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किसान आंदोलन दो साल तक: पूरी प्लानिंग में संगठन, सरकार दबाव में आई अब
किसान आंदोलन के कारण सरकार पर दबाव बन रहा है। किसान जिस तरह से दिल्ली की सीमाओं पर डटे बैठे हैं, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि वे बिना मांग पूरी हुए आंदोलन नहीं खत्म करेंगे, चाहे 6 महीने बीत जाएँ या फिर साल दो साल।
नई दिल्ली: लगभग पिछले तीन महीनों से जारी देशभर के किसानों के आंदोलन को लेकर कभी सरकार का पलड़ा भारी तो कभी किसानों की जिद्द तगड़ी नजर आती है। दोनों अपने अपने पक्ष पर अड़े हैं। किसान कृषि कानूनों को पड़ करने की मांग कर रहे हैं तो वहीं सरकार इसमें संशोधन को तैयार है, अस्थाई रोक के लिए भी तैयार है लेकिन पूरी तरह से कृषि कानूनों को रद्द करने के पक्ष में नहीं है। इसी कड़ी में अब तक किसान ,भूख हड़ताल, ट्रैक्टर रैली और चक्का जाम तक कर चुके हैं। वहीं अब किसानों का दावा है कि सरकार दबाव में आ रही है।
किसान मांग पर अड़े, दो साल तक कर सकते हैं आंदोलन
दरअसल, कहा जा रहा है कि किसान आंदोलन के कारण सरकार पर दबाव बन रहा है। किसान जिस तरह से दिल्ली की सीमाओं पर डटे बैठे हैं, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि वे बिना मांग पूरी हुए आंदोलन नहीं खत्म करेंगे, चाहे 6 महीने बीत जाएँ या फिर साल दो साल। मालुम हो कि किसानों ने तो बॉर्डर पर ही खेती शुरू कर दी और पशुपालन की भी तैयारी में हैं।
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ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यवान का दावा
ऐसे में किसानों के इस अडिग कदम पर शुरुआत से ही किसान आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभा रहे ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यवान ने कहा संकेत दिए कि सरकार चाहे जो कर ले, लेकिन ये आंदोलन नहीं टूटेगा। उन्होंने कहा भले ही किसान संगठनों की स्थिति दाना और भूसे जैस है लेकिन इसके बावजूद हम गारंटी देते हैं कि आंदोलन नहीं रुकेगा, मांग पूरी होने तक जारी रहेगा।
सरकार किसानों के जवाब कर नहीं दे पा रही
वहीं उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि मोदी सरकार के प्रतिनिधि बातचीत के दौरान ये तक नहीं बता सके कि ये कानून लाने में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई। सरकार तीन कानूनों के ‘स्टेटमेंट ऑफ ऑब्जेक्शन एंड रीजन’ को लेकर भी चुप है।
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मंत्रियों को ही नहीं पता इस कानून के फायदे
गौरतलब है कि सरकार और किसान नेताओं के बीच अबतक 10 चरणों में बातचीत हो चुकी हैं लेकिन कृषि कानूनों पर कोई हल नहीं निकला। किसानो का कहना है कि सरकार मामले में टालमटोल की नीति अपना रही है। ऐसे में किसानों में निराशा और नाराजगी जायज है। किसान नेता ने कहा कि सरकार से वार्ता के लिए जाने से पहले हम सब उम्मीद करते हैं कि शायद आज बात बन जाये लेकिन सरकार तारीख पर तारीख दे रही है।
सरकार कानून में संशोधन की बात कह रही, लेकिन क्या संशोधित करेगी, इस पर चुप्पी
वहीं किसान नेता सत्यवान ने कहा कि मंत्रियों को ये तक नहीं पता कि इन कानूनों में ख़ास बात क्या है। उनसे पूछा जाता है तो इसका जवाब तक नहीं होता उनके पास। सरकार के प्रतिनिधि तक नहीं बता पा रहे कि क्या ये कानून कॉर्पोरेट के पक्ष में हैं। वहीं सरकार के कानून में संशोधन करने के सुझाव पर भी सत्यवान ने साफ़ जवाब दिया कि सरकार ये भी तो तय करें कि वो ने कृषि कानूनों में कौन से संशोधन की बात कर रही है। हमने क्लॉज के मुताबिक़ चर्चा की बात कही तो भी सरकार मुकर गयी।
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आंदोलन तोड़ने का हर तरीका आजमा चुकी सरकार, अब किसानों के दबाव में
किसान नेता ने कहा कि सरकार दबाव में है, इसीलिए उन्होंने आंदोलन को तोड़ने का हर तरीका आजमा लिया। अगर पीएम मोदी के सदन में दिए बयान के साथ ही सरकार और भाजपा के वरिष्ठ मंत्रियों और नेताओं के बयानों पर गौर करने तो स्पष्ट हो जायेगा कि सरकार अब भय में हैं, लेकिन झुकने को तैयार नहीं। हालाँकि झुँझलाहट साफ़ देखी जा सकती है।
उन्होने एलान कि किसान आंदोलन अक्टूबर तक नहीं, जरूरत प़ड़ी तो 2 साल तक हम आंदोलन कर सकते हैं। इसकी पूरी प्लानिंग है।
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