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अयोध्या केस में मध्यस्थ नियुक्त किया जाए या नहीं, निर्णय 5 को- सुप्रीम कोर्ट

योध्या में भूमि विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई खत्म हो चुकी है और कोर्ट अब इस मामले में अगले मंगलवार को सुनवाई करेगा। कोर्ट अगले मंगलवार को आदेश जारी करेगा कि केस को समय बचाने की खातिर कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा या नहीं।

Aditya Mishra
Published on: 26 Feb 2019 3:40 AM GMT
अयोध्या केस में मध्यस्थ नियुक्त किया जाए या नहीं, निर्णय 5 को- सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली: अयोध्या में भूमि विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई खत्म हो चुकी है और कोर्ट अब इस मामले में अगले मंगलवार को सुनवाई करेगा। कोर्ट अगले मंगलवार को आदेश जारी करेगा कि केस को समय बचाने की खातिर कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा या नहीं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस. ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय पीठ ने सुनवाई की।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 14 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। हाईकोर्ट ने चार दीवानी मामलों का निपटारा करते हुए फैसला सुनाया था कि अयोध्या में स्थित 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बांट दी जाए।

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अयोध्या मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की महत्वपूर्ण बातें:

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अयोध्या मामले में हम मंगलवार को सुनवाई करेंगे और मामले में मध्यस्थ नियुक्त करने पर विचार करेंगे, तब तक आप लोग सबूतों पर विचार करें। जिस पर धवन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया, कहा कि पहले भी मध्यस्थता का प्रयास हुआ था, लेकिन विफल रहा।

अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सुझाव दिया कि यदि एक प्रतिशत भी संभवाना है तो मध्यस्थता की जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या सभी पक्ष भूमि विवाद को सुलझाने के लिये मध्यस्थता की संभावना तलाश सकते हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने मुस्लिम पक्षों से पूछा कि उन्हें अनुवादों को परखने के लिये कितना समय चाहिये, इसपर धवन ने आठ से 12 सप्ताह का समय मांगा। राम लला की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी. एस. वैद्यनाथन ने कहा कि दिसंबर 2017 में सभी पक्षों ने अनुवादों का सत्यापन कर उन्हें स्वीकार किया था।

अयोध्या मामले पर कोर्ट ने कहा, यदि अभी सभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद स्वीकार्य है तो वह सुनवाई शुरू होने के बाद उसपर सवाल नहीं उठा सकेंगे। भारत के प्रधान न्यायाधीश ने दोनों पक्षों के वकीलों से कहा कि वे दस्तावेजों की स्थिति पर न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट का अध्ययन करें।सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों की स्थिति और मामले से जुड़े सीलबंद रिकॉर्ड पर सेक्रेटरी जनरल की ओर से दायर रिपोर्ट की प्रतियों का जिक्र किया।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अयोध्या मामले में ट्रांसलेशन की स्वीकार्यता पर विवाद चल रहा है, मुस्लिम पक्ष को अब भी आपत्ति है और हिन्दू पक्ष ने कहा है कि इससे पहले उन्होंने कभी ऐतराज़ नहीं किया। कोर्ट ने कहा, अयोध्या मामले में कुल दस्तावेज 38,000 से ज्यादा है। हाईकोर्ट का फैसला ही 8170 पन्नों का है।

गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल स्वामी को अयोध्या भूमि विवाद मामले में हस्तक्षेप की अनुमति देने से इंकार कर दिया था और स्पष्ट किया था कि मूल पक्षकारों के अलावा किसी अन्य को इसमें पक्ष रखने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

पीठ ने स्वामी की इस दलील पर विचार किया था कि वह इस मामले में हस्तक्षेप का आग्रह नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्होंने तो अयोध्या में रामलला के जन्मस्थान पर पूजा करने के अपने मौलिक अधिकार को लागू कराने के लिए अलग से याचिका दायर की है।

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Aditya Mishra

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