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Gandhi Jayanti 2022: महात्मा गांधी को सुभाष चंद्र बोस ने पहली बार कब कहा राष्ट्रपिता, जाने यहां
Gandhi Jayanti 2 October 2022: स्वतंत्रता के बाद भी गांधीजी का विरोध हिंदू और मुसलमान कट्टरपंथी लोग लगातार करते रहे। मगर आज भी महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह से जुड़े विचारों का पूरी दुनिया सम्मान करती है।
Gandhi Jayanti 2022 : लम्बे-लम्बे भाषणों से कहीं अधिक मूल्यवान है इंच भर कदम बढ़ाना, लोकतंत्र में यदि सत्ता का दुरुपयोग हो, तो लोगों को कहीं रहने के लिए भी जगह नहीं रह जायेगी। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के इन अहिंसा और सत्याग्रह से जुड़े विचारों का पूरी दुनिया सम्मान करती है। उनके मोहनदास से महात्मा बनने तक के कठिन सफर में महात्मा गांधी ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर देश को आजादी दिलाई, साथ ही संदेश दिया कि अहिंसा सर्वोपरि है।
महात्मा गांधी के बारे में क्या कहते थे आइंस्टीन
अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) ने गांधीजी के बारे में कहा था" संभव है आने वाली पीढ़ियां, शायद ही विश्वास करें कि महात्मा गांधी की तरह कोई व्यक्ति इस धरती पर हुआ था। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर पूरे विश्व में अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। महात्मा गांधी युगकालीन वैचारिक क्रांति के एक बड़े और सशक्त सूत्रधार थे। यह भारत का सौभाग्य ही है कि 2 अक्टूबर 1969 को पोरबंदर गुजरात में एक महान व्यक्तित्व ने जन्म लिया था, जिनका नाम मोहन दास करमचंद गांधी था। भावनगर के श्यामल दास कॉलेज में उनकी शिक्षा हुई तत्पश्चात उनके भाई लक्ष्मी दास ने उन्हें बैरिस्टर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया था। इंग्लैंड जाने से पहले मात्र 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह कस्तूरबा गांधी से हो गया था। 18 91 में गांधीजी इंग्लैंड से वकालत पास कर मुंबई में वकालत प्रारंभ कर दी थी। गांधी जी के समाज क्रांतिकारी जीवन का शुभारंभ 1393 में तब हुआ जब पुणे एक मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां उन्होंने अंग्रेजों को भारतीयों एवं वहां के मूल निवासियों के साथ बुरा व्यवहार करते देखा था। वहां अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को भी कई बार अपमानित किया था। गांधी जी ने अंग्रेजों के अपमान के विरुद्ध मोर्चा संभालते हुए अपने विरोध के लिए सत्याग्रह और अहिंसा का मार्ग चुना था। दक्षिण अफ्रीका के दौरान उन्होंने अध्यापक, चिकित्सक और कानूनी अधिकार की लड़ाई के लिए अधिवक्ता के रूप में जनता को जागरूक करने के लिए अपनी सेवाएं प्रदान की और महत्वपूर्ण काम किए। अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन कर समाज की सेवा की।
उनकी एक महत्वपूर्ण पुस्तक "माय एक्सपेरिमेंट विथ ट्रुथ" विश्व प्रसिद्ध आत्मकथा बनी। दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी के कार्यों तथा शतत प्रयत्नों की ख्याति भारत में फैल चुकी थी। और जब वे भारत लौटे तो उनका गोपाल कृष्ण गोखले, लोकमान गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने भव्य स्वागत किया। भारत में आते ही गांधी जी ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किया, वह था बिहार के चंपारण जिले के नीलहे किसानों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाना, 1917 में गांधी जी के सत्याग्रह के फलस्वरूप ही चंपारण के किसानों का शोषण समाप्त हो पाया था। अहमदाबाद में आश्रम की स्थापना के साथ साथ अंग्रेज सरकार के विरुद्ध उनका संघर्ष प्रारंभ हुआ और भारतीय राजनीति की बागडोर अब महात्मा गांधी के हाथों में आ चुकी थी। गांधीजी इस बात को अच्छे से समझ चुके थे कि सामरिक तौर पर अंग्रेजों से लड़ाई नहीं की जा सकती है, भारत को अंग्रेजों से मुक्ति लाठी बंदूक के बल पर नहीं प्राप्त हो सकती थी, इसीलिए उन्होंने सत्य और अहिंसा की शक्ति का सहारा लिया।
स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 1920 में उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन प्रारंभ कर दिया था। अंग्रेजों ने जब नमक पर कर लगाया तो गांधीजी ने 24 दिन की दांडी यात्रा आयोजित की 24 दिनों की यात्रा के पश्चात उन्होंने अपने हाथों से दांडी नामक स्थान पर नमक बनाया और सविनय अवज्ञा आंदोलन भी संचालित किया। इसी बीच गांधी इरविन समझौता के लिए गांधीजी इंग्लैंड भी गए पर अंग्रेजों की बद नियति के कारण यह समझौता मूर्त रूप नहीं ले सका, फल स्वरुप यह आंदोलन 1934 तक चलता रहा। 1942 में गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया जिसमें करो या मरो का नारा देकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को एकजुट कर अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोला गया। गांधीजी तथा अन्य नेताओं तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अथक प्रयास से 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। 1920 से 1947 तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गांधीजी की भूमिका के कारण किस युग को गांधी युग भी कहा जाता है।
स्वतंत्रता के बाद भी गांधीजी का विरोध हिंदू और मुसलमान कट्टरपंथी लोग लगातार करते रहे। और 30 जनवरी 1948 को जब वे प्रार्थना सभा जा रहे थे तब उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। सत्य तथा अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का दुखद देहांत हो गया।
गांधी जी हमारे बीच नहीं है, पर उन्हें युगों तक याद किया जाता रहेगा। उनके द्वारा प्रतिपादित चार आधारभूत सिद्धांत सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव को आज भी पूरे विश्व में करोड़ों लोगों द्वारा अंगीकार किया जा रहा है। सत्यमेव जयते जैसे राष्ट्रीय वाक्य के प्रेरणा स्रोत गांधी जी ही थे। गांधी जी द्वारा अपनाई अहिंसा का सही मतलब मन,वाणी तथा कर्म से किसी को आहत ना करना, उनके यह महान विचार थे कि अहिंसा के बिना सत्य का अन्वेषण असंभव है। महात्मा गांधी एक वैचारिक क्रांति के युग थे। गांधी जी सर्वधर्म समभाव के एक बड़े प्रेरणा स्रोत भी रहे। वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा भी उनके द्वारा प्रतिपादित की गई थी। उनके मन में सभी धर्मों के प्रति प्रेम तथा आदर भाव समाहित था, और यही वजह है कि गांधी जी को महात्मा गांधी और राष्ट्रपिता कहा जाता है। महात्मा गांधी को सुभाष चंद्र बोस ने भी 6 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से 'राष्ट्रपिता' कहकर संबोधित किया था।
महात्मा गांधी के सपनों के भारत में एक सपना राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को प्रतिष्ठित करने का भी था। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना कोई भी राष्ट्र गूँगा हो जाता है। नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन (10-14 जनवरी, 1975) में यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाए तथा एक अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना की जाय जिसका मुख्यालय वर्धा में हो। अगस्त, 1976 में मॉरीशस में आयोजित द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन में यह तय किया गया कि मॉरीशस में एक विश्व हिंदी केंद्र की स्थापना की जाए जो सारे विश्व में हिंदी की गतिविधियों का समन्वय कर सके।
गांधीजी की सरलता एवं सत्य अहिंसा के प्रति अनुराग के सामने अंग्रेज नतमस्तक होकर भारत को स्वतंत्र कर भारत छोड़ गए। अंग्रेज गांधी जी की सत्याग्रह तथा सहयोग से घबराकर भारत से दुम दबाकर भागे। गांधीजी की सादगी,सरलता एवं सादा जीवन, सत्य और अहिंसा हम सबके लिए आज सबसे ज्यादा अनुकरणीय है। महात्मा गांधी को हम सब भारत वासियों तथा सत्य और अहिंसा के पुजारियों की ओर से नमन श्रद्धांजलि एवं प्रणाम।