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भू वैज्ञानिकों के नए शोध में खुलासा, 80 करोड़ साल पहले भी था भारत
भारत के पुरातन अस्तित्व को भूविज्ञान के बिलकुल नए शोध ने प्रमाणित कर दिया है। अब से 80 करोड़ वर्ष पहले भारत भौगोलिक रूप से वैसा ही था जैसा आज है। यह किसी दादी-नानी की परी कथा नहीं है। यह कोरी कल्पना नहीं है। यह किसी पुराण या उपनिषद की बात नहीं लिख रहा हूं। विश्व में सर्वाधिक प्रामाणिक माने जाने वाले वैज्ञानिक जर्नल एल्सेवियर में प्रकाशित एक शोधपत्र में यह दावा किया गया है। दुनिया में इस शोध को एक क्रान्ति के रूप में देखा जा रहा है। सृष्टि में भारत के अस्तित्व की इसे अबतक की सबसे बड़ी प्रामाणिक जानकारी बताया जा रहा है।
संजय तिवारी
लखनऊ: भारत के पुरातन अस्तित्व को भू-विज्ञान के बिलकुल नए शोध ने प्रमाणित कर दिया है। अब से 80 करोड़ वर्ष पहले भारत भौगोलिक रूप से वैसा ही था जैसा आज है। यह किसी दादी-नानी की परी कथा नहीं है। यह कोरी कल्पना नहीं है। यह किसी पुराण या उपनिषद की बात नहीं लिख रहा हूं। विश्व में सर्वाधिक प्रामाणिक माने जाने वाले वैज्ञानिक जर्नल एल्सेवियर में प्रकाशित एक शोधपत्र में यह दावा किया गया है। दुनिया में इस शोध को एक क्रान्ति के रूप में देखा जा रहा है। सृष्टि में भारत के अस्तित्व की इसे अबतक की सबसे बड़ी प्रामाणिक जानकारी बताया जा रहा है।
इस शोध में कहा गया है कि 80 करोड़ साल पहले भारत का भू-भाग अपने मौजूदा स्वरूप में आ चुका था। यदि आकार, प्रकार और अस्तित्व प्रामाणिक है तो फिर भारत की सभ्यता की प्रमाणिकता भी स्वतः सिद्ध हो जाती है। शोध कहता है कि तब चीन के बनने की प्रक्रिया जारी थी। उसके तीन टुकड़े अलग-अलग थे। धीरे-धीरे उनके तीनों हिस्से नजदीक आकर जुड़े और बहुत बाद में वर्तमान चीन का स्वरूप उभरकर सामने आया। मौजूदा वक्त में दक्षिण चीन भारत के सुदूर पूर्व में स्थित है, जबकि पहले उत्तर-पश्चिम में था। यह तब की बात है, जबकि हिमालय भी नहीं था, बल्कि उसकी जगह समुद्र था।
शोध में पाया गया है कि करीब 80 करोड़ साल पहले चीन का एक बड़ा हिस्सा कभी हमारे नजदीक था। भौगोलिक तौर से 3 हिस्सों से जुड़कर बने चीन का दक्षिणी भाग उसके अन्य दोनों भू-भाग के बजाए राजस्थान के उत्तर के नजदीक था। आज यह हिस्सा करीब साढ़े 3 हजार किमी दूर जा चुका है। खास बात है कि भारत नहीं बदला है, बल्कि चीन की स्थिति बदलती रही है।
भारत और चीन के तीन भू वैज्ञानिकों ने इस शोध को पूरा किया है। तीनों ने करीब चार साल तक जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, पाली, सिरोही की चट्टानों के साथ दक्षिण चीन की यांगत्से नदी के आसपास के इलाकों में काफी खाक छाना। इस शोध से पता चला कि पश्चिमी राजस्थान में 75 से 100 करोड़ साल पहले की आग्नेय चट्टानें मौजूद हैं, जो लावा से बनी हैं। राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे एमके पंडित, चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियो साइंसेज, वूहान के प्रो. वेई वांग और प्रो. जूं हांग की रिसर्च पर जियोलॉजिस्ट्स के प्रतिष्ठित इंटरनेशनल 'एल्सेवियर' ने मुहर लगाते हुए इसे रिसर्च जर्नल 'जियो फिजिकल रिसर्च लेटर्स' में जगह दी है। इस उपलब्धि पर प्रो. एमके पंडित ने कहते हैं कि भू-वैज्ञानिकों के रिसर्च में पहले 50 करोड़ साल की भौगोलिक स्थितियां ही पता लग पाती थीं। अब नई रिसर्च, उपकरणों से 100 करोड़ साल से ज्यादा की जानकारियां भी ले पा रहे हैं। कुछ साल पहले हमने 75 करोड़ साल पहले के बारे में चली आ रही अवधारणा को तोड़ते हुए बताया था कि भारतीय भू-भाग अंटाकर्टिका और आस्ट्रेलिया से नहीं जुड़ा था।
अब करीब 4 साल के रिसर्च के नतीजों में भारत और चीन की भौगोलिक स्थितियां साफ हो पाई हैं। उधर चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियो साइंसेज के प्रो. वेई वांग और प्रो. जूं हांग कहते हैं कि हमारी ज्वॉइंट रिसर्च के नतीजे चौंकाने वाले और पहले से चले आ रहे कॉन्सेप्ट से अलग हैं। इन्हें प्रतिष्ठित जर्नल में जगह मिलने से हम खुश हैं। उन्होंने कहा कि इस शोध के सामने आने के बाद विश्व विज्ञान, भूगोल और दर्शन पर बहुत असर पड़ने वाला है।