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पाक से था गांधीजी को प्रेम, आजादी के बाद वहीं थी रहने की इच्छा, BJP नेता का दावा

महात्मा गांधी आजादी के पहला दिन 15 अगस्त, 1947 का दिन पाकिस्तान में बिताना चाहते थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता एमजे अकबर की नई किताब में यह दावा है।  भारत और पाकिस्तान के बंटवारे पर एमजे अकबर ने अपनी नई किताब 'गांधी हिंदुइज्म: द स्ट्रगल अगेन्स्ट जिन्नाह इस्लाम' में यह बातें कही हैं।

suman
Published on: 19 Jan 2020 2:43 PM GMT
पाक से था गांधीजी को प्रेम, आजादी के बाद वहीं थी रहने की इच्छा, BJP नेता का दावा
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नई दिल्ली:पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता एमजे अकबर की नई किताब में यह दावा किया गया है कि महात्मा गांधी आजादी का पहला दिन यानी 15 अगस्त, 1947 का दिन पाकिस्तान में बिताना चाहते थे। एमजे अकबर ने भारत और पाकिस्तान के बंटवारे पर अपनी नई किताब 'गांधी हिंदुइज्म: द स्ट्रगल अगेन्स्ट जिन्नाह इस्लाम' में यह बातें कही हैं। उन्होंने कहा, 'गांधी बंटवारे और नई अप्राकृति सीमा बनाने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने इसे क्षणिक पागलपन करार दिया था।'

इस किताब में विचारधारा और उन व्यक्तित्वों की समीक्षा की है, जिन्होंने बंटवारे को आधार दिया। कई गलतियों की वजह से 1940 से 1947 के बीच सात विस्फोटक वर्षों की राजनीति हुई। किताब के मुताबिक गांधी जी एक सच्चे हिंदू थे, जिनका मानना था कि भारत में हर तरह की सभ्यता फल-फूल सकती है। यहां सभी धर्म आगे बढ़ सकते हैं। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे पर एमजे अकबर ने अपनी नई किताब 'गांधी हिंदुइज्म: द स्ट्रगल अगेन्स्ट जिन्नाह इस्लाम' में यह बातें कही हैं। उन्होंने कहा, 'गांधी बंटवारे और नई अप्राकृति सीमा बनाने के पक्ष में नहीं थे।

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गांधी-जिन्ना की विचारधारा में अंतर

इस किताब में विचारधारा और उन व्यक्तित्वों की समीक्षा है, जिन्होंने बंटवारे को आधार दिया। कई गलतियों की वजह से 1940 से 1947 के बीच 7 वर्षों तक विस्फोटक स्थिति बनी रही। इस किताब में गांधी जी और जिन्ना की विचारधाराओं में अंतर को दिखाने की कोशिश की गई है।

'अगस्त आफर'

किताब के अनुसार, गांधी जी एक हिंदू थे, जिनका मानना था कि भारत में हर तरह की सभ्यता फल-फूल सकती है। यहां सभी धर्म आगे बढ़ सकते हैं। दूसरी तरफ जिन्ना धर्म से ज्यादा राजनीतिक मुस्लिम थे। वह इस्लाम के नाम पर एक समकालिक उपमहाद्वीप बनाने को प्रतिबद्ध थे। जिन्ना का यह हौसला ब्रिटेन के साथ हुई डील की वजह से आया था। 1940 में हुई इस डील को 'अगस्त आफर' नाम दिया गया था। गांधी जी की शक्ति वैचारिक प्रतिबद्धता में थी, जिसे अंत में सांप्रदायिक हिंसा ने छीन लिया। इस गतिरोध की कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ी, जिन्हें पीढ़ियों तक नहीं भुलाया जा सकता। एमजे अकबर के अनुसार, आजादी के बाद गांधी जी की पहली चिंता बंटवारे का दंश झेलने वाले पीड़ितों को लेकर थी यानी अल्पसंख्यक। पाकिस्तान में हिंदू और भारत में मुस्लिम।

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पूर्वी पाकिस्तान में रहने की थी इच्छा

किताब में लिखा गया है, 'वह पूर्वी पाकिस्तान के नोआखली में रहना चाहते थे। यहां 1946 में हुए दंगों में हिंदुओं को काफी प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी। गांधी सांप्रदायिक हिंसा के बाद शांति की उम्मीद को लेकर संदेह में थे।' किताब में लिखा है कि 31 मई, 1947 को गांधी ने पठान नेता अब्दुल गफ्फार खान से कहा था कि वह उत्तर पश्चिम फ्रंटियर जाना चाहते हैं और आजादी के बाद यहीं रहना चाहते हैं। अब्दुल गफ्फार खान को 'फ्रंटियर गांधी' के नाम से भी जाना जाता था।

किताब में गांधी जी के हवाले से कहा गया है, 'मैं देश के बंटवारे के पक्ष में नहीं हूं। मैं किसी की अनुमति लेने नहीं जा रहा हूं। अगर कोई इस अवहेलना के लिए मुझे मारना चाहता है, तो मार सकता है। मैं हंसते हुए मौत को स्वीकार कर लूंगा। अगर पाकिस्तान बनता है तो मैं वहीं जाना चाहूंगा, घूमना चाहूंगा, वहां रहना चाहूंगा और यह देखना चाहूंगा कि वे मेरे साथ क्या करते हैं।' अकबर ने कहा उस उतार-चढ़ाव भरे माहौल में गांधी जी का यही पक्ष रहा।

उन्होंने लिखा, '50 साल से ज्यादा समय तक वह एक ही बात पर अड़े रहे। उनके भजन में सर्वधर्म, सभी जातियों के लिए सद्भाव, सहिष्णुता और एकता को जगह मिली। चाहे दक्षिण अफ्रीका हो या फिर भारत, अपनी आखिरी सांस तक वह बार-बार यह बताते रहे कि उन्हें हिंदू होने पर गर्व है।' वहीं दूसरी तरफ जिन्ना ने अपने व्यक्तित्व को राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिहाज से ढाला। छह दशक तक उन्होंने शायद मुस्लिम धर्म का पालन किया हो। 1937 के बाद वह अचानक से अलग इस्लामिक देश की मांग के अगुवा बन गए।

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