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राजनीतिक दलों के लिये किसानों की कर्ज माफी बना चुनावी हथियार
नई दिल्ली: राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनावों के बाद साथ जिस तरह किसान कर्ज माफी की घोषणाएं की गईं हैं उससे साफ है कि अब ग्रामीण वोट बैंक पर कब्जा जमाने के लिए किसान कर्ज माफी फिर एक बड़ा हथियार बन गया है। खाद्य जिंसों की कम कीमतों और खेती-किसानी पर छाए संकट के चलते नेताओं को किसान कर्ज माफी की आवाज बुलंद करने के हौसलों को मजबूती मिली है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार २०१७-१८ की शुरुआत से दस राज्य किसान कर्ज माफी की घोषणा कर चुके हैं। इनके द्वारा घोषित कर्ज माफी करीब १.७० लाख करोड़ रुपए की है। अभी तक तो अलग-अलग राज्य कर्ज माफी योजना चलाते रहे लेकिन अब कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने तो बात आगे ले जाते हुए ऐलान कर दिया है कि अगर २०१९ में उनकी सरकार बनी तो देश भर के सभी कृषि लोन माफ कर दिए जाएंगे। बता दें कि आखिरी बार राष्ट्रव्यापी कृषि कर्ज माफी योजना की घोषणा २००८ में की गई थी जब कांग्रेस नीत सरकार ने ५२२६० करोड़ रुपए के कृषि लोन माफ कर दिए थे। मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने घोषणा की है किसानों के २ लाख रुपए तक के कर्ज माफ कर दिए जाएंगे। इससे राज्य पर ३५ हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। छत्तीसगढ़ में ६ हजार करोड़ रुपए के कर्ज माफी की घोषणा है जबकि राजस्थान में ८ हजार करोड़ रुपए की कर्ज माफी की गई है।
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, २६ अक्टूबर २०१८ तक कृषि क्षेत्र व संबंधित सेवाओं पर बैंकों का बकाया कर्ज १०.६० लाख करोड़ रुपए का था। अभी तक विभिन्न राज्य इस बकाया ऋण के करीब १६ फीसदी राशि की कर्ज माफी की घोषणा कर चुके हैं। २००८ में जब ५२२६० करोड़ रुपए की कर्ज माफी गई थी तो वह रकम कुल कृषि कर्ज की करीब १८ फीसदी थी।
असर बैंकों पर
कर्ज माफी की घोषणा होने से बैंकों के कृषि कर्ज के बट्ट खाते कम हो जाते हैं। क्योंकि सरकार ओवरड्यू कर्ज को समाप्त कर देती है। लेकिन दूसरा प्रभाव यह होता है कि कर्ज वापसी की हैसियत वाले लोग भी कर्ज माफी की उम्मीद में कर्ज वापस नहीं करते हैं। एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार भारतीय स्टेट बैंक के कृषि कर्ज के बट्ट खाते की रकम पिछली कर्ज माफियों के बाद तेजी से बढ़ी है। जब उत्तर प्रदेश ने सितम्बर २०१८ में कृषि कर्ज माफी का ऐलान किया तो उसके बाद स्टेट बैंक के बट्ट खाते की रकम ६.४ फीसदी से बढ़ कर ११.४ फीसदी हो गई। मतलब यह कि कृषि कर्ज धारकों ने बकाया जमा करना और भी बंद कर दिया।
ताजा कृषि कर्ज माफी के ऐलान के बाद बाकी राज्यों के किसानों को भी उम्मीद है कि अगले साल लोकसभा चुनाव के पहले सरकार कर्ज माफ करने का ऐलान कर सकती है। इसी आस में कई राज्यों में किसानों ने अपने लोन की किश्तें देना बंद कर दिया है। मसलन उत्तर प्रदेश के कानपुर मंडल में ही कर्ज अदायगी में 60 फीसदी गिरावट आई है। यहां पिछले वित्तीय वर्ष में 70 फीसदी किसानों ने किश्तें जमा की थीं, इस बार मुश्किल से 30 फीसदी ने ही किश्तें जमा की हैं। अन्य शहरों व राज्यों में भी यही स्थिति है। उन्नाव में 1,26,258 किसानों को 1267.58 करोड़ का लोन दिया गया। लगभग 60 फीसदी ने ही तिमाही में किश्तें जमा की हैं। हरदोई में डेढ़ लाख किसानों को 100 करोड़ से अधिक लोन दिया गया, पर 60 फीसदी कर्ज अदा नहीं किया।
बिहार में पिछली तिमाही में 8 लाख 27 हजार 425 किसानों ने 4,898 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया था। इस तिमाही में 8 लाख 75 हजार 175 किसानों ने 4,958 करोड़ रुपये नहीं चुकाए। इस प्रकार पिछले तीन माह में कर्ज अदायगी नहीं करने वाले किसानों की संख्या में 47 हजार 750 की बढ़ोतरी हुई। यानी करीब 22 फीसदी किसानों ने किश्तें नहीं जमा कीं।
विशेषज्ञों ने किया आगाह
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने किसानों की कर्जमाफी का विरोध किया है। उन्होंने कहा है कि ऐसे फैसलों से राजस्व पर असर पड़ता है। राजन ने कहा, ‘किसान कर्ज माफी का सबसे बड़ा फायदा सांठगाठ वालों को मिलता है। अकसर इसका लाभ गरीबों को मिलने की बजाए उन्हें मिलता है, जिनकी स्थिति बेहतर है। जब भी कर्ज माफ किए जाते हैं, तो देश के राजस्व को भी नुकसान होता है।’
स्टेट बैंक की पूर्व चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य ने भी किसान कर्ज माफ किए जाने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने अनुशासन बिगडऩे की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि कर्ज लेने वाले कर्ज चुकाने के बजाय अगले चुनाव का इंतजार करेंगे। किसान कर्ज माफी का विरोध करने वालों में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रहे एस.एस. मूंदड़ा भी शामिल रहे हैं।
भारत में पहली बड़ी किसान कर्ज माफी वर्ष १९९० में वी.पी. सिंह की जनता पार्टी सरकार के समय हुई थी। उस समय १० हजार करोड़ रुपए की कर्ज माफी का ऐलान किया गया था। आंकड़ों के अनुसार इस कार्ज माफी से उबरने में बैंकों को करीब नौ साल लग गए थे। २००८ की कर्ज माफी के बाद से बैंकों का कृषि एनपीए तीन गुना बढ़ चुका है। हाल में महाराष्ट्र द्वारा कृषि कर्ज माफी की घोषणा के बाद तो बैंकों के शयर तीन फीसदी लुढक़ गए थे। विशेषज्ञों के अनुसार सरकार के पास कर्ज माफी का पैसा भरने की क्षमता नहीं होती है सो बाजार से उधारी का रास्ता अपनाया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप वित्तीय घाटा बढ़ता है और पूंजीगत खर्च घटता है। चिंता ये भी है कि अगले साल आंध्र प्रदेश, हरियाणा और ओडीशा में चुनाव होने वाले हैं। अगर इन राज्यों में भी कर्ज माफी की घोषणाएं की गईं तो भारतीय बैंकों के सामने चुनौतियों का बहुत बड़ा पहाड़ खड़ा हो जाएगा।