×

नालियों में हाथ डालकर सोने की तलाश में गुजर गईं पीढ़ियां

raghvendra
Published on: 23 Nov 2018 2:03 PM IST
नालियों में हाथ डालकर सोने की तलाश में गुजर गईं पीढ़ियां
X

दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: सोना कितना सोना है, इस बात का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि सोने की तलाश में उनकी पीढिय़ां गुजर गयीं मगर सोने की तलाश खत्म नहीं हुई। हम बात कर रहे हैं अमृतसर के कुछ ऐसे परिवारों की जिनकी दिन की शुरुआत सोने की तलाश से होती है। इस काम से जुड़े लोगों को स्थानीय भाषा में न्यारे कहा जाता है। ये न्यारे अमृतसर में ही नहीं बल्कि देश के कई बड़े शहरों में भी दिखा जाएंगे।

अमृतसर के सुनियारे बाजार में रोजाना सुबह कुछ ऐसे लोग जरूर दिख जाएंगे जो दुकानों से हो कर गुजरने वाली नालियों में हाथ डालकर कचरा निकालते हैं व उसे बार-बार धोते हैं। देखने में ये थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन इसी कचरे से वे सोना तलाशते हैं।

इस काम में लगे लोगों का कहना है कि वे सुनारों की दुकानों की सीढिय़ों से लेकर उनकी दुकानों के बाहर तक ब्रश से सफाई कर धूल के कंण एकत्र करते हैं और इसी में सोना सहित अन्य कीमती धातुओं की तलाश करते हैं। इसी तरह पंजाब के कई बड़े शहरों जालंधर, लुधियाना, पठानकोट, बठिंडा आदि में स्थित सुनारों के मार्केट में न्यारे अल सुबह नालियों में सोने की तलाश में जुट जाते हैं। न्यारों का कहना है कि यह उनकी आजीविका का साधन है। इससे उनका परिवार पलता है।

इस तरह ढूंढते हैं सोना

यह काम इतना आसान नहीं है। इसके लिए काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं। नालियों से कचरा निकाल रहे भीम ने बताया कि इस कचरे या धूल को किसी बर्तन में रखकर थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर धीरे-धीरे हिलाते हुए सारा कचरा बाहर करते जाते हैं। अतं में जब थोड़े से मिट्टी या रेत के कण रह जाते हैं तब उसमें सोना सहित अन्य धातुओं को अलग करते हैं।

कभी लौटना पड़ता है खाली हाथ भी

इस काम लगे विक्रम व जश कहते हैं कि कोई जरूरी नहीं कि रोज सोना ही मिले। कई बार घंटों खाक छानने के बाद भी हाथ खाली ही रह जाते हैं। उस दिन किस्मत में नहीं था कहकर मन को समझा लेते हैं। हालांकि यह काम लाभ का नहीं है फिर भी परिवार पालने के लिए करना पड़ता है।

पुरुखों से विरात में मिला काम

इस धंधे से जुड़े लोगों का कहना है कि उन्हें यह काम पुरुखों से विरासत में मिला है। इस काम में पीढिय़ां गुजर गईं। उन्होंने बताया कि इस काम से प्रदेश के सैकड़ों लोगों के परिवार पल रहे हैं।

खुश करना पड़ता है सुनारों को

न्यारों का कहना है कि सुनारों को साल में एक बार गद्दे बनवाकर देने पड़ते हैं। यही नहीं अब सर्राफा बाजार के दुकानदार पैसे भी लेते हैं तब कहीं अपनी दुकान के बाहर नालियों में हाथ डालने देते हैं।

न्यारों का कहना है कि यह सब तो है ही, यदि कभी सर्राफा बाजार में किसी सुनार के यहां चोरी या लूट की वारदात होती है तो सबसे पहले पूछताछ के लिए पुलिस उन्हें ही परेशान करती है। यहां तक सुनार भी उन्हें शक की निगाहों से देखते हैं।

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story