जबर्दस्ती की कोशिश में जुटे हुए हैं और यह कदम उचित नहीं माना जा सकता।

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किसान संगठनों की नाराजगी से बढ़ी मुसीबत

सियासी जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से तीनों कृषि कानूनों को रद्द न किए जाने से किसान संगठनों की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है। हरियाणा में किसान संगठन काफी मजबूत हैं और किसानों ने मुख्यमंत्री को अपना कार्यक्रम रद्द करने के लिए मजबूर करके अपनी ताकत दिखा दी है।

दरअसल किसान आंदोलन हरियाणा में भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है। अब हर किसी की नजर केंद्र और किसान संगठनों के बीच 15 जनवरी को होने वाली बातचीत पर टिकी है। देखने वाली बात यह होगी कि सरकार और किसान संगठनों के बीच होने वाली नौवें दौर की बातचीत में सरकार किसान संगठनों को मनाने में कामयाब हो पाती है या नहीं।

रिपोर्ट: अंशुमान तिवारी

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