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Fire Tragedies in Delhi: दिल्ली में आखिर क्यों नहीं थम रही 'मुंडका' जैसी घटनाएं

Fire Tragedies in Delhi: दिल्ली में हजारों ऐसी बिल्डिंग हैं, जहां ऐसे कोई उपाय किए ही नहीं गए हैं कि आग लगने के बाद फ़ौरन उन पर काबू पाया जा सके। बड़ी वजह भवन निर्माण के दौरान होने वाली नियमों की अवहेलना है।

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Written By aman
Published on: 14 May 2022 12:13 PM GMT
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प्रतीकात्मक चित्र 

Fire Tragedies in Delhi: राजधानी दिल्ली के मुंडका अग्निकांड हादसे के बाद अब इसके पीछे की वजहों को खंगाला जा रहा है। इस पूरे मामले में बिल्डिंग के मालिक मनीष लाकड़ा की गंभीर लापरवाही सामने आई। हालांकि, दिल्ली में अग्निकांड का ये पहला मामला नहीं है। इस घटना के बाद अब यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर जब हमारे देश की राजधानी में आग से लड़ने की सुरक्षा व्यवस्था चुस्त नहीं है तो बाकि जगहों का क्या होगा। दिल्ली में इससे पहले भी कई बार इस तरह के हादसे सामने आ चुके हैं। इन हादसों की बड़ी वजह सिस्टम का ढ़ीला-ढाला और लचर रवैया नजर आया है। लेकिन, सबसे दुखद है कि इसके शिकार बेगुनाह आम लोग होते हैं। मुंडका मामले में भी 30 लोगों ने जान गंवाकर इसकी कीमत चुकाई।

सवाल उठता है कि क्या मुंडका में हुआ अग्निकांड आखिरी है? कोई गारंटी लेगा कि इस हादसे से सबक लेते हुए आगे ऐसी घटनाएं नहीं होने दी जाएंगी। जवाब होगा नहीं। जानकारी के लिए आपको बता दें कि, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हजारों की संख्या में ऐसी बिल्डिंग हैं, जहां ऐसे कोई उपाय किए ही नहीं गए हैं कि आग लगने के बाद फ़ौरन उन पर काबू पाया जा सके। इसके पीछे बड़ी वजह भवन निर्माण के दौरान होने वाली नियमों की अवहेलना है।

कमेटियों की सिफारिशों पर नहीं होता अमल

आपको याद होगा दिल्ली का चर्चित उपहार कांड। या फिर, दाल मंडी हादसे के बाद बनी कमेटी और उनकी सिफारिशें। क्या कभी उन कमेटियों की सिफारिशों पर अमल किया गया? जवाब, अगर किया गया होता तो मुंडका जैसा भीषण अग्निकांड होता ही नहीं।

वैकल्पिक रास्ते न होना बड़ी वजह

उदाहरण के लिए मुंडका हादसे को ही ले लें। यहां जिस फैक्टरी में आग लगी वहां के इंतजामों की हालत इतनी बदतर थी कि बाहर निकलने के लिए दूसरा रास्ता ही नहीं था। भवन में आने-जाने का एक ही रास्ता था ,उसी पर जनरेटर भी लगा था। जब आग लगी तो लोग बाहर निकल ही नहीं पाए और उनकी दर्दनाक मौत हो गई। आप दिल्ली के विभिन्न इलाकों में फैली फैक्ट्रियों पर नजर डालें तो ज्यादातर जगहों पर कमोबेश ऐसे ही हालात मिलेंगे। जहां आग लग जाने पर बाहर निकलने का कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं होता।

गलतियां दोहराई जाती रहीं, मगर..

दिल्ली में मौजूद फैक्ट्रियों में बड़ी संख्या उन बहुमंजिला इमारतों की भी है जिसमें उन्हीं जगहों पर बिजली के मीटर लगाए गए हैं, जहां से लोग ऊपर की मंजिलों पर आते-जाते हैं। कई बार ऐसा भी देखने को मिला है कि मीटरों में आग लगने धुआं भर गया। जिसके बाद लोग सीढ़ियों से नीचे आ ही नहीं सके और दम घुटने से उनकी मौत हो गई। बावजूद, सरकारी विभागों द्वारा ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया कि दोबारा हादसे न हों। कहने का मतलब है कि गलतियां दोहराई जाती रही, मगर उसकी रोकथाम के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए।

बिना NOC चल रही फैक्ट्रियां

आग लगने की घटनाओं और उसकी भयावह स्थिति पर गौर करने के बाद यही पता चलता है कि जब इमारतें बन रही होती हैं, उस वक्त अग्निशमन उपायों पर ध्यान नहीं दिया जाता। इसके लिए भवन के मालिक के साथ-साथ सरकारी तंत्र भी उतना ही जिम्मेदार है। साथ ही, वो कंपनियों के मालिक भी भागीदार बनते हैं जो बिना सुरक्षा उपायों को देखे वहां काम शुरू कर देते हैं। यही वजह है कि दिल्ली में हजारों ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जिनमें न तो अग्निशमन के व्यापक इंतजाम हैं और न ही भवन का नक्शा बनाते वक्त ऐसी किसी व्यवस्था पर गौर किया गया। चूंकि, सरकारी तंत्र में इतनी खामियां हैं कि बिना NOC लिए फैक्ट्रियां काम करने लगती हैं। जिसका नतीजा मुंडका जैसी घटनाएं होती हैं।

क्या होना चाहिए?

मन में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर क्या ऐसे इंतजाम हों जिससे भविष्य में अग्निकांडों को रोका जा सके? इसके लिए जरूरी है, कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में फायर सर्विस की अगुवाई में हर जिले में ऐसी टीम का गठन हो, जो अपने इलाके की इमारतों की पहचान कर ये सुनिश्चित करें, कि इनमें सेफ्टी इंतजाम क्या हैं। और ऐसा क्या किया जाए कि भविष्य में होने वाली ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। साथ ही, जब भी भवनों का निर्माण हो रहा हो तभी इस तरह नियम और शर्तें निर्माताओं के सामने रखी जाएं कि बिल्डिंग में आग से बचाव के जब तक पुख्ता प्रबंध नहीं होंगे, उनका नक्शा पास नहीं होगा। साथ ही, आग से बचाव के इंतजाम नहीं होने पर उस बिल्डिंग में रहने या काम करने की इजाजत नहीं मिलेगी।

इन्हीं, क़दमों को उठाकर भविष्य में होने वाली इन घटनाओं को रोका जा सकता है। अगर, इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो उपहार कांड, करोलबाग, अनाज मंडी अग्निकांड और अब मुंडका हादसे के बाद अगले किसी दुर्घटना का इंतजार रहेगा। जो पता नहीं कितनी बेगुनाहों की जान ले सकती है।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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