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गर्दिश में गांधी आश्रम, नहीं जमा कर पा रहा पीएफ

raghvendra
Published on: 26 Oct 2018 1:16 PM IST
गर्दिश में गांधी आश्रम, नहीं जमा कर पा रहा पीएफ
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दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: महात्मा गांधी हर देशवासी के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते थे मगर उनके नाम से जुड़ी महत्वपूर्ण संस्था पंजाब के क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम के कर्मचारियों के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हालत यह है कि यहां के कर्मियों का समय पर प्राविडेंट फंड भी नहीं जमा हो रहा है जिसकी वजह से क्षेत्रीय प्राविडेंट फंड कमिश्नर ने गांधी आश्रम पर भारी भरकम जुर्माना कर रखा है। दूसरी ओर संस्था की प्रबंधन कमेटी के सदस्य जुर्माने की राशि जमा करने में आनाकानी कर रहे हैं।

संस्था के एक कर्मचारी ने नाम न प्रकाशित किए जाने की शर्त पर बताया कि यहां के कार्यकर्ताओं की भविष्यनिधि पर खतरा शुरू से मंडराता रहा है। वर्ष 2005 से पहले गांधी आश्रम की मैनेजिंग कमेटी कार्यकर्ताओं की भविष्यनिधि की एफडी के अगेंस्ट बैंक से लोन लेकर खादी व ऊनी वस्त्रों का उत्पादन व बिक्री करती थी और समय-समय पर लोन का पैसा बैंक को वापस कर देती थी। लेकिन धीरे-धीरे हालाता ऐसे बिगड़े कि बैंक का लोन बढ़ता गया। ऊन खरीद से लेकर उत्पादन तक में कमीशनखोरी व मिलावट के आरोप संस्था की मैनेजिंग कमेटी पर लगने लगे।

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हालत यह हो गयी कि कर्मचारियों ने भविष्यनिधि को खतरे में देख प्रॉविडेंट फंड कमिश्नर को लिखित शिकायत कर फंड की रकम प्रॉविडेंट फंड कमिश्नर कार्यालय में जमा करवाने की अपील की। उस समय भी संस्था की प्रबंधक कमेटी ने वर्करों का फंड कमिश्नर कार्यालय में जमा न हो, इसके लिए कई तरह के तर्क दिए। यहां तक की कुछ वर्करों पर दबाव डाल कर दस्तखत कर करवा लिए कि गांधी आश्रम में हमारा फंड सुरक्षित है। लेकिन कमिश्नर ने इनकी दलीलें नहीं सुनीं औरों को नहीं सुनी और साल 2010.11 में कार्रवाई करते हुए वर्ष 2007 से 2012 तक का फंड बैंक एकाउंट सीज कर 1.50 करोड रुपये प्राविडेंट फंड कमिश्नर कार्यालय में जमा करवाया।

36 साल की नौकरी, 14 हजार सैलरी

इसी माह अक्टूबर में सेवानिवृत्त हुए एक कर्मचारी ने बताया कि वे गांधी आश्रम में 1982 में बतौर एकाउंटेंट भर्ती हुए थे। संस्था के ऊनी स्टोर में कई साल तक एकाउंटेंट की सेवाएं देने अलावा संस्था की अन्य ब्रांचों में भी कभी एकाउंटेंट तो कभी सेल्समैन व टाइपिस्ट के तौर पर तैनात रहे। उन्होंने कहा कि उन्हें दुख है कि संस्था में अपने जीवन के करीब 36 साल सेवा देने पर उन्हें वेतन व अन्य भत्ता जोडक़र 14 हजार रुपये वेतन मिलता रहा। उससे भी तकलीफदेह यह बात है कि पिछले कुछ वर्षों में ये वेतन भी समय पर और पूरा नहीं मिल पा रहा था।

सारी बातें फोन नहीं बताई जा सकती

फंड जमा न करने के सवाल पर संस्था के सचिव रामसूरत यादव ने कहा कि पैसे की कमी की वजह से फंड जमा नहीं कराया जा सका। फैक्ट्री बेचने जो रकम मिली थी, वह उधारी चुकाने में चली गई। पीएफ कमिश्नर कार्यालय के एक करोड़ का जुर्माना लगाने पर उन्होंने कहा कि इसका केस ट्रिब्यूनल में चल रहा था, फिर हाईकोर्ट में चला गया। इसलिए लेट हुआ। यह पूछने पर कि हाईकोर्ट के आदेश के फैसले को तत्कालीन मंत्री बलबिंदर सिंह ने दबाए क्यों रखा, उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है। हर बात फोन पर नहीं हो सकती।

कमिश्नर ने लगाया था एक करोड़ का जुर्माना

संस्था के ही एक कर्मचारी ने बताया कि फंड की शेष रकम जमा करवाने के प्राविडेंट फंड कमिश्नर लगातार नोटिस जारी करते रहे, लेकिन गांधी आश्रम के ढीठ मैनेजमेंट ने कमिश्नर की नोटिस को गंभीरता से नहीं लिया और वर्करों के फंड की रकम को निजी हितों में खर्च करता रहा। अंत में प्राविंडेंट फंड कमिश्नर ने वर्ष 2010-11 में क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम पर एक करोड़ पांच लाख रुपये की भारी भरकम पेनाल्टी लगा दी।

जुर्माना माफ होने पर भी जमा नहीं कराया फंड

कमिश्नर द्वारा लगाए गए जुर्माने को माफ करवाने के लिए क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम अमृतसर की मैनेजिंग कमेटी के सदस्यों ने ट्रिब्यूनल दिल्ली में केस किया, लेकिन ट्रिब्यूनल ने क्षेत्रीय पीएफ कमिश्नर अमृतसर की ओर से लगाए गए जुर्माने को बरकरार रखा।

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हां इतना जरूरी किया कि संस्था को थोड़ी राहत देते हुए 50 प्रतिशत जुमार्ना माफ कर उसे एक करोड़ पांच हजार की जगह 52 लाख रुपये कर दिया। और इसे वर्करों के फंड की शेष रकम के साथ तत्काल पीएफ कमिश्नर कार्यालय में जमा करवाने को कहा।

सेक्रेटरी ने दबाए रखी आदेश की कॉपी

नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर संस्था के ही कुछ कर्मचारियों ने बताया कि संस्था के तत्कालीन सेक्रेटरी ने ट्रिब्यूनल के आदेश को चंडीगढ़ हाईकोर्ट में चुनौती दी। यहां से यह कहते हुए कोर्ट ने केस खारिज कर दिया कि ट्रिब्यूनल का फैसला उचित है और 52 लाख रुपये के साथ संस्था को फंड की रकम भी कमिश्नर आफिस में जमा करानी होगी। लेकिन उस समय के सेक्रेटरी और मैनेजिंग कमेटी के पदाधिकारियों ने हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी दबाए रखी।

संस्था के कर्मचारियों का आरोप है कि गांधी आश्रम छेहरटा स्थित फैक्टरी को 12 करोड़ में बेचने के बावजूद जुर्माने की राशि व वर्करों का फंड नहीं जमा कराया गया। इससे नाराज पीएफ कमिश्नर ने संस्था पर 10 करोड़ का जुर्माना लगाते हुए शेष पीएफ की रकम के जमा कराने के लिए जून 2018 में दोबारा नोटिस जारी कर दिया। हलाकि यह जुर्माना माफ करते हुए 52 लाख के जुर्माने की राशि को बरकरार रखा है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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