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कुपोषण और इलाज के अभाव में हर साल दम तोड़ देते हैं करीब 33 हजार शिशु

raghvendra
Published on: 28 Oct 2017 10:49 AM GMT
कुपोषण और इलाज के अभाव में हर साल दम तोड़ देते हैं करीब 33 हजार शिशु
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राम शिरोमणि शुक्ल

रायपुर। छत्तीसगढ़ के सरकारी आंकड़ों में बताया जाता है कि कुपोषण की स्थिति में सुधार हुआ है, प्रसूताओं को बेहतर पौष्टिक भोजन व समुचित उपचार की सुविधा दी जा रही है। नवजातों के उपचार का भी सरकार इंतजाम करती है। अभी-अभी आई एक रिपोर्ट ने न केवल सरकार के तमाम दावों की पोल खोलकर रख दी है बल्कि हालात की भयावहता को भी रेखांकित किया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की इस रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में हर साल करीब 33 हजार नवजात बच्चों की मौत हो जाती है। इसके पीछे कुपोषण और ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों में इलाज की सुविधाओं के अभाव को प्रमुख कारण बताया गया है। जन स्वास्थ्य अभियान की छत्तीसगढ़ प्रभारी सुलक्षणा नंदी के अनुसार इन आंकड़ों के मुताबिक हालात अच्छे नहीं हैं। हर साल होने वाली इन मौतों में प्रति एक हजार में 48 शिशुओं की मौत हो जाती है। एनएफएचएस के 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक नवजातों के लिए छत्तीसगढ़ सबसे असुरक्षित राज्य बन चुका है।

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नवजातों की मौत चिंता का विषय बनी

इस रिपोर्ट के अतिरिक्त आए दिन मिलने वाली खबरें भी कुछ इसी तरह की होती हैं। इसी साल की जुलाई की एक खबर के मुताबिक रायगढ़ के मेडिकल कॉलेज अस्पताल से छह माह के भीतर 193 नवजातों की मौत हो गई थी। इसके अलावा पिछले एक वर्ष के भीतर जिला अस्पताल अंबिकापुर में 545 नवजातों की मौत हो गई थी।

हर माह औसतन 40 से अधिक शिशुओं की मौत हुई थी। एक-दो महीनों में मौतों का आंकड़ा 90 को भी पार कर गया था। आदिवासी इलाके अंबिकापुर में मई 2014 से लेकर मई 2015 के बीच कुल 545 नवजातों की मौत हुई थी। इनमें एक सप्ताह के भीतर 224 नवजातों की मौत हुई थी। आठ दिन से लेकर तीस दिन के भीतर विभिन्न कारणों से मरने वाले नवजातों की संख्या 321 थी।

अक्टूबर माह की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरिया जिले में छह महीने में 155 नवजातों की मौत हो गई। जिले के सुदूर वनांचल क्षेत्र कोटाडोल में 13 दिनों में 16 नवजातों की मौत हो गई। ये कुछ बड़े आंकड़े हैं जिनसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य में नवजातों की मौत की कितनी भयावह स्थिति है। चिकित्सक इनके पीछे कुपोषण और इलाज की बेहतर सुविधा न होने को कारण बताते हैं जबकि सरकार इसे अस्वीकार करती रहती है।

सरकार की ओर से लगातार यह बताया जाता रहता है कि न कुपोषण की कोई समस्या है और न उपचार की। दोनों ही सुविधाएं गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को उपलब्ध कराई जा रही है। इसी वजह से नवजातों का जीवन बचाने में सफलता हासिल हुई है। कुपोषण की दर में भी कमी लाई गई है। इसके बावजूद अगर इतनी बड़ी संख्या में नवजातों की मौत हो रही है तो कुछ न कुछ ऐस कारण अवश्य हैं जिनकी संभवत: सरकार और स्वास्थ्य विभाग की ओर से अवहेलना की जा रही है।

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सरकार का कुपोषण दर में कमी का दावा

राज्य सरकार के दावों के मुताबिक उसके लगातार प्रयासों से कुपोषण दर में कमी दर्ज की गई है। महिला एवं बाल विकास विभाग के वर्ष 2015 के एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में कुपोषण की दर घटकर 30 फीसदी पर आ चुकी है जो पहले 47.1 थी। इस तरह पिछले 10 वर्षों में कुपोषण दर में 17 फीसदी की कमी आई है। कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार द्वारा अनेक योजनाएं संचालित की जाती हैं।

गर्भ में और जन्म के बाद शिशु स्वस्थ और मजबूत हो सके, इसके लिए गर्भवती तथा शिशुवती माताओं को आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिये हर सप्ताह टेक होम राशन पद्धति से पोषण आहार दिया जाता है। माताओं को आहार के साथ बच्चों के आहार के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

इतना ही नहीं, बच्चों के कुपोषण के स्तर की जांच के लिए हर वर्ष वजन त्योहार मनाया जाता है। इस दौरान सभी बच्चों का वजन लिया जाता है। विभाग द्वारा कुपोषण की रोकथाम के लिए वर्ष 2012 से समुदाय आधारित नवा जतन योजना भी संचालित की जाती है। गंभीर कुपोषित बच्चों के इलाज के लिए सभी जिला मुख्यालयों सहित 62 स्थानों पर पोषण पुनर्वास केंद्र स्थापित किए गए हैं।

कुपोषण की दृष्टि से राज्य के 17 हाई बर्डन जिलों में 12 दिवसीय स्नेह शिविरों का आयोजन किया जाता है। इन शिविरों के माध्यम से काफी संख्या में बच्चों को सामान्य श्रेणी में लाया जाता है। इसके अलावा दत्तक पुत्री सुपोषण योजना भी संचालित की जाती है।

वर्ष 2014-15 में 9715 गंभीर कुपोषित बालिकाओं को समुदाय द्वारा दत्तक लिया गया जिनमें से करीब 1200 बालिकाएं कुपोषण से बाहर लाई गईं। 4198 बालिकाओं के पोषण स्तर में परिवर्तन लाया जा सका और 3000 से अधिक बालिकाएं गंभीर कुपोषण से मध्यम श्रेणी में लाई जा सकी थीं। विभाग के अधिकारियों के अनुसार इस तरह के आंकड़े बताते हैं राज्य में कुपोषण की समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है।

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छत्तीसगढ़ को अच्छे काम का इनाम

छत्तीसगढ़ को पूरे भारत में कुपोषण के एक पैमाने - बौनापन अर्थात आयु के अनुसार कद के मापदंडों के आधार पर बच्चों के कुपोषण में असाधारण कमी लाने के लिए सर्वश्रेष्ठ राज्य के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती रमशिला साहू के अनुसार छत्तीसगढ़ को यह पुरस्कार नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका गांधी ने प्रदान किया।

उल्लेखनीय है कि कुपोषण ज्ञात करने के तीन पैमाने हैं जिसमें आयु के अनुसार ऊंचाई न होना एक महत्वपूर्ण पैमाना है। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2005-06 में राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने 52.9 प्रतिशत बच्चों को बौनेपन के आधार पर कुपोषित पाया था, जबकि वर्ष 2015-16 के सर्वेक्षण के अनुसार यह प्रतिशत घटकर 37.6 प्रतिशत हो गया है। 10 वर्षों में 15.3 प्रतिशत की कमी आई है और इस उपलब्धि को असाधारण माना गया है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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