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टेलेंट इकोनॉमी की डिमांड ने बढ़ाई डू-इट-योरसेल्फ की ललक

दुनिया की प्रमुख लर्निंग कंपनी पियरसन ने आज ग्लोबल लर्नर सर्वेक्षण के परिणाम जारी किए हैं, यह नया अध्ययन दुनिया भर में लर्नर्स (छात्रों) के विचारों पर रोशनी डालता है। डू-इट-योरसेल्फ पर आधारित सर्वेक्षण के तहत विश्वस्तरीय आर्थिक परिवेश के बीच शिक्षा में आ रहे बदलावों, तकनीक के व्यापक प्रभाव तथा शिक्षा प्रणाली की उन अवधारणों पर रोशनी डाली गई है, जो लर्नर्स (छात्रों) के दायरे से बाहर हैं।

राम केवी
Published on: 13 May 2023 8:16 PM IST
टेलेंट इकोनॉमी की डिमांड ने बढ़ाई डू-इट-योरसेल्फ की ललक
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नीलमणिलाल

दुनिया की प्रमुख लर्निंग कंपनी पियरसन ने आज ग्लोबल लर्नर सर्वेक्षण के परिणाम जारी किए हैं, यह नया अध्ययन दुनिया भर में लर्नर्स (छात्रों) के विचारों पर रोशनी डालता है। डू-इट-योरसेल्फ पर आधारित सर्वेक्षण के तहत विश्वस्तरीय आर्थिक परिवेश के बीच शिक्षा में आ रहे बदलावों, तकनीक के व्यापक प्रभाव तथा शिक्षा प्रणाली की उन अवधारणों पर रोशनी डाली गई है, जो लर्नर्स (छात्रों) के दायरे से बाहर हैं।

डू-इट-योरसेल्फ का बढ़ रहा शिक्षा पर कंट्रोल

अध्ययन दर्शाता है कि दुनिया भर के लर्नर्स (छात्र) अब ‘डू-इट-यॉरसेल्फ’(डीआईवाई) सोच के साथ अपनी शिक्षा पर नियन्त्रण पा रहे हैं, आज उनकी औपचारिक शिक्षा में स्व-अध्यापन, संक्षिप्त पाठ्यक्रम और ऑनलाईन लर्निंग का मिश्रण शामिल है जो उन्हें प्रतिभा अर्थव्यवस्था के साथ तालमेल में बने रहने में मदद करता है।

सर्वेक्षण में यह भी सामने आया है कि लर्नर यानि आज के छात्र लर्निंग की पारम्परिक धारणाओं के परे जाकर सोचते हैं और शिक्षा प्रदाताओं के द्वारा टैलेंट इकोनोमी की मांग को देखते हुए लर्निंग के व्यापक अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं।

भारत सहित 19 देशों के छात्रों पर अध्ययन

पियरसन ने हेरिस इनसाईट्स एण्ड एनालिटिक्स के साथ मिलकर भारत सहित 19 देशों के छात्रों पर यह अध्ययन किया, जिसमें प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों के विचारों; करियर और भावी कार्यों एवं तकनीक के बारे में उनकी अवधारणाओं को शामिल किया गया। 16 से 70 वर्ष के 11,000 से अधिक लोगों ने इस सर्वेक्षण में हिस्सा लिया।

यह सर्वेक्षण छात्रों के लिए अब तक का सबसे व्यापक विश्वस्तरीय सार्वजनिक सर्वेक्षण है। इसके अलावा पियरसन ने टैलेंट इकोनोमी के इस युग में उच्च शिक्षा के अवसरों पर भी रोशनी डाली है और उच्च शिक्षा के अवसरों के लिए एक गाईड पेश की है।

पियरसन के चीफ़ एक्ज़ीक्यूटिव, जॉन फॉलन का मत

टैलेंट इकोनोमी में गिग जॉब, गैर-पारम्परिक करियर, टेक डिसरप्शन और आजीवन लर्निंग जैसी अवधारणाएं विकसित हुई हैं। आज के छात्र आजीवन लर्निंग का महत्व समझते हैं।

उन्होंने कहा कि लोग अपनी लर्निंग पर नियन्त्रण पाकर इस नई दुनिया में काम की मांग को पूरा कर रहे हैं। आज टेक्नोलॉजी एवं इनोवेशन्स के कारण शिक्षकों, सरकारों एवं कंपिनयों को ऐसे अवसर मिल रहे हैं, जहां वे शिक्षा के माध्यम से जीवन में सुधार ला सकें।

ग्लोबल लर्नर सर्वेक्षण के मुख्य परिणामों में शामिल हैः

डू-इट-यॉरसेल्फ (डीआईवाई) सोच शिक्षा में बदलाव ला रही हैः लोग अपनी पारम्परिक शिक्षा में मिक्स एण्ड मैच दृष्टिकोण को इस्तेमाल कर रहे हैं, जहां वे नई इकोनोमी के अनुसार शिक्षा पा रहे हैं।

दुनिया भर में 81 फीसदी लोगों का कहना है कि उम्र बढ़ने के साथ लर्निंग सेल्फ-सर्विस बन जाती है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका के लोगों का भी यही मानना है। काम के दृष्टिकोण से बात करें तो यूएस में 42 फीसदी लर्नर, चीन और भारत में 50 फीसदी लर्नर इंटरनेट संसाधनों से खुद सीखने की कोशिश करते हैं।

ऑनलाईन टूल्स या पेशवर शॉर्ट कोर्स का बढ़ा बाजार

जब सर्वेक्षण के उम्मीदवारों से पूछा गया कि वे अपस्किलिंग के लिए लर्निंग के कौन से तरीके अपनाएंगे, चीन, यूएस, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के 80 फीसदी उम्मीदवारों ने ऑनलाईन टूल्स या पेशवर शॉर्ट कोर्स करने की बात कही।

भारत में 79 फीसदी लोगों का मानना है कि लर्निंग उम्र बढ़ने के साथ सेल्फ सर्विस बन जाती है। भारत के साथ चीन भी ऐसा बाज़ार है जहां माता-पिता यह उम्मीद नहीं करते कि शिक्षा प्रणाली को ही उनके लिए सब कुछ करना है, बल्कि अपने बच्चों की शिक्षा में खुद भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वे बच्चों के लिए ट्यूटर, कन्सलटेन्ट, अंग्रेज़ी कक्षाओं का इंतज़ाम करते हैं। उन्हें कॉलेज में प्रवेश लेने में मदद करते हैं।

अगले दशक में डिजिटल और वर्चुअल लर्निंग सामान्य होगी

80 फीसदी अमेरिकियों का मानना है कि स्मार्ट डिवाइसेज़ और ऐप छात्रों के लिए मददगार हो सकते हैं, वहीं चीन और ब्राज़ील जैसे देशों में इन डिवाइसेज़ के प्रति झुकाव और अधिक है।

दुनिया भर में 76 फीसदी लोगों का मानना है कि कॉलेज छात्र 10 साल के अंदर ऑनलाईन कोर्स करेंगे, वहीं 67 फीसदी लोगों का मानना है कि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के छात्र भी इस तरह के कोर्स करेंगे। 70 फीसदी अमेरिकियों का मनना है कि प्रिंट टेक्स्टबुक पांच सालों में अप्रचलित हो जाएंगी।

शिक्षा पर पड़ेगा सकारात्मक असर

यूएस, यूके और यूरोप में 70 फीसदी तथा चीन में 90 फीसदी लोगों का मानना है कि एआई का शिक्षा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 78 फीसदी भारतीयों का मानना है कि आज के छात्र तकनीक से लाभान्वित हो सकते हैं, जिससे लर्निंग उनके लिए रोचक और आसान हो जाती है।

74 से 79 फीसदी लोगों का मानना है कि लर्निंग में स्मार्ट डिवाइसेज़ की भूमिका बढ़ेगी, वर्चुअल लर्निंग अधिक सामान्य हो जाएगी, प्रिंट टेक्स्टबुक अप्रचलित हो जाएंगी और यूट्यब लर्निंग का मुख्य उपकरण होगा।

आजीवन लर्निंग अब सिर्फ दर्शन नहीं बल्कि नई वास्तविकता बन चुकी है

दुनिया भर में इस बात को लेकर सहमति है कि लोगों को अपने करियर में अपडेट रहने के लिए आजीवन सीखते सहना चाहिए। 87 फीसदी अमेरिकी आजीवन लर्निंग के पक्ष में हैं, उनका मानना है लर्निंग स्कूल के साथ खत्म नहीं हो जाती। चीन में 96 फीसदी और दक्षिणी अफ्रीका में 94 फीसदी लोगों की ऐसी ही अवधारणा है।

73 फीसदी अमेरिकी नए कौशल के साथ अपने आप में बदलाव जारी रखना चाहते हैं और 52 फीसदी लोग सेवानिवृत्ति की पारम्परिक अवधारणा को ही ‘रिटायर’ कर देने के पक्ष में हैं उनका मानना है कि रिटायरमेंट के बाद वे पार्ट टाईम जॉब या किसी दूसरे करियर या कारोबार को अपना सकते हैं।

बदल गई नौकरी के प्रति पुरानी सोच

84 फीसदी भारतीय अपने प्रभावी क्षेत्र में करियर चुनते हैं, जबकि 31 फीसदी करियर में बदलाव लाते हैं। 76 फीसदी का मानना है कि अपने पूरे करियर के दौरान एक ही नियोक्ता के लिए काम करना और पारम्परिक रिटायरमेंट की अवधारणा अब पुरानी हो चुकी है, 25 फीसदी भारतीय रिटायरमेन्ट के बाद अपना खुद का कारोबार करना चाहते हैं।

20 फीसदी भारतीय कुछ अतिरिक्त आय के लिए पार्ट टाईम जॉब या अपनी पसंद के किसी अन्य करियर को अपनाना चाहते हैं। 60 फीसदी भारतीयों का मानना है कि दुनिया एक ऐसे मॉडल की ओर बढ़ रही है जो लोग आजीवन शिक्षा में हिस्सा लेते रहेंगे।

शिक्षा प्रणाली में भरोसा कम हो रहा है, खासतौर पर यूएस में ऐसा है

60 फीसदी अमेरिकियों का मानना है कि शिक्षा प्रणाली आज की पीढ़ी के लिए असफल हो रही है। यह अवधारणा यूरोप में बहुत मजबूत है, इसके बाद दक्षिण अफ्रीका, ब्राज़ील और हिस्पानो अमेरिका में भी यही अवधारणा बढ़ रही है।

67 फीसदी अमेरिकियों का मानना है कि कॉलेज औसत छात्र की पहुंच से बाहर हो रहे हैं। यूएस के ज़्यादातर लोगों का मानना है कि कॉलेज और विश्वविद्यालय आज की नौकरियों के अनुसार छात्रों को सही कौशल नहीं देते हैं।

हालांकि यह भारत के लिए सच नहीं है, जहां 59 फीसदी लोगों का मानना है कि देश की शिक्षा प्रणाली आज के पीढ़ी के अनुसार काम करती है और उन्हें तकनीक एवं बदलते रूझानों के अनुरूप बनाए रखती है।

जनरेशन ज़ी का मानना है कि आप पारम्परिक कॉलेज शिक्षा के बिना भी सफल हो सकते हैंः

हालांकि आंकड़ों से पता चलता है कि कॉलेज की डिग्री पाने के बाद आजीवन कमाई बढ़ती है, किंतु यूएस, यूके और ऑस्ट्रेलिया में जनरेशन ज़ी के आधे युवाओं का मानना है कि वे कॉलेज शिक्षा की बिना भी ठीक हैं।

दुनिया भर में 68 फीसदी छात्रों का मानना है कि आप व्यवसायिक या कारोबार पाठ्यक्रम में पढ़ कर भी अच्छा करियर बना सकते हैं। भारत में 22 फीसदी छात्रों का मानना है कि औपचारिक शिक्षा अच्छी है किंतु आज के दौर के लिए ज़रूरी या प्रासंगिक नहीं, क्योंकि आप खुद भी अपनी सफलता पा सकते हैं।

39 फीसदी कॉलेज छात्रों का मानना है कि वे कॉलेज जाने के बजाए किसी कारोबार या व्यवसायिक प्रशिक्षण में पढ़ाई करेंगे जबकि 15 फीसदी का मानना है कि हाई स्कूल के बाद ही काम पर जाएंगे।

यूएस और यूके को पछाड़ रहे हैं

चीन, भारत, ब्राज़ील और हिस्पानो अमेरिका अपस्किलिंग की दौड़ में यूएस और यूके को पछाड़ रहे हैं और विश्वस्तरीय अर्थव्यवस्था को नए आयाम दे रहे हैं

दुनिया के किसी भी हिस्से की तुलना में चीन, ब्राज़ील, भारत और हिस्पानो अमेरिका के लोगों का मानना है कि शिक्षा विश्वस्तरीय अर्थव्यवस्था को नए आयाम दे रही है। इन देशों के दो-तिहाई छात्रों ने पिछले दो सालों में पुनः कौशल पर ध्यान दिया है, जबकि में 31 फीसदी अमेरिकी और 24 फीसदी ब्रिटिश पुनः कौशल पर ध्यान दे रहे हैं।

अपस्किलिंग के लिए ये छात्र शॉर्ट कोर्सकर रहे हैं, जो इनके नियोक्ताओं, पेशेवर संगठनों द्वारा डिग्री प्रोग्राम या सेल्फ-टीचिंग के रूप में उपलब्ध हैं।

सॉफ्ट स्किल्स, ऑटोमेशन की तुलना में अधिक फायदेमंद

हालांकि स्टैम स्किल का महत्व भी कम नहीं हुआ है, बहुत से लोगों का मानना है कि ये अनूठे कौशल उन्हें मशीनों से बेहतर बना सकते हैं। दुनिया भर में 78 फीसदी लोगों का कहना है कि उन्हें सॉफ्ट स्किल्स के लिए क्रिटिकल थिंकिंग, प्रॉबलम सॉल्विंग और क्रिएटिविटी की ज़रूरी है।

85 फीसदी अमेरिकी और 91 फीसदी चीनी लोगों का मानना है कि उन्हें जॉब बाज़ार के अनुरूप में अपने कौशल में सुधार लाने और तैयारी करने की ज़रूरत है। भारत में 76 फीसदी लोगों का मानना है कि उन्हें स्टैम/ टेक स्किल विकसित करना चाहिए वहीं 78 फीसदी का मानना है कि सॉफ्ट स्किल्स भी ज़रूरी है।

अमेरिकी लोगों का मानना है कि स्कूलों में सुरक्षा और शिक्षा की सुलभता है ज़रूरी

84 फीसदी अमेरिकी लोगों का मानना है कि 25 साल पहले से तुलना करें तो आज के स्कूल कम सुरक्षित हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि ऑनलाईन और व्यक्तिगत धमकियों के कारण छात्रों के लिए स्कूल असुरक्षित हो गए हैं।

2020 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले 71 फीसदी अमेरिकियों का मानना है कि सरकार को किसी प्रकार की निःशुल्क उच्च शिक्षा उपलब्ध करानी चाहिए। कॉलेज में भर्ती के घोटालों पर बात करें तो 72 फीसदी अमेरिकियों का कहना है कि विश्वविद्यालय छात्रों की शिक्षा के बजाए प्रतिष्ठा पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं।

यूके के छात्रों की अपनी समस्याएं हैं

यूके में 77 फीसदी लोगों का कहना है कि सोशल मीडिया के कारण स्कूली वातावरण छात्रों के लिए मुश्किल बन गया है, आधे से कम लोगों का कहना है कि वास्तव में लर्निंग में सुधार आया है।

जबकि 46 फीसदी लोगों का मानना है कि वे अपनी उच्च शिक्षा के फैसले पर पुनः विचार करेंगे और व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त करेंगे या सीधे काम के लिए जाएंगे। दुनिया के किसी अन्य स्थान की तुलना में यूके के छात्रों का मानना है कि उच्च शिक्षा उन्हें अपने चुने हुए करियर के लिए तैयार नहीं किया है।



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