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Om Prakash Chautala: पांच बार संभाली हरियाणा की कमान, 82 साल की उम्र में जेल से पास की थी दसवीं की परीक्षा
Om Prakash Chautala: पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद चौटाला को साढ़े पांच महीने में ही इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि उनके चुनाव क्षेत्र महम में हुई हिंसा का मुद्दा गरमा गया था। उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को हरियाणा का सीएम बनाया गया था।
Om Prakash Chautala: हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नेशनल लोकदल के मुखिया ओम प्रकाश चौटाला का आज निधन हो गया। 89 वर्षीय चौटाला को हरियाणा का दिग्गज राजनीतिज्ञ माना जाता था। वे सात बार विधायक और पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री देवीलाल के सबसे बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला इधर कुछ दिनों से गुरुग्राम रह रहे थे। इधर काफी दिनों से वे अस्वस्थ चल रहे थे। आज तबीयत ज्यादा खराब होने पर उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल लाया गया जहां कुछ समय बाद ही उनका निधन हो गया। उनके निधन की खबर से हरियाणा में शोक की लहर दौड़ गई।
चौटाला को विरासत में मिली थी सियासत
ओम प्रकाश चौटाला को राजनीति विरासत में मिली थी। उनके पिता चौधरी देवीलाल ने हरियाणा राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बाद में चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री और देश के उपप्रधानमंत्री भी बने। एक दौर में उन्हें विपक्ष की राजनीति का धुरी भी माना जाता था। ऐसे में चौटाला को शुरुआती दिनों से ही राजनीति को नजदीक से देखने का मौका मिला।
82 साल की उम्र में जेल से पास की दसवीं की परीक्षा
ओम प्रकाश चौटाला का जन्म 1 जनवरी 1935 को हरियाणा के सिरसा जिले के चौटाला गांव में हुआ था। शुरुआती शिक्षा के बाद ही चौटाला ने पढ़ाई छोड़ दी थी। हालांकि बाद में उनके भीतर काफी ज्यादा उम्र में शिक्षा के प्रति एक बार फिर प्रेम जगा।
शिक्षक भर्ती घोटाले में तिहाड़ जेल में बंद होने के समय उन्होंने 82 साल की उम्र में पहले दसवीं और फिर 12वीं की परीक्षा पास की थी। इससे समझा जा सकता है कि वे जो चीज ठान लेते थे,उसे पूरा करके ही दम लेते थे। उनके इतनी ज्यादा उम्र में जेल से परीक्षा पास करने की पूरे देश में खूब चर्चा सुनी गई थी।
पहले चुनाव में देखना पड़ा था हार का मुंह
सियासी मैदान में ओमप्रकाश चौटाला की शुरुआत अच्छी नहीं रही। उन्होंने अपने जीवन का पहला चुनाव 1968 में लड़ा था। इस दौरान में अपने पिता चौधरी देवीलाल की परंपरागत ऐलनाबाद सीट से चुनावी अखाड़े में उतरे थे। इस चुनाव में उनका मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री राव वीरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर उतरे लालचंद खोड़ से हुआ था।
अपने पहले ही चुनाव में चौटाला को हार का सामना करना पड़ा था मगर इस हार के बावजूद वे निराश नहीं हुए। उनका मानना था कि चुनाव में गड़बड़ी के जरिए उन्हें हराया गया है और इस मामले में वे हाईकोर्ट पहुंच गए थे। करीब साल भर तक चली सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने लालचंद की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी थी। इसके बाद ऐलनाबाद सीट पर उपचुनाव कराया गया। 1970 में हुए इस उपचुनाव में जनता दल के टिकट पर लड़कर ओमप्रकाश चौटाला पहली बार विधायक बने थे।
इस तरह बने हरियाणा के पहली बार सीएम
चौटाला के मुख्यमंत्री बनने की दास्तां भी बेहद दिलचस्प है। दरअसल 1987 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा में चौधरी देवीलाल ने अपनी ताकत दिखाते हुए 90 में से 60 सीटों पर जीत हासिल की थी। लोकदल को मिली इस बड़ी जीत के बाद देवीलाल दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने थे। दो साल बाद 1989 में देश में लोकसभा चुनाव हुए जिसमें जनता दल की सरकार बनी।
वीपी सिंह की सरकार में चौधरी देवीलाल को उप प्रधानमंत्री बनाया गया और इस तरह चौटाला के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता खुल गया। देवीलाल के उपप्रधानमंत्री बनने के बाद लोकदल के विधायकों की बैठक बुलाई गई जिसमें चौटाला को नेता चुन लिया गया और इस तरह वे 1989 में पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए।
विवादों के कारण दो बार देना पड़ा जल्द इस्तीफा
पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद चौटाला को साढ़े पांच महीने में ही इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि उनके चुनाव क्षेत्र महम में हुई हिंसा का मुद्दा गरमा गया था। उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को हरियाणा का सीएम बनाया गया था। बाद में चौटाला दड़बा सीट से उपचुनाव जीतने में कामयाब रहे। उनकी इस जीत के बाद 51 दिन में ही बनारसी दास गुप्ता को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा और चौटाला फिर हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए मगर उस समय तक महम में हिंसा का मामला ठंडा नहीं पड़ा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का मानना था कि जब तक चौटाला पर केस चल रहा है तब तक उन्हें मुख्यमंत्री पद पर नहीं रहना चाहिए। ऐसे में चौटाला को पांच दिन बाद ही फिर मंत्री मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।
फैसले का विरोध और चली गई चौटाला की कुर्सी
भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद जब बीपी सिंह की सरकार गिर गई तो केंद्र में कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। चंद्रशेखर की सरकार में उप प्रधानमंत्री बने देवीलाल ने मार्च 1991 में हुकुम सिंह को हटा कर अपने बेटे चौटाला की एक बार फिर मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी करा दी।
चौधरी देवीलाल ने अपने बेटे को फिर मुख्यमंत्री तो जरूर बनवा दिया मगर उनके इस फैसले के खिलाफ पार्टी में बगावत हो गई और कुछ विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इस कारण 15 दिनों के भीतर ही चौटाला की सरकार गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
चौटाला पर लगा शिक्षक भर्ती घोटाले का दाग
बाद के दिनों में भी वे दो बार फिर हरियाणा के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। उनका आखिरी कार्यकाल सबसे लंबा रहा जब उन्होंने 24 जुलाई 1999 से 5 मार्च 2005 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली। हालांकि बाद के दिनों में चौटाला को काफी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। जून 2008 में उनके खिलाफ 1999-2000 के दौरान हरियाणा में जूनियर बेसिक शिक्षकों की अवैध भर्ती का बड़ा आरोप लगा था।
बाद में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। 2013 में दिल्ली की एक अदालत में इस मामले में ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय सिंह चौटाला को 10 साल की सजा सुना दी थी। इस फैसले के खिलाफ ओम प्रकाश चौटाला ने दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था मगर इन दोनों अदालतों ने भी उनकी सजा को बरकरार रखा था।
इस मामले में 2 जुलाई 2021 को चौटाला की तिहाड़ जेल से रिहाई हुई थी। सरकार की ओर से कोरोना महामारी के कारण जेल में कैदियों की भीड़ को नियंत्रित किया गया था और इस कारण चौटाला कुछ समय पूर्व जेल से रिहाई पाने में कामयाब हुए थे।
2024 में चौटाला कुनबे को लगा बड़ा झटका
2024 के विधानसभा चुनाव के दौरान हरियाणा में भाजपा ने अपनी ताकत दिखाते हुए सत्ता पर कब्जा कर लिया था जबकि विभिन्न खेमों में बंटे चौटाला कुनबे को करारी हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन को 48 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस 37 सीटों पर ही सिमट गई थी। इंडियन नेशनल लोकदल को दो सीटों पर जीत मिली थी जबकि जजपा का खाता नहीं खुला था। तीन सीटों पर अन्य उम्मीदवारों को जीत मिली थी।