TRENDING TAGS :
Sabarmati Express Burning History: साबरमती एक्स्प्रेस ट्रेन की वो घटना जिसने इतिहास को हिला दिया, जानते हैं पूरी कहानी
Sabarmati Express Train Burning History: साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन अयोध्या से अहमदाबाद की ओर जा रही थी। सुबह करीब 7:45 बजे ट्रेन गोधरा रेलवे स्टेशन पर रुकी। ट्रेन के एस-6 डिब्बे में बड़ी संख्या में कारसेवक सवार थे।
Sabarmati Express Train Burning History: गोधरा कांड 27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर घटित एक दर्दनाक और विवादित घटना है, जिसने न केवल गुजरात बल्कि पूरे देश की राजनीति, समाज और सांप्रदायिक ताने-बाने को झकझोर कर रख दिया। इस घटना में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 लोग, जिनमें अधिकतर अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे, जलकर मर गए। इस घटना ने सांप्रदायिक हिंसा का ऐसा सिलसिला शुरू किया जिसने हजारों जिंदगियां बर्बाद कर दी।
घटना का घटनाक्रम
साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन अयोध्या से अहमदाबाद की ओर जा रही थी। सुबह करीब 7:45 बजे ट्रेन गोधरा रेलवे स्टेशन पर रुकी। ट्रेन के एस-6 डिब्बे में बड़ी संख्या में कारसेवक सवार थे। स्टेशन पर ट्रेन के रुकने के दौरान कुछ विवाद हुआ, जिसके बाद ट्रेन जैसे ही आगे बढ़ी, किसी ने ट्रेन पर पत्थरबाजी शुरू कर दी।
अचानक एस-6 डिब्बे में आग लग गई, जिसने कुछ ही मिनटों में पूरे डिब्बे को अपनी चपेट में ले लिया। इस आगजनी में 59 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हुए।
आग का कारण और जांच
घटना के तुरंत बाद यह बहस शुरू हो गई कि यह आग कैसे लगी। प्रारंभिक जांच में गुजरात पुलिस ने इसे सुनियोजित साजिश करार दिया और कहा कि गोधरा के मुस्लिम समुदाय के एक समूह ने पेट्रोल छिड़ककर आग लगाई थी। हालांकि, इस निष्कर्ष पर अलग-अलग विचार सामने आए। तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा गठित बनर्जी कमेटी ने इसे एक दुर्घटना बताया और कहा कि आगजनी साजिश का हिस्सा नहीं थी।
दूसरी ओर, नानावटी आयोग और विशेष जांच दल (SIT) ने इसे साजिश माना और कहा कि यह एक पूर्व नियोजित हमला था।
गोधरा कांड के बाद सांप्रदायिक दंगे
गोधरा कांड के बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़क उठी। 28 फरवरी, 2002 को दंगों की शुरुआत अहमदाबाद से हुई और यह धीरे-धीरे पूरे राज्य में फैल गई। इन दंगों में सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 1,000 लोग मारे गए। लेकिन कई स्वतंत्र स्रोतों के अनुसार यह संख्या 2,000 तक हो सकती है। मरने वालों में अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोग थे। दंगों में हजारों घर, दुकानें और धार्मिक स्थल जला दिए गए। हजारों लोग बेघर हो गए और शिविरों में शरण लेने को मजबूर हुए।
दंगों के कारण और आरोप गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर सवाल उठे। आलोचकों ने आरोप लगाया कि दंगों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए। कुछ मानवाधिकार संगठनों ने राज्य सरकार पर दंगों में "अप्रत्यक्ष रूप से संलिप्त" होने का आरोप लगाया। वहीं, नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि उन्होंने हिंसा रोकने के लिए हरसंभव कदम उठाए।
जांच और न्यायिक प्रक्रिया
गोधरा कांड और दंगों की जांच के लिए कई विशेष जांच दल (SIT) बनाए गए। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एसआईटी ने मामले की गहराई से जांच की। 2011 में एक विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी ठहराया और 63 लोगों को बरी कर दिया। दोषियों में से 11 को मौत की सजा और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। हालांकि, कई मामलों में सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया गया, जिससे न्याय प्रक्रिया पर सवाल उठे।
सितंबर 2008 में, नानावटी आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट पेश की, जिसमें गोधरा कांड को एक सोची-समझी साजिश करार दिया गया। इस रिपोर्ट में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों और कई वरिष्ठ अधिकारियों को क्लीन चिट दी गई।
आयोग के सदस्य जस्टिस केजी शाह के 2009 में निधन के बाद, गुजरात हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस अक्षय मेहता को उनकी जगह नियुक्त किया गया। इसके साथ ही आयोग का नाम बदलकर नानावटी-मेहता आयोग कर दिया गया।
इसके 10 साल बाद, 2019 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा पेश किया। इस रिपोर्ट में पहले हिस्से की बातों को ही दोहराया गया और गोधरा कांड को एक सुनियोजित साजिश माना गया।
मार्च 2011 में, ट्रायल कोर्ट ने 31 लोगों को दोषी ठहराया, जिनमें से 11 को मौत की सजा सुनाई गई और शेष 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।63 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया।
एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने मार्च 2011 में 31 लोगों को दोषी ठहराया. इनमें से 11 लोगों को मौत की सजा और बाकी बचे 20 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 63 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया।
इसके बाद साल 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने उन 11 लोगों की सजा को बदलकर आजीवन कारावास कर दिया, जिन्हें मृत्युदंड दिया गया था। बाकी के 20 लोगों की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी गई। इसके बाद गुजरात सरकार ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की। बता दें कि अगले साल यानी जनवरी 2025 में 15 तारीख को सुप्रीम कोर्ट में अपील पर सुनवाई होनी है।
गोधरा कांड के विवाद
गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगे कई विवादों का कारण बने। एक ओर जहां इसे साजिश करार दिया गया, वहीं दूसरी ओर कुछ संगठनों ने इसे दुर्घटना बताया।
बनर्जी कमेटी ने कहा कि एस-6 डिब्बे में लगी आग एक दुर्घटना थी, जबकि नानावटी आयोग और एसआईटी ने इसे साजिश करार दिया। इन विरोधाभासी निष्कर्षों ने मामले को और अधिक जटिल बना दिया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
गोधरा कांड और गुजरात दंगों की आलोचना केवल भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इसकी चर्चा हुई। मानवाधिकार संगठनों ने इस घटना की निंदा की और कुछ देशों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
गोधरा कांड और उसके बाद हुई हिंसा ने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया। इसने समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया। राजनीति में धर्म आधारित मतभेदों को और गहरा किया। हालांकि, नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए यह घटना राजनीतिक रूप से लाभकारी साबित हुई और मोदी ने अपनी स्थिति को और मजबूत किया।
गोधरा में ट्रेन जलाए जाने की भयानक घटना ने पूरे राज्य को हिंसक दंगों की चपेट में ला दिया। कुछ ही घंटों में गुजरात हिंसा की आग में जलने लगा। केंद्र सरकार ने 2005 में राज्यसभा को जानकारी दी थी कि इन दंगों में 254 हिंदू और 790 मुस्लिम मारे गए थे। इसके अलावा, 223 लोग लापता हुए थे और हजारों लोगों को बेघर होना पड़ा था।
गोधरा कांड के विवादस्पद होने के कारण
नानावटी-मेहता आयोग और गुजरात पुलिस ने इस घटना को एक सुनियोजित साजिश करार दिया। उनका दावा था कि ट्रेन को पहले से प्लान करके जलाया गया था। कई मानवाधिकार संगठनों और स्वतंत्र जांच रिपोर्ट्स ने इसे ‘स्वाभाविक घटना’ या ‘आकस्मिक झड़प’ कहा। कुछ विशेषज्ञों का मानना था कि यह पूर्व नियोजित साजिश नहीं थी, बल्कि अचानक हुई हिंसक प्रतिक्रिया थी।यह मतभेद घटना की असली प्रकृति पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों का राजनीतिकरण हुआ।भाजपा और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर आरोप लगे कि उन्होंने दंगों को रोकने में जानबूझकर लापरवाही बरती।वहीं, भाजपा समर्थकों ने इसे विपक्ष द्वारा बदनाम करने की साजिश बताया। इस घटना का इस्तेमाल चुनावी मुद्दों और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए किया गया, जिसने इसे और विवादित बना दिया।
गोधरा कांड के बाद गुजरात में जो सांप्रदायिक दंगे हुए, उसमें राज्य सरकार और पुलिस पर निष्क्रियता और पक्षपात के आरोप लगे।सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि "राज्य प्रशासन ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने में असफलता दिखाई।"इस निष्क्रियता ने विवाद को और गहरा दिया।
गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में जले हुए लोग (कारसेवक) हिंदू समुदाय से थे, जबकि दंगों में मारे गए अधिकांश लोग मुस्लिम समुदाय के थे।यह सांप्रदायिक मुद्दा बन गया, जिसमें दोनों समुदायों के लोग खुद को पीड़ित मानते हैं।मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने दंगों में मुस्लिमों के खिलाफ हुई हिंसा पर सवाल उठाए, जिससे विवाद और बढ़ा।
कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और भारतीय मीडिया ने गोधरा कांड और उसके बाद के दंगों को लेकर राज्य सरकार पर तीखी आलोचना की।कुछ मीडिया समूहों ने इसे ‘राज्य प्रायोजित हिंसा’ करार दिया, जबकि कुछ ने इसे हिंदू समुदाय के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र बताया।मीडिया की रिपोर्टिंग ने विवाद को और ज्यादा तूल दिया।
गोधरा कांड ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच अविश्वास को और बढ़ा दिया।इस घटना के बाद कई चुनावों में धार्मिक ध्रुवीकरण साफ नजर आया।कुछ लोगों ने इसे ‘हिंदू प्रतिशोध’ कहा, जबकि अन्य ने इसे ‘मुसलमानों के खिलाफ हिंसा’ करार दिया।
गोधरा कांड और गुजरात दंगे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और सरकारों का ध्यान खींचने में सफल रहे।अमेरिका ने 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया था।यह घटना भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए भी विवाद का विषय बनी।
गोधरा कांड और दंगों के पीड़ितों को न्याय मिलने में वर्षों का समय लग गया।कई मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया गया, जिससे पीड़ित परिवारों में निराशा फैली।न्याय मिलने में देरी ने भी विवाद को और जटिल बनाया।
गोधरा कांड न केवल एक सांप्रदायिक घटना थी, बल्कि यह भारत की राजनीतिक, सामाजिक और न्यायिक व्यवस्था की चुनौतियों को उजागर करती है। घटना की सच्चाई और उसके बाद की घटनाओं को लेकर आज भी कई सवाल अनुत्तरित हैं। यह घटना इतिहास का ऐसा अध्याय है जो यह सोचने पर मजबूर करता है कि समाज, प्रशासन और राजनीति की जिम्मेदारी क्या होनी चाहिए और कैसे इस तरह की त्रासदियों से बचा जा सकता है।
गोधरा कांड भारतीय इतिहास की एक दुखद और विवादास्पद घटना है, जिसने देश के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को प्रभावित किया। यह घटना केवल सांप्रदायिक हिंसा का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह दिखाती है कि सामाजिक सद्भाव और न्याय सुनिश्चित करना कितना महत्वपूर्ण है। गोधरा कांड और उसके बाद की घटनाएं हमें यह सिखाती हैं कि हिंसा और नफरत से केवल नुकसान होता है और इससे बचने के लिए सभी को एकजुट होकर काम करना चाहिए।