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कोर्ट में पहुंचा मामलाः एक देश एक पढ़ाई की व्यवस्था हो लागू
भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने देशभर में छह से 14 साल के बच्चों के लिए कॉमन सिलेबस लागू करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।
नई दिल्ली: पूरा देश इस समय कोरोना वायरस की मार झेल रहा है। कोरोना वायरस के चलते इस बार बच्चों की पढ़ाई काफी ज्यादा बधित हुई है।इस बेच अब देश में एक बार फिर वन नेशन वन बोर्ड की मांग तेज होने लगी है। भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने देशभर में छह से 14 साल के बच्चों के लिए कॉमन सिलेबस लागू करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।
सामाजिक और आर्थिक समानता के लिए एक जैसा सिलेबस जरूरी
बीजेपी नेता द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि इंडियन सर्टिफिकेट आफ सेकंडरी एजुकेशन बोर्ड यानी आईसीएसई (ICSE) व केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी सीबीएसई (CBSE) को भी मिलाकर एक ही एजुकेशन बोर्ड की स्थापना की संभावनाओं पर विचार किया जाना चाहिए। साथ ही याचिका में ये भी कहा गया कि केंद्र और राज्य सरकारों ने देशभर में समान एजुकेशन सिस्टम को लागू करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है।
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आर्टिकल 21 ए के तहत मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की बात की गई है। लेकिन इसके तहत बच्चों को उनके अधिकार नहीं मिले हैं। याचिका में इस बात का जिक्र करते हुए बताया गया कि आखिर क्यों देश में ये सिस्टम लागू होना जरुरी है। याचिका के मुताबिक़, '' सामाजिक और आर्थिक समानता व न्याय के लिए ये जरूरी है कि सभी प्राइमरी स्कूलों में सिलेबस और करिकुलम एक जैसा रहना चाहिए। फिर चाहे वो स्कूल लोकल बॉडी चलाती हों या फिर केंद्र और राज्य सरकारें।
सुप्रीम कोर्ट से जीएसटी काउंसिल की तर्ज पर नेशनल एजुकेशन काउंसिल बनाने की मांग
याचिका में ये भी कहा गया है कि संबंधित राज्य की आधिकारिक भाषा के चलते इंस्ट्रक्शंस का जरिया अलग हो सकता है। लेकिन 6 से 14 साल के बच्चों के लिए सिलेबस में कोई भेद नहीं होना चाहिए। याचिका में देश में जीएसटी काउंसिल की तर्ज पर नेशनल एजुकेशन काउंसिल या नेशनल एजुकेशन कमीशन बनाने की संभावना तलाशने के लिए आदेश देने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की गई है।
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मौजूदा समय में हर एजुकेशन बोर्ड का अपना खुद का सिलेबस है। याचिका में साथ ही कहा गया, स्टेट बोर्ड स्टूडेंट्स के पास उतने संसाधन नहीं होते जिनसे वे सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों से होड़ कर सके। हालांकि ये अंतर पूरी तरह नहीं पाटा जा सकता। लेकिन कॉलेज और यूनिवर्सिटी की चाह रखने वाले छात्रों के लिए स्टैंडर्ड एंट्रेंस सिस्टम लागू करने पर विचार किया जा सकता है।