TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

आय-व्यय का ब्योरा देने में कितनी ईमानदार हैं राजनीतिक पार्टियां

raghvendra
Published on: 16 March 2018 6:09 PM IST

नई दिल्ली : देश में लोकतंत्र के नाम पर कुछ भी करने की आजादी है। आम आदमी यदि आय का ब्योरा नहीं देता है तो उसकी गरदन तुरंत नाप ली जाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि हमारी राजनीतिक पार्टियां अपने आय-व्यय का ब्योरा देने में कितनी ईमानदार हैं? क्या ये अपनी आय के स्रोतों और किये गए खर्चों को ईमानदारी से घोषित करने का माद्दा रखती हैं? देश की गरीब जनता का पेट काटकर इन राजनीतिक दलों की हैसियत फल फूल रही है। बड़े और राष्ट्रीय दलों की बात जाने दीजिए, क्षेत्रीय दलों पर ही एक नजर डालें तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।

एडीआर की ताजा रिपोर्ट के अनुसार चुनाव आयोग को अब तक अपनी रिपोर्ट जमा न करने वाले 15 क्षेत्रीय दलों में समाजवादी पार्टी, जम्मू व कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय लोकदल, ऑल इंडिया एन(आर) कांग्रेस, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन व महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी प्रमुख रूप से शामिल हैं।

एडीआर की इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि 32 क्षेत्रीय दलों में से केवल 18 ने ही इनकम टैक्स दाखिल करने व चंदे में मिली रकम का ब्योरा आयोग को दिया है। एडीआर ने वित्तीय वर्ष 2011-12 से 2015-16 के बीच 22 क्षेत्रीय दलों द्वारा घोषित संपत्ति और देनदारियों का विश्लेषण कर यह रिपोर्ट तैयार की है जिसमें आप, एजीपी, एआईएडीएमके, एआईएफबी, बीपीएफ, डीएमडीके, डीएमके, जेकपीडीपी, जेडीएस, जेडीयू, जेएमएम, जेवीएम (पी), एलजेपी, एमएनएस, आरएलडी, एसएडी, एसएफडी, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, तेलुगुदेशम पार्टी, टीआरएस व वाईएसआर कांग्रेस शामिल हैं।

इस पर आगे बढऩे से पहले आइए जानते हैं कि दलों के लिए मानक क्या हैं। दरअसल इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने वाणिज्यिक, औद्योगिक व व्यावसायिक उद्यमों के लिए लेखा पद्धति का एक मानक तो बना दिया, लेकिन राजनीतिक दल तो इसके तहत आते नहीं। इसलिए उन पर यह लागू भी नहीं होता था।

देश में राजनीति करने वाले दलों को इसके तहत लाने व उनके एकाउंटिंग के दस्तावेजों का मानकीकरण करने के लिए चुनाव आयोग ने आईसीएआई से प्रारूप तैयार करने को कहा। इस प्रकार फरवरी 2012 में राजनीतिक दलों की एकाउंटिंग व ऑडीटिंग के लिए दिशा निर्देश तैयार हुए जिसमें सारे दल फंस गए और उनकी एकाउंटिंग का दलदल उनके गले की फांस बन गया।

अब मुसीबत यह है कि हिसाब किताब देते हैं तो फंसते हैं और नहीं देते हैं तो भी फंसते हैं। फंसना दोनों हालत में है क्योंकि इन दलों का कुछ भी पाक साफ नहीं है। इसके लिए सबसे पहले बैलेंस शीट को समझना होगा। राजनीतिक दलों के पास कितनी संपत्ति है, कितनी देनदारी है, पैसा कहां से आ रहा है और कहां खर्च हो रहा है, यह सबकुछ बैलेंस शीट में दर्ज होता है।

सबसे महत्वपूर्ण चुनाव आयोग के एकाउंटिंग व ऑडिटिंग में पारदर्शिता के निर्देश हैं जो कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं। एडीआर ने इन्हीं घोषित बिंदुओं का विश्लेषण किया है। इस रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2011-12 से 2015-16 के बीच 22 क्षेत्रीय दलों द्वारा घोषित संपत्ति, देनदारियों और पूंजी का विश्लेषण किया है।

तेजी से बढ़ी क्षेत्रीय दलों की संपत्ति

2011-12 के दौरान 20 क्षेत्रीय दलों की कुल औसत संपत्ति 24.11 करोड़ रुपये थी जो 2015-16 में बढक़र 65.77 करोड़ हो गई। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी मार्च 2011 में पंजीकृत हुई और आम आदमी पार्टी का पंजीकरण नवम्बर 2012 में हुआ। 2012-13 के दौरान इन दलों की घोषित औसत सम्पत्ति 1.165 करोड़ रुपये थी जो 2015-16 में बढक़र 3.765 करोड़ हो गयी।

सपा ने 2011-12 के दौरान 212.86 करोड़ की संपत्ति घोषित की जो वित्तीय वर्ष 2015.16 में 198 फीसदी बढक़र 634.96 करोड़ हो गई। केवल 4 प्रमुख क्षेत्रीय दलों सपा, एआईडीएमके, आईएफबी और शिवसेना ने ही अपनी संपत्ति में निरंतर वृद्धि दिखाई है। 2011-12 से 2015-16 के बीच एआईडीएमके की संपत्ति 88.21 करोड़ से 224.87 करोड़ हो गयी यानी 155 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। शिवसेना की सम्पत्ति 92 फीसदी बढक़र 20.59 करोड़ से 39.568 करोड़ हो गयी।

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार क्षेत्रीय दलों की घोषित सम्पत्तियों के अंतर्गत 6 मुख्य बातें हैं जैसे अचल संपत्ति, ऋण और अग्रिम, एफडीआर/जमा, टीडीएस, निवेश और अन्य सम्पत्तियां। इसके हिसाब से 2011-12 के दौरान क्षेत्रीय दलों ने सबसे अधिक संपत्ति एफडीआर-जमा के अंतर्गत रु 331.54 करोड़ घोषित की है जो सभी दलों द्वारा घोषित कुल संपत्ति का 68.77 फीसदी था।

2015-16 के दौरान यह सम्पत्ति बढक़र रु 1054.80 करोड़ हो गयी जो सभी दलों की घोषित कुल संपत्ति का 80.19 फीसदी है। वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान सभी क्षेत्रीय दलों ने कुल 19.75 करोड़ रुपये का निवेश किया था पर 2015-16 में दलों ने केवल 16.20 करोड़ का ही निवेश किया है।

क्षेत्रीय दलों की देनदारियां

20 क्षेत्रीय दलों ने 2011-12 के दौरान कुल 47.475 करोड़ की देनदारी घोषित की थी जो 2015-16 में बढक़र 52.21 करोड़ हो गयी है। 2011-12 के दौरान प्रति दल औसत देनदारी 2.37 करोड़ थी जो 2015-16 में बढक़र 2.61 करोड़ हो गयी है।

2012-13 के दौरान वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और आम आदमी पार्टी की कुल देनदारी 1.86 करोड़ थी जो 2015-16 में बढक़र 5.03 करोड़ हो गयी। 2011-12 के दौरान शिवसेना ने सबसे अधिक देनदारी 16.594 करोड़ घोषित की। इसके बाद डीएमके ने 9.214 करोड़ दर्शायी है। 2015-16 के दौरान सबसे अधिक देनदारी टीआरएस ने 15.97 करोड़ घोषित किया है जबकि पार्टी ने वित्तीय वर्ष 2011-12 के दौरान शून्य देनदारी घोषित की थी।

दूसरी सबसे बड़ी देनदारी टीडीपी ने 8.186 रुपये करोड़ घोषित की है। 2013-14 और 2014-15 के बीच शिवसेना की देनदारी में 99.78 फीसदी की कमी देखी गयी है जबकि 2014-15 और 2015-16 के बीच टीडीपी की देनदारी में 259 फीसदी की वृद्धि हुई है।

दान में मिली संपत्ति का नहीं दिया ब्योरा

एडीआर के मुताबिक क्षेत्रीय दलों ने जो ऋण बैंकों व एजेंसियों से लिया उसकी कब वापसी की, इसका ब्योरा घोषित ही नहीं किया है। दलों को दान के रूप में मिली संपत्ति का ब्योरा भी देना होता है। अधिकतर क्षेत्रीय दलों ने यह जानकारी नहीं दी है। दलों को कुल ऋण का दस फीसदी या उससे अधिक नकद या अन्य प्रकार से देने का ब्योरा भी देना होता है। वजह भी देनी होती है यह जानकारी भी नहीं दी गई है।

चुनाव आयोग के मानदंडों के अनुरूप किसी ने भी ब्योरा नहीं दिया है। एडीआर ने सिफारिश की है कि हर तीन साल में आडिटर का बदलाव होना चाहिए जिससे पारदर्शिता आएगी। राजनीतिक दल स्वयं अपने आडिटर का चयन करते हैं जिसे बदलने की जरुरत है। राजनीतिक दलों के दस्तावेजों की सालाना जांच होनी चाहिए। इसके अलावा आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए जिससे दोषी राजनीतिक दलों पर कार्रवाई हो सके और उन्हें जांच के दायरे में लाया जा सके।



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story