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फिटनेस संबंधी रिसर्च से खुलासा, एक्टिविटी में हिन्दुस्तानी जीरो

raghvendra
Published on: 1 Nov 2019 4:33 PM IST
फिटनेस संबंधी रिसर्च से खुलासा, एक्टिविटी में हिन्दुस्तानी जीरो
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मुम्बई: आजकल तरह तरह के फिटनेस बैण्ड का चलन है। लोग फिटनेस के प्रति जागरूक दिखते हैं लेकिन फिर भी सच्चाई ये है कि हिन्दुस्तानी लोग दुनिया में सबसे कम एक्टिव हैं। यही नहीं, हिन्दुस्तानी नींद के मामले में भी बहुत वंचित हैं।

‘फिटबिट’ कंपनी ने १८ देशों में फिटनेस संबंधी रिसर्च से ये निष्कर्ष निकाला है। हिन्दुस्तानी लोग रोजाना औसतन मात्र ६५३३ कदम ही चलते हैं। जिन १८ देशों में शोध किया गया उनमें ये सबसे कम है। सबसे एक्टिव लोग हांगकांग के हैं जो औसतन १०१३३ कदम रोजाना चलते हैं। नींद की बात करें तो हिन्दुस्तानी रोजना औसतन ७ घंटे १ मिनट सोते हैं। इस मामले में जापान की स्थिति सबसे खराब है जहां लोग औसतन ६ घंटा ४७ मिनट ही सोते हैं। ‘फिटबिट’ कंपनी ने फिटनेस बैंड पहनने वालों के डेटा से ये जानकारी जुटाई है। ये रिसर्च अर्जेन्टीना, आस्ट्रेलिया, कनाडा, चिली, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग, भारत, आयरलैंड, इटली, जापान, मेक्सिको, न्यूजीलैंड, पेरू, सिंगापुर, स्पेन, यूके और अमेरिका में अगस्त २०१८ से जुलाई २०१९ के बीच किया गया।

सबसे कम सोने के मामले में हिन्दुस्तानी दूसरे नंबर पर हैं। यूके में लोग औसतन ७ घंटा ४९ मिनट तथा अमेरिकी ७ घंटा ३३ मिनट सोते हैं। हिन्दुस्तानी लोगों की नींद औसतन ५७ मिनट टूटती है। यानी हर रात औसतन करीब १३.५ फीसदी समय नींद टूटने में जाता है। ७५ से ९० वर्ष के आयु वर्ग के लोग सबसे कम (औसतन ६ घंटा ३५ मिनट) सोते हैं। इस आयु वर्ग के लोग औसतन ११ बज कर २२ मिनट पर सोने जाते हैं जबकि १८ से २५ वर्ष की आयु वर्ग के युवा औसतन १३ बज कर ३३ मिनट पर सोने जाते हैं।

फिटबिट को भारत में यूजर्स की औसतन 77 मिनट आरईएम स्लीप मिली, दुनियाभर में सबसे कम है। हालांकि, जापान भी इसी आंकड़े के साथ भारत जितना ही सो पाता है और उसकी एवरेज आरईएम स्लीप भी 77 मिनट ही है। आरईएम (रैपिड आई मूवमेंट) नींद की वह अवस्था होती है, जिसमें शरीर पूरी तरह आराम से नहीं सो रहा होता और आंखों की पुतलियों की गतिविधि पलकों पर देखी जा सकती है।

ज्यादा जी रहे भारतीय

एक अन्य रिसर्च बताती है कि भारतीय लोगों का औसत जीवन काल १९७०-७५ के ४९.७ वर्ष से बढ़ कर २०१२-१६ में ६८.५ वर्ष हो गया। पुरुषों में ये उम्र ६७.४ वर्ष और महिलाओं की ७०.२ वर्ष है। यानी महिलाएं पुरुषों की बनिस्बत ज्यादा जीती हैं।

प्रदूषण से हालात बिगड़े

एक्यूट रेस्पीरेटरी इन्फेक्शन या वायरल फीवर वायरस से होता है जो कुछ अंतराल बाद स्वत: खत्म हो जाता है। लेकिन वायु प्रदूषण भी इस इन्फेक्शन को फैलाने के लिए जिम्मेदार है। २.५ माइक्रॉन वाले पार्टिकुलेट मैटर बच्चों में एक्यूट रेस्पीरेटरी इन्फेक्शन पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं। २०१८ में एक्यूट रेस्पीरेटरी इन्फेक्शन के ४,१९,९६,२६० मामले दर्ज किए गए जिनमें ३७४० की मौत हो गई।

सेहत पर खर्चा - 1112 रुपए सालाना

नेशनल हेल्थ प्रोफाइल २०१८ के अनुसार भारत में इलाज का खर्च बढ़ता जा रहा है। इस कारण हेल्थ केयर सेवाओं में असमानता भी तेजी से ोबढ़ रही है। हेल्थ पर भारत ने अपनी जीडीपी का मात्र १.०२ फीसदी २०१५-१६ में खर्च किया। हेल्थ पर प्रति व्यक्ति खर्च की बात करें तो २००९-१० में ये ६२१ रुपए था जो २०१५-१६ में बढ़ कर १११२ रुपए हो गया। जनस्वास्थ्य पर होने वाला खर्च केंद्र और राज्य ३१:६९ के अनुपात में बांटते हैं। भारत में स्वास्थ्य बीमा भी बहुत कम लोग कराते हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार मात्र ४४ फीसदी लोग बीमा के कवर में हैं।

डाक्टरों की भारी कमी

भारत में कुल कितने स्वास्थ्यकर्मी हैं इसका कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है। क्योंकि आधे से ज्यादा हेल्थ प्रोफेशनल्स असंगठित निजी क्षेत्र में काम कर रहे हैं। पब्लिक सेक्टर में उपलब्धता की की बात करें तो २०१७ में कुल पंजीकृत एलोपैथिक डाक्टरों की संख्या १०,४१,३९५ थी। केंद्र व राज्य डेंटल काउंसिल में पंजीकृत डेंटल सर्जनों की संख्या २,५१,२०७ है। कुल आयुष डाक्टरों की संख्या ७,७३,६६८ है।

वायरल फीवर का प्रकोप

भारत में सभी संक्रामक रोगों में ७० फीसदी हिस्सा वायरल फीवर या एक्यूट रेस्पीरेटरी इन्फेक्शन का होता है। संक्रामक रोगों में सबसे ज्यादा मौतें निमोनिया से होती हैं। वायरल फीवर के बाद एक्यूट डायरिया का स्थान है जिसका हिस्सा २१.८ फीसदी है। तीसरे नंबर पर टाइफायड (३.८ फीसदी) है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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