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किसान आंदोलन: समिति के बाकी सदस्यों पर बढ़ा दबाव, मान ने इसलिए लिया ये फैसला

भारतीय किसान यूनियन (मान) के प्रमुख भूपिंदर सिंह मान राज्यसभा के भी सदस्य रह चुके हैं। किसानों के मुद्दों को लेकर उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रपति ने 1990 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया था।

Roshni Khan
Published on: 15 Jan 2021 6:53 AM GMT
किसान आंदोलन: समिति के बाकी सदस्यों पर बढ़ा दबाव, मान ने इसलिए लिया ये फैसला
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किसान आंदोलन: समिति के बाकी सदस्यों पर बढ़ा दबाव, मान ने इसलिए लिया ये फैसला (PC: social media)

नई दिल्ली: किसान आंदोलन खत्म कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गई पहल भी बेदम होती नजर आ रही है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से आंदोलन को लेकर बनाई गई चार सदस्यीय समिति में शामिल भूपिंदर सिंह मान इससे खुद को अलग कर लिया है। प्रभावशाली किसान नेता माने जाने वाले मान का कहना है कि किसान हितों की रक्षा के लिए वे किसी भी पद को न्योछावर करने के लिए तैयार हैं।

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मान के समिति से अलग होने के बाद किसान नेताओं ने समिति के अन्य सदस्यों पर भी समिति से अलग होने के लिए दबाव बढ़ा दिया है। किसान नेताओं ने कहा है कि हम कोई समिति नहीं चाहते और तीनों कानूनों को रद्द किए जाने से कम कुछ भी मंजूर नहीं होगा।

केंद्र सरकार की ओर से पारित नए कृषि कानूनों के समर्थन में दिसंबर महीने में कृषि मंत्री को चिट्ठी लिखने वाले मान ने खुद को लेकर पैदा हुए विवाद के बाद समिति से अलग हो जाने को ही बेहतर समझा। कई किसान संगठनों ने उन्हें कृषि कानूनों का समर्थक बताते हुए उनके नाम पर कड़ी आपत्ति जताई थी।

farmer farmer (PC: social media)

राज्यसभा के भी सदस्य रह चुके हैं मान

भारतीय किसान यूनियन (मान) के प्रमुख भूपिंदर सिंह मान राज्यसभा के भी सदस्य रह चुके हैं। किसानों के मुद्दों को लेकर उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रपति ने 1990 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया था। उन्हें जुझारू और प्रभावशाली किसान नेता माना जाता रहा है। वे ऑल इंडिया किसान कोआर्डिनेशन कमेटी के भी प्रमुख हैं। इस कमेटी में किसानों के कई प्रमुख संगठन शामिल हैं।

किसान हितों के लिए किया संघर्ष

मान ने खुद को समिति में शामिल किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया अदा किया है मगर इसके साथ ही समिति से अलग हो जाने का भी फैसला किया है। उन्होंने कहा कि वे जीवन भर किसान हितों के लिए संघर्ष करते रहे हैं और मौजूदा समय में भी किसानों और पंजाब के लोगों के साथ खड़े हैं। यही कारण है कि खुद को कमेटी से अलग कर रहे हैं।

मान ने 1966 में बनाई थी यूनियन

किसानों के मुद्दों को लेकर मान दशकों से संघर्ष करते रहे हैं। उन्होंने 1966 में पंजाब खेतीबाड़ी यूनियन का गठन किया था और आगे चलकर 1980 में यही संगठन भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के रूप में तब्दील हो गया। बीकेयू को किसानों के सबसे ताकतवर संगठन के रूप में जाना जाता रहा है। हालांकि संगठन में कई बार टूट भी हो चुकी है।

गन्ना किसानों की समस्याओं को लेकर मान ने 1972 में बड़ा आंदोलन चलाया था। इस आंदोलन के जरिए मान ने गन्ना किसानों की एक बड़ी समस्या का समाधान कराया था। इस आंदोलन के बाद ही सरकार की ओर से गन्ने की सप्लाई के लिए हर पेराई सत्र से पहले कैलेंडर सिस्टम को लागू किया गया था।

इसके साथ ही मान पंजाब में बिजली दरों मैं बढ़ोतरी के खिलाफ भी आंदोलन छेड़ चुके हैं। इस आंदोलन में भी मान को कामयाबी हासिल हुई थी और सरकार दरों में कमी करने पर मजबूर हुई थी।

कैप्टन अमरिंदर सिंह के समर्थक

दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डालने वाले किसानों में सबसे ज्यादा संख्या पंजाब और हरियाणा के किसानों की है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ काफी मुखर रहे हैं और उन्होंने पंजाब विधानसभा में इन कानूनों को पंजाब में लागू न करने का प्रस्ताव भी पारित कराया था।

मान को कैप्टन अमरिंदर सिंह का समर्थक माना जाता है। वे कई मौकों पर कैप्टन की खुलकर तारीफ भी कर चुके हैं। माना जा रहा है कि इस कारण भी उन्होंने समिति से अलग हो जाने का फैसला किया है।

नए कृषि कानूनों का किया था समर्थन

किसान संगठनों ने मान के नाम पर आपत्ति इसलिए जताई क्योंकि मान ने गत दिसंबर में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में उन्होंने केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों का समर्थन किया था। उन्होंने इन कानूनों को किसानों के हित में बताया था मगर उनका कहना था कि इन कानूनों में कुछ बदलावों की भी जरूरत है। उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर सरकार से लिखित गारंटी देने की भी मांग की थी।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से चार सदस्यीय समिति में मान का नाम आने के बाद ही किसान संगठनों ने उनकी चिट्ठी को आधार बनाते हुए उनके नाम पर गहरी आपत्ति जतानी शुरू कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने गत दिनों किसान आंदोलन से जुड़े मुद्दे पर महत्वपूर्ण आदेश देते हुए कृषि कानूनों के अमल पर अस्थायी रोक लगा दी थी। कोर्ट ने किसानों से बातचीत कर रिपोर्ट देने के लिए चार सदस्यों की समिति का गठन किया था। इस समिति में भूपिंदर सिंह मान के अलावा प्रमोद जोशी, अशोक गुलाटी और अनिल धनवंत को सदस्य बनाया गया है।

विवाद पैदा होने पर लिया बड़ा फैसला

आंदोलनकारी किसान संगठनों ने समिति के सदस्यों के नामों पर आपत्ति जताते हुए एलान किया है कि इस समिति से बातचीत करने का कोई मतलब नहीं है। किसान संगठनों का कहना है कि समिति के सभी सदस्य कृषि कानूनों की वकालत करते रहे हैं। ऐसे में इस समिति से बातचीत से कोई समाधान नहीं निकलने वाला। अपने नाम पर विवाद पैदा होने के बाद मान ने समिति से खुद को अलग करना ही बेहतर समझा है।

किसान नेताओं ने बढ़ाया दबाव

दूसरी और किसान नेताओं ने समिति के बाकी तीन सदस्यों पर भी समिति से अलग होने के लिए दबाव बढ़ा दिया है। किसान नेताओं ने कहा कि बाकी तीन अन्य सदस्यों को भी समिति से अलग हो जाना चाहिए।

farmer farmer (PC: social media)

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किसान नेताओं ने कहा कि किसान संगठनों की ओर से कृषि कानूनों पर गतिरोध खत्म करने के लिए किसी भी समिति के गठन की मांग ही नहीं की गई थी। उन्होंने कहा कि समिति के जरिए समस्या का कोई समाधान नहीं होने वाला है क्योंकि किसानों को तीनों कानूनों को रद्द किए जाने से कम कुछ भी मंजूर नहीं होगा। ऐसे में समिति से बातचीत का कोई मतलब नहीं निकलने वाला है। किसान नेताओं ने मान को किसान आंदोलन में शामिल होने का न्योता भी दिया है।

किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा कि मान का फैसला अच्छा कदम है क्योंकि किसान संगठनों के लिए किसी भी समिति का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि समिति के अन्य सदस्यों को भी इससे अलग हो जाना चाहिए।

रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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