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टिकैत बनाम योगेंद्रः किस करवट बैठेगा किसान आंदोलन का ऊंट, तय हो जाएगा आज
आज एक बड़ी मीटिंग होने जा रही है जिसमें सभी 40 यूनियनों के प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है। हालांकि इनमें किसान नेता राकेश टिकैत का नाम गायब है।
रामकृष्ण वाजपेयी
केंद्र सरकार से 22 जनवरी को वार्ता के बाद आए गतिरोध को दूर करने के लिए नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रही 40 किसान यूनियनें क्या अपनी रणनीति में बदलाव कर रही हैं। मंगलवार को मीडिया में आई खबरें तो कुछ ऐसे ही संकेत दे रही हैं।
आज किसानों की बड़ी मीटिंग
रिपोर्टों में यह कहा गया है कि नये कानूनों का विरोध कर रही किसान यूनियनें सरकार के साथ बातचीत की संभावना की तलाश के लिए नौ सदस्यीय कमेटी का गठन करने जा रही हैं। इस सम्बंध में निर्णय लेने के लिए बुधवार यानी आज एक बड़ी मीटिंग होने जा रही है जिसमें सभी 40 यूनियनों के प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है। बड़ी बात यह है कि बातचीत की संभावना तलाशने के लिए जिन सदस्यों के नाम सामने आए हैं उसमें संयुक्त किसान मोर्चा के प्रवक्ता के रूप में उभरे भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का नाम गायब है। इससे इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि किसान आंदोलन के सूत्रधारों में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
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सभी 40 यूनियनों के प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना
इसका असर मंगलवार को दिखा भी जब किसान नेता राकेश टिकैत गाजीपुर बार्डर पर मंच पर न बैठकर किसान प्रदर्शनकारियों के बीच जाकर बैठ गए। उनके इस कार्य से हड़कंप मच गया। पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मै भी एक किसान प्रदर्शनकारी हूं। किसानों के बीच बैठा हूं तो बुरा किया। लेकिन अपने इस एक्शन से उन्होंने जो संदेश देना था वह दे दिया। यानी जो हो रहा है उससे वह खुश नहीं हैं।
किसान नेता राकेश टिकैत बलिया में
मंगलवार को मीडिया में नौ सदस्यीय पैनल के नाम सामने आने के बाद देर शाम किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा ने हालांकि एक वक्तव्य के जरिये ये साफ किया है कि ऐसा कोई पैनल अभी गठित नहीं हुआ है। किसानों के एकीकृत फ्रंट संयुक्त किसान मोर्चा के एक सदस्य दर्शन पाल ने मंगलवार को कुछ नेताओं के साथ बैठक के बाद कहा है कि सभी यूनियनों की सामान्य सभा में कोई निर्णय होने तक इस बारे में सार्वजनिक रूप से कोई बात कहना उचित नहीं होगा। हालांकि एक अन्य नेता योगेंद्र यादव ने कहा है कि औपचारिक और अनौपचारिक रूप से पूर्व में भी इस बारे में बात हो चुकी है।
योगेंद्र यादव बोले-
यादव ने कहा है कि संयुक्त किसान मोर्चा की सर्वोच्च संस्था ने विशेष रूप से आमंत्रित युधवीर सिंह और जोगिंदर सिंह को शामिल करने के बाद नौ सदस्यीय कमेटी का विस्तार कर दिया है। अन्य सदस्यों में हन्नाह मौला, गुरनाम सिंह चदूनी, शिव कुमार कक्का, जगजीत दल्लेवाल, दर्शन पाल, बलवीर सिंह राजेवाल और योगेन्द्र यादव के नाम हैं।
किसान मोर्चा को कमेटी के गठन की बात से इनकार
हालांकि देर शाम योगेंद्र यादव के सरकार से बातचीत के लिए नौ सदस्यीय कमेटी के गठन के बयान का खंडन करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि ऐसी किसी कमेटी का गठन नहीं किया गया है। किसानों की सरकार के साथ अंतिम बातचीत 22 जनवरी को हुई थी जिसमें कहा गया था कि वह कानूनों को खत्म करने के अपने प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने तक इंतजार करेंगे। इसके बाद सरकार ने किसान नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित नहीं किया है।
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हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके बाद कहा था कि सरकार किसानों से बातचीत के लिए एक काल की दूरी पर है जवाब में किसान आंदोलनकारियों ने भी खुद के एक काल की दूरी पर होने की बात कही थी। इससे लगता है कि किसान सरकार से बातचीत के उत्सुक थे लेकिन इसी बीच उनके नेताओं ने आंदोलन को व्यापक रूप देकर जनता तक ले जाने का फैसला ले लिया।
किसान नेताओं की एक टीम प.बंगाल और असम तक जाएगी
किसान नेताओं की एक टीम प.बंगाल और असम में मतदाताओं से किसान विरोधी भाजपा को वोट न देने की अपील करने की अपील लेकर जा रही है। यह कार्यक्रम 12 मार्च से शुरू होकर तीन दिन चलेगा।
संयुक्त किसान मोर्चा 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहा है। मोर्चा किसान विरोधी कानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की अपनी मांगों पर अड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में तीनों कानूनों पर रोक लगाई हुई है और प्रभावित लोगों से बातचीत के बाद रिपोर्ट देने के लिए कमेटी का गठन किया हुआ है। किसान नये कृषि कानूनों को 12 से 18 महीने के लिए टालने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को भी ठुकरा चुके हैं।
दूसरी ओर, संसद में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के रुख को स्पष्ट कर चुके हैं कि इन कानूनों की आवश्यकता है। भारत को लंबे समय से लंबित कृषि सुधारों को अपनाकर यथास्थिति से बाहर निकलने की आवश्यकता है।
पीएम बोले मौजूदा मंडी किसी भी तरीके से खतरे में नहीं
प्रधानमंत्री ने पिछले महीने भी कहा था कि देश के छोटे किसानों को नए कानूनों की बदौलत कृषि उपज के बड़े बाजारों ’तक पहुंच मिलेगी। उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों के सकारात्मक परिणाम पहले ही दिखाई देने लगे हैं, कानूनों ने किसानों के लिए बाजार के विकल्प को कई गुना बढ़ा दिया है, बिना मौजूदा मंडी के किसी भी तरीके से खतरे में डाले।
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हाल के दिनों में ये देखने में आया है कि जिस तरह किसान नेता राकेश टिकैत आंदोलन से किसान नेता के रूप में उभरे थे ये कुछ लोगों को रास नहीं आया था। इसका दबी जुबान से विरोध भी हो रहा था। आरोप भी लगाए गए कि आंदोलन का राजनीतिकरण किया जा रहा है। टिकैत की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे थे। इसके बाद योगेंद्र यादव किसान आंदोलन के प्रवक्ता के रूप में उभरते दिखे और किसान आंदोलन का नया कार्यक्रम उनकी ओर से ही जारी हुआ। अब देखने की बात यह है कि इस लड़ाई में किसान आंदोलन का ऊंट किस करवट बैठता है।