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Dengue-Malaria: डेंगू-मलेरिया से लड़ाई लड़ रहे जेनेटिकली मॉडिफाइड मच्छर, जानिय ये क्या है नया प्रयोग?

Dengue-Malaria: मच्छर से निपटने के लिए तमाम प्रयास हुए हैं और नई रिसर्च जारी हैं और इनमें लेटेस्ट है "जीएमओ मच्छर।" जीएमओ यानी जेनेटिकली मॉडिफाइड मच्छर।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 25 May 2024 7:15 PM IST
Genetically modified mosquitoes are fighting dengue and malaria, know what is this new experiment?
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डेंगू-मलेरिया से लड़ाई लड़ रहे जेनेटिकली मॉडिफाइड मच्छर, जानिय ये क्या है नया प्रयोग?: Photo- Social Media

Dengue-Malaria: पूरे मानव इतिहास में मच्छर की मौजूदगी हमेशा से रही है। मानव अस्तित्व के साथ मच्छर लगातार भिनभिनाते रहे हैं हमें परेशान करने के अलावा घातक बीमारियाँ फैलाकर कहर भी बरपाते हैं। जीवाश्म रिकॉर्ड से पता चलता है कि मच्छरों का इतिहास कम से कम सात करोड़ वर्ष पुराना है और मलेरिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों का प्रमाण 2000 ईसा पूर्व मिस्र की ममियों से मिलता है।

मलेरिया से हर साल पांच लाख से अधिक लोगों की जान जाती है। करीब 25 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं और डेंगू, जीका, लिम्फेटिक फाइलेरिया और पीला बुखार समेत तमाम बीमारियों के शिकार बनते हैं।

मच्छर से निपटने के लिए तमाम प्रयास हुए हैं और नई रिसर्च जारी हैं और इनमें लेटेस्ट है "जीएमओ मच्छर।" जीएमओ यानी जेनेटिकली मॉडिफाइड मच्छर। ऐसे मच्छर जिनका जीन बदल दिया गया है।

Photo- Social Media

मच्छरों से लड़ाई में मच्छरों का इस्तेमाल

मलेरिया फैलाने वाली एक आक्रामक प्रजाति के प्रसार को रोकने के प्रयास में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएमओ) मच्छरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यूनाइटेड किंगडम स्थित जैव प्रौद्योगिकी कंपनी ऑक्सिटेक द्वारा डेवलप किये गए नर एनोफिलिस स्टेफेन्सी मच्छरों में एक जीन होता है जो मादा संतानों को परिपक्वता तक पहुंचने से पहले ही मार देता है। बता दें कि केवल मादा मच्छर ही काटती हैं और मलेरिया और अन्य वायरल बीमारियाँ फैलाती हैं।

भारत में भी हुआ प्रयोग

यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार इसी तरह की तकनीक का ब्राजील, केमैन आइलैंड्स, पनामा और भारत में सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है। अमेरिका ने भी इसका ट्रायल किया है। सीडीसी का कहना है कि 2019 के बाद से दुनिया भर में एक अरब से अधिक ऐसे मच्छर छोड़े गए हैं।

ऑक्सीटेक के अनुसार उसने अच्छे मच्छर बनाए हैं जो काटते नहीं हैं, जो बीमारी नहीं फैलाते हैं। और जब इन दोस्ताना मच्छरों को छोड़ा जाता है तो वे जंगली प्रकार की मादा मच्छरों की तलाश करते हैं और उनके साथ संबंध बनाते हैं। प्रयोगशाला में डेवलप किये गए मच्छरों में एक "आत्म-सीमित" जीन होता है जो मादा मच्छरों की संतानों को वयस्क होने तक जीवित रहने से रोकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार केवल उनकी नर संतानें ही जीवित रहती हैं लेकिन अंततः वह भी मर जाएंगी।

Photo- Social Media

कठिन प्रजाति

दरअसल, मूल रूप से एशिया की मच्छर की स्टीफेन्सी प्रजाति को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है। इसे शहरी मच्छर भी कहा जाता है जिसने नियंत्रण के पारंपरिक तरीकों को मात दे दी है। यह दिन और रात दोनों समय काटता है और रासायनिक कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधी है। ऐसे में जीएमओ मच्छरों से एक नई आशा जगी है।



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Shashi kant gautam

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