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दार्जिलिंग में हिंसा और विरोध की गूंज, फिर गरमाया गोरखालैंड का मुद्दा

अस्सी के दशक में सुभाष घिसिंग ने जिस गोरखालैंड आंदोलन की शुरुआत की थी वह एक बार फिर गरमा गया है। दार्जिलिंग की वादियां विरोध प्रदर्शन, हिंसा व अशांति से गूंज रही हैं।

tiwarishalini
Published on: 17 Jun 2017 6:48 AM GMT
दार्जिलिंग में हिंसा और विरोध की गूंज, फिर गरमाया गोरखालैंड का मुद्दा
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दार्जिलिंग में हिंसा और विरोध की गूंज, फिर गरमाया गोरखालैंड का मुद्दा

अपना भारत/newstrack.com डेस्क: अस्सी के दशक में सुभाष घिसिंग ने जिस गोरखालैंड आंदोलन की शुरुआत की थी वह एक बार फिर गरमा गया है। दार्जिलिंग की वादियां विरोध प्रदर्शन, हिंसा व अशांति से गूंज रही हैं। पश्चिम बंगाल में बंगाली भाषा को अनिवार्य किए जाने के ममता सरकार के फैसले के खिलाफ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को हवा दे दी है।

ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ होने के बाद स्वायत्त काउंसिल के जरिये गोरखा आंदोलन को शांत करने की कोशिश की थी, लेकिन अब यह मामला फिर गरमाने लगा है। ममता सरकार ने हाल में एक ऐसा फैसला किया जिससे इस आंदोलन की दबी चिंगारी एक बार फिर धधक उठी है। सरकार ने सभी स्कूलों में पहली से दसवीं तक बंगाली भाषा को अनिवार्य कर दिया है।

बस यहीं से इस आंदोलन को फिर हवा मिल गयी। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने बंगाली भाषा के विरोध के साथ अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ दिया है। गर्मी के पीक सीजन में काफी संख्या में सैलानी घूमने के लिए दार्जिलिंग पहुंचे हुए हैं। आंदोलन के कारण बहुत से सैलानी दार्जिलिंग में फंसे हुए हैं।

गुरुंग के उभरने से हालात बदले

गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता सुभाष घिसिंग ने सबसे पहले अलग गोरखालैंड राज्य की मांग की थी। उन्होंने सबसे पहले पांच अप्रैल,1980 को गोरखालैंड नाम दिया था। इसके बाद पश्चिम बंगाल की सरकार दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल बनाने पर राजी हुई। इसके बाद घिसिंग के नेतृत्व में वहां अगले बीस साल तक शांति रही,लेकिन विमल गुरंग के उभरने के बाद हालात बदल गए हैं।

विमल गुरुंग ने गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट से अलग होने के बाद गोरखा जनमुक्ति मोर्चा की नींव रखी और इसके बाद अलग गोरखालैंड की मांग फिर तेज हो गयी। जिस हिस्से को लेकर गोरखालैंड बनाने की मांग की जा रही है उसका कुल एरिया 6246 किलोमीटर का है। इसमें बनारहाट, भक्तिनगर, बिरपारा, चाल्सा, दाॢजभलग, जयगांव, कालचीनी, कलिम्पोंग, कुमारग्राम, कार्सेंग, मदारीहाट, मालबाजार, मिरिक और नागराकाटा शामिल हैं।

ममता को सेना बुलाने से परहेज नहीं

दार्जिलिंग में हर साल होने वाले हजारों करोड़ के चाय के कारोबार और पर्यटन से होने वाली मोटी कमाई के कारण कोलकाता का दार्जिलिंग से मोह नहीं टूटता। यही कारण है कि बंगाल की राजनीति में दो विरोधी ध्रुव माने जाने वाले ममता व लेफ्ट अलग गोरखा राज्य की मांग के खिलाफ रहे हैं। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के आंदोलन की राह पकडऩे के पीछे अलग राज्य की ललक के साथ ही राज्य की राजनीति के समीकरण को भी समझना होगा। मौजूदा दौर में बंगाल में भाजपा व तृणमूल के बीच वर्चस्व की जंग चल रही है।

बीजेपी ने सीपीएम से विपक्ष की जगह छीन ली है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा भाजपा का साथी रहा है और ऐसे में वह ममता सरकार के साथ कैसे हो सकता है। गुरुंग के नेतृत्व वाले मोर्चे ने गोरखालैंड टेरीटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन छोडऩे का संकेत दिया है।

जाहिर है कि बीजेपी पीछे से इस आंदोलन को हवा भी दे रही है। ममता भी इस चुनौती को समझ रही हैं और इसीलिए वे मंजे हुए खिलाड़ी की तरह इसे कुचलने में जुटी हुई हैं। यही कारण है कि उन्होंने सेना बुलाने से परहेज नहीं किया। उन्होंने मोर्चा के बंद को गैरकानूनी बताते हुए सभी कर्मचारियों से दफ्तर आने को कहा है।

वैसे एक सच्चाई यह भी है कि अलग राज्य के गठन में बंगाल को नाराज कर केन्द्र सरकार कोई जोखिम नहीं लेना चाहेगी। बांग्लादेश के साथ रिश्तों में बंगाल की महत्ता को देखते हुए उसके मत को नजरअंदाज करना सरकार के लिए आसान नहीं है। तीस्ता जल बंटवारे का मुद्दा इसका ज्वलंत उदाहरण है। इस मुद्दे पर ममता के अडिय़ल रुख के कारण ही भारत-बांग्लादेश के बीच इस पर अमल नहीं हो सका है।

ऑडिट कराने के फैसले से नाराजगी

ममता सरकार से गोरखा जनमुक्ति मोर्चे की नाराजगी का एक बड़ा कारण यह है कि ममता सरकार ने गोरखालैंड टेरीटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन के खर्चे का ऑडिट कराने का ऐलान किया है। मोर्चे के साथ 2011 में हुए समझौते के बाद एडमिनिस्ट्रेशन को कई अधिकार मिले हुए थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। गुरंग व ममता की दूरियां काफी बढ़ चुकी हैं। यही कारण था कि 2014 के चुनाव में मोर्चा ने भाजपा का साथ दिया था। वैसे 2013 से ही तृणमूल व मोर्चा के बीच मतभेद बढऩे लगा था। 2014 में तेलंगाना के गठन के बाद हालात और खराब हो गए। इस इलाके में जनता कफ्र्यू लग गया यानी लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकलेंगे। मोर्चा आंदोलन के दौरान एनएच 55 को बंद कर देता है और इस कारण इस आंदोलन का असर पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों पर भी पड़ता है।

केंद्र ने मांगी राज्य सरकार से रिपोर्ट

गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने 12 जून से बेमियादी हड़ताल का ऐलान कर दिया है। केन्द्र सरकार ने हालात पर काबू पाने के लिए अद्र्धसैनिक बलों के 600 जवानों को भेजा है। बंद के दौरान हिंसा व पथराव की घटनाओं के कारण यह कदम उठाया गया। केन्द्र सरकार ने इस बाबत राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी है। दूसरी ओर ममता ने रिपोर्ट मांगे जाने की बात से इनकार कर रही हैं। दार्जिलिंग भेजे गए जवानों में 200 महिलाएं भी शामिल हैं। गृह मंत्रालय का कहना है कि वह हालात पर करीब से नजर बनाए हुए है और राज्य सरकार को हर संभव मदद देने को तैयार है। वैसे ममता ने दावा किया है कि पर्वतीय जिले में हालात सामान्य बने हुए हैं। वैसे खबरें हैं कि गोरखालैंड समर्थकों को कई सरकार कार्यालयों में बंद से रोकने पर पथराव की घटनाएं हुईं।

पुलिस ने सरकार और गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन जीआरटीए के कार्यालयों के सामने तथा हिल्स के कई प्रवेश और बाहरी मार्गों पर बैरिकेडिंग कर दी है जबकि त्वरित कार्रवाई बल (आरएएफ) और बड़ी संख्या में महिला पुलिसकर्मियों को भी तैनात किया गया है। मोर्चा ने पुलिस पर जीजेएम रैली पर बिना उकसावे के लाठीचार्ज करने का आरोप लगाया है। कुल मिलाकर अलग गोरखालैंड का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। इस चुनौती से निपटने के लिए ममता सरकार को कड़ी मशक्कत करनी होगी।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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