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Flood Disaster in India: मेगा सिटी और चुल्लू भर पानी
Flood Disaster in India: गुरुग्राम की आलीशान कालोनियों में नाव चलने लगें, क्या कभी सोचा था? पुणे शहर ठप पड़ जाए, क्या कभी कल्पना की थी? क्या हो गया है हमारे शहरों को? क्या हाल कर दिया है हमने इनका।
Floods Disaster in India: मॉनसून और बारिश का मौसम है। उम्मीदों और जिंदगी से भरा हुआ मौसम क्योंकि पानी ही जिंदगी है, पानी ही कुदरत की नेमत है। इसके लिए हम कितनी ही दुआएं करते हैं। पानी के लिए क्या-क्या टोटके नहीं कर डालते। जहां बरसात नहीं हो रही, जरा उनसे पूछिए ।
लेकिन हम तो इंसान हैं। हर चीज को बर्बाद करना हमारी फितरत है। कुदरत की इसी नेमत को हमने अभिशाप बना दिया है। सिर्फ उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों के लिए ही नहीं बल्कि बड़े-बड़े चमचमाते मेगा शहरों के लिए भी।
देश की राजधानी दिल्ली हो या आर्थिक राजधानी मुंबई, रईसों की नगरी गुरुग्राम हो, एजुकेशन हब पुणे हो या हाईटेक राजधानी बंगलुरु या फिर दक्षिण का केंद्र चेन्नई सब के सब मेगा शहर अब पानी से पनाह मांगने लगे हैं।
इन शहरों ने बाढ़ को भी अपने से जोड़ लिया है ठीक वैसे ही जैसे हमेशा से बाढ़ से अभिशप्त बिहार और असम ने।
शहर बाढ़ की चपेट में
दिल्ली, मुम्बई और पुणे में आई बाढ़ को क्या कहेंगे? दिल्ली में लोग पानी में डूब के मर जाएं, क्या पहले ऐसा सुना था? लुटियंस की दिल्ली में रहने वाले सांसद मदद के लिए ट्वीट करने लगें, क्या ऐसा होता था? गुरुग्राम की आलीशान कालोनियों में नाव चलने लगें, क्या कभी सोचा था? पुणे शहर ठप पड़ जाए, क्या कभी कल्पना की थी? क्या हो गया है हमारे शहरों को? क्या हाल कर दिया है हमने इनका। अब तो शहरों के लिए बाढ़ एक सालाना घटना बन चुकी है। इसी मॉनसून में एक दर्जन से ज़्यादा शहर बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं।
हर मानसून मुंबई के लोगों को 26 जुलाई, 2005 के उस भयानक दिन की याद दिलाता है जब इंसानों की हरकतों और प्रकृति ने मिलकर तबाही मचाई थी।
एक हज़ार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और अनगिनत दुखों के निशान रह गए।
अगर आप सोचते हैं कि 19 साल में मुंबई ने अपनी गलतियां सुधार ली हैं? तो आप सरासर गलत हैं। 2005 में मुंबई 900 मिमी बारिश से तबाह हो गई थी, वहीं 2024 में बमुश्किल 300 मिलीमीटर की बारिश ने इस मेगा सिटी के कम से कम एक तिहाई हिस्से का वही 19 साल पहले जैसा हाल कर दिया। लोकल ट्रेन, स्कूल कॉलेज, बाजार, ऑफिस बंद हो गए। फायर ब्रिगेड और पुलिस को लोगों को बचाना पड़ा
पुणे, जिसे कभी 'स्मार्ट सिटी' का खिताब मिला था, जो स्टार्ट-अप का केंद्र कहा जाता है, वहां तो लोगों को बचाने के लिए सेना की दो टुकड़ियाँ बुलानी पड़ीं। लगभग पूरा शहर ठप हो गया।दिसंबर 2005 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन शुरू किया था ताकि शहरों की हालत सुधारी जा सके, डेवलपमेंट को रफ्तार दी जा सके। इस मिशन के उद्देश्यों में सब कुछ था लेकिन ‘शहरी बाढ़’ को समस्या माना ही नहीं गया। 2010 में पहली बार राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने शहर की बाढ़ के संकट को पहचाना, कदम सुझाए। क्या करें और क्या न करें की लिस्ट बनाई। बीच बीच में कितनी ही कमेटियों और आयोगों ने शहरों के लिए सुझाव दिए। लेकिन नतीजा क्या हुआ? 2024 आपके सामने है। दिल्ली, मुंबई, पुणे बद से बदतर हुए हैं, बाढ़ के मामले में वो असम और बिहार बन चले हैं। दक्षिण के हाल देखिए। 2021 में सिर्फ़ दक्षिण में ही पाँच राज्यों के 30 से ज़्यादा शहर बाढ़ से प्रभावित हुए।
जुलाई 2014 में अपने पहले बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 100 शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में डेवलप करने की बात कही थी।
उस समय जेटली ने कहा था कि जब तक लोगों की बढ़ती संख्या को एडजस्ट करने के लिए नए शहर डेवलप नहीं किए जाते, मौजूदा शहर जल्द ही रहने लायक नहीं रह जाएंगे। उनकी बात एकदम सही थी। लेकिन दुर्भाग्य से स्मार्ट सिटी मिशन में कभी बाढ़ की रोकथाम या ड्रेनेज को प्राथमिकता नहीं दी गई। स्मार्ट सिटी मिशन में 100 शहरों में 1.64 लाख करोड़ रुपये की 8,000 से अधिक परियोजनाओं को फण्ड दे कर चलाया गया है। लेकिन बाढ़ पर कभी फोकस नहीं किया गया। कोई शहर स्मार्ट बना भी कि नहीं, ये तो एक अलग मसला है।
प्रकृति को ही दोष देते आए
दरअसल, हमने कभी भी खराब प्लानिंग या जीरो प्लानिंग को शहरी बाढ़ का कारण नहीं माना है। प्रकृति को दोष देना आसान है। वही हम करते आये हैं। असम और बिहार की बाढ़ के लिए भी हम चीन और नेपाल को ही दोषी ठहराते आये हैं। हम यह मानते ही नहीं कि हमारे शहर राजनीतिक उदासीनता और सिस्टम की अराजकता के बीच फंसे हुए हैं।
भारत तेजी से शहरीकृत हो रहा है और 2050 तक इसकी शहरी आबादी में 40 करोड़ से ज्यादा का इजाफा होने की उम्मीद है।
शहरों में भी जो नए इलाके डेवलप हो रहे हैं, वही सबसे ज्यादा बर्बादी झेलते हैं। गुरुग्राम से लेकर दिल्ली, बंगलुरु तक सबसे बुरी मार नए डेवलपमेंट पर ही क्यों पड़ती है? जो सिस्टम सैकड़ों साल पहले बना वो तो आज भी काम करता नजर आता है । लेकिन नए डेवलपमेंट चंद वर्षों या चंद महीनों में ही बैठ जाते हैं।
ड्रेनेज सिस्टम पर काम नहीं
कोई नाली, नाला, ड्रेनेज सिस्टम साफ रहे भी तो कैसे। हमने सभी जगह प्लास्टिक जो ठूंस रखा है। प्लास्टिक पर बैन है फिर भी पूरे देश में हर दिन 26,000 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है।
हमारी प्यारी राजधानी दिल्ली में रोजाना 1,100 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा निकलता है। मुंबई की बात करें तो पूरे महाराष्ट्र में जितना प्लास्टिक कचरा निकलता है उसका 76 फीसदी हिस्सा अकेले मुम्बई से निकलता है। मुंबई में रोजाना 800 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। लखनऊ में ही रोज 300 टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा निकलता है। अयोध्या जिले में ही रोज 35 टन प्लास्टिक कचरा है।
पानी, बरसात कुदरत की नेमत है। बाढ़ हमारी करनी है। मनाली और रुद्रप्रयाग से लेकर दिल्ली, मुंबई तक सभी जगहों को हमने बर्बाद किया है। भले ही हम अपना कोई ढिंढोरा पीटें, अपने आईआईटी, आईआईएम, आईएएस पर सीना चौड़ा करें। लेकिन सच्चाई दिल्ली के भीड़ भरे मोहल्ले की कोचिंग में आई बाढ़ और युवाओं की मौतें ही है। बेसमेंट में बाढ़, सड़क और जलभराव और उसमें करेंट! हम जी कैसे रहे हैं? आज यही हमारी नियति रह गई है?
हम नेताओं, नीति नियोजकों और हाकिम हुक्कामों को कितनी ही लानतें भेजें कि जाओ चुल्लू भर पानी में डूब मरो। लेकिन मोटी चमड़ी वाले कभी किसी बात पर भला पानी पानी होते हैं?
(लेखक पत्रकार हैं।)