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डूडल के जरिए भारत की पहली महिला डॉक्टर रुखमाबाई को गूगल ने दी श्रृद्धांजलि
सर्च इंजन गूगल ने आज (22 नवंबर) को डूडल के माध्यम से भारत की पहली महिला डॉक्टर कही जाने वाली रुखमाबाई राउत को श्रृद्धांजलि दी है। आप देखेंगे रुखमाबाई साड़ी में एक महिला की तस्वीर है, जे स्टेथस्कोप (आला) है और उनके आस-पास कुछ महिला मरीज और नर्स इनकी सेवा करता नजर आ रही है।
नई दिल्ली: सर्च इंजन गूगल ने आज (22 नवंबर) को डूडल के माध्यम से भारत की पहली महिला डॉक्टर कही जाने वाली रुखमाबाई राउत को उनके 153 वें जन्मदिन पर श्रृद्धांजलि दी है। आप देखेंगे रुखमाबाई साड़ी में एक महिला की तस्वीर है, जिसके गले में स्टेथस्कोप (आला) है और उनके आस-पास कुछ महिला मरीज और नर्स इनकी सेवा करती नजर आ रही है।
रुखमाबाई राउत का जन्म 22 नवंबर 1864 को हुआ था। उनकी शादी महज 11 साल की उम्र में 'दादाजी भिकाजी' (19) से हो गई थी। जयंतीबाई और जनार्दन पांडुरंग की बेटी रुखमाबाई ने 8 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था।
कौन थीं रुखमाबाई राउत?
रुखमाबाई राउत ब्रिटिश भारत में शुरुआती अभ्यास करने वाली डॉक्टरों में से एक थीं। उन्होंने उस वक्त सराहनीय काम किए थे। जब महिलाओं को विशेष अधिकारों से वंचित रखा जाता था। उस दौरान उन्होंने अपने अधिकारों के लिए अपनी शादी का विरोध करते हुए अपने पति के खिलाफ ही केस लड़ा था। उनकी 11 साल की उम्र में शादी हो गई थी। हालांकि, शादी के बाद भी वो अपनी मां के साथ ही रहती थीं। सात साल बाद उनके पति ने पत्नी को अपने साथ रखने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन रुखमाबाई ने जाने से मना कर दिया। उनके घरवालों ने उनका साथ दिया और कोर्ट में केस लड़ा, लेकिन दादाजी ने यह केस जीत लिया और उन्हें अपने पति के साथ जाने का आदेश दिया गया।
रुखमाबाई ने 1880 के दशक में अपने तर्कों से प्रेस के जरिए लोगों को इस पर ध्यान देने पर मजबूर कर दिया। इस तरह रमाबाई रानडे और बेहरामजी मालाबारी सहित कई समाज सुधारकों की जानकारी में यह मामला सामने आया। इस मामले के बाद रुखमाबाई ने डॉक्टर के रूप में ट्रेनिंग ली। जिसके बाद उन्होंने इस जगत में 35 साल तक काम किया।
समाज सुधारक के रूप में भी किया काम
रुखमाबाई के इस कदम के 68 सालों बाद 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट पास किया गया जिसमें इस बात को रखा गया कि विवाह के बंधन में रहने के लिए पति-पत्नी दोनों की मंजूरी होना आवश्यक है। अपने पेन नेम ‘ए हिंदू लेडी’ के अंतर्गत उन्होनें कई अखबारों के लिए लेख लिखे और कई लोगों ने उनका साथ दिया। एक बार अपने लेख में उन्होनें मेडिकल की पढ़ाई करने की इच्छा जाहिर की। इसके बाद कई लोगों ने फंड करके उन्हें इंग्लैंड भेजा और लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन से उनकी पढ़ाई का इंतजाम किया। लंदन से डॉक्टर बनकर आने के बाद उन्होंने कई सालों तक राजकोट में महिलाओं के अस्पताल में अपनी सेवाएं दी। इसके साथ उन्होंने बाल विवाह और महिलाओं के मुद्दे पर लिखकर समाज सुधारक का काम भी किया। 25 सितम्बर 1991 को 91 की आयु में रुखमाबाई की मृत्यु हो गई।