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पूर्व कानून मंत्री बोले-इलेक्टोरल बॉन्ड योजना निरस्त करने से बढ़ेगा काले धन का रोल

Electoral Bond: अपनी किताब ‘ए डेमोक्रेसी इन रिट्रीटः रीविजिटिंग द एंड्स ऑफ पावर’ पर चर्चा करते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव लड़ने में 15 से 20 करोड़ का खर्च आता है।

Ashish Kumar Pandey
Published on: 5 April 2024 2:24 AM GMT
Former Law Minister Ashwini Kumar
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Former Law Minister Ashwini Kumar (photo: social media )

Electoral Bond: 2024 लोकसभा के आम चुनाव के अवसर पर चुनावी बॉन्ड योजना को खत्म करने से काले धन की भूमिका बढ़ जाएगी। यह बात पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और कांग्रेस नेता अश्विनी कुमार ने कही। उन्होंने चुनावी बॉन्ड योजना पर टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनावी बॉन्ड पर काफी चर्चा हुई। जहां इसकी सराहना की गई है तो वहीं इसकी आलोचना भी की गई लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव क्या होगा। योजना का संवैधानिक उद्देश्य चुनाव के वित्तपोषण में पार्दर्शिता सुनिश्चित करना है। उन्होंने कहा कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो रहा है। लोकतंत्र को संस्थाओं द्वारा नहीं बल्कि लोगों द्वारा बचाया जा सकता है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने अपनी किताब ‘ए डेमोक्रेसी इन रिट्रीटः रीविजिटिंग द एंड्स ऑफ पावर’ पर चर्चा करते हुए कहा कि कहा कि लोकसभा चुनाव लड़ने में 15 से 20 करोड़ रुपये का खर्च आता है। वह व्यक्ति, जो राजनीति के बारे में थोड़ा भी जानता है, उसे पता होगा कि तमिलनाडु-आंध्र प्रदेश में यह राशि काफी अधिक हो जाती है। लेकिन 15 से 20 करोड़ से कम में आप चुनाव नहीं लड़ सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर लगा दी थी रोक

बता दें कि बीते 15 फरवरी को पांच जजों की संविधान पीठ ने केंद्र की इलेक्टोरल बॉन्ड्स योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इस पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के एकमात्र फाइनेंशियल संस्थान एसबीआई बैंक को 12 अप्रैल 2019 से अब तक हुई इलेक्टोरल बॉन्ड की खरीद की पूरी जानकारी 6 मार्च तक देने का आदेश भी दिया था।


जानिए क्या थी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम

केंद्र की मोदी सरकार ने 2 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को नोटिफाई किया था। इस योजना के तहत राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए कोई भी व्यक्ति अकेले या किसी के साथ मिलकर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है। ये इलेक्टोरल बॉन्ड एसबीआई की चुनी हुई शाखा से ही खरीदे जा सकते थे और उस बॉन्ड को किसी भी राजनीतिक पार्टी को दान कर सकता था। ये बॉन्ड एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये तक हो सकता है। राजनीतिक पार्टी को बॉन्ड मिलने के 15 दिनों के भीतर चुनाव आयोग से वेरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है। हालांकि इस योजना को लेकर आरोप लगे कि योजना में इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान जाहिर नहीं की जाती और यह योजना चुनाव में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकती है। यही नहीं ये भी आरोप लगे कि इस बॉन्ड योजना के तहत बड़े कार्पोरेट घराने बिना अपनी पहचान जाहिर किए किसी राजनीतिक पार्टी को जितना मर्जी चंदा दे सकते हैं।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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